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History of Maharashtra Politics Part 6 | क्यों कई मोर्चों पर नाकाम रहे उद्धव | Teh Tak

बीजेपी शिवसेना ने 2014 का ललोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा और महाराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से 41 सीटें अपने नाम कर ली। जिसमें से 23 सीटें बीजेपी ने और 18 सीटें शिवसेना के खाते में आई। लेकिन असली परीक्षा विधानसभा चुनावों में होनी थी। उद्धव ठाकरे पिता बाल ठाकरे की सीख को भूल गए कि बाल ठाकरे कहते थे कि सत्ता का हिस्सा नहीं बनना बल्कि सत्ता का रिमोट अपने हाथों में रखना है। लेकिन उद्धव ने खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार पेश करना शुरु कर दिया। सीटों के बंटवारे को लेकर 25 साल पुराना बीजेपी शिवसेना गठबंधन टूट गया। शिवसेना ने बीजेपी पर जमकर प्रहार किए और नरेंद्र मोदी की तुलना अफजल खान तक से कर दी। लेकिन बीजेपी ने शिवसेना के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला। 

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खचाखच भरे स्टेडियम में मायूस आंखों से स्टारडम तलाशते उद्धव 
चुनाव के नतीजे सामने आए तो शिवसेना के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। 122 सीटों पर कमल खिला था जबकि शिवसेना 63 सीटों पर सिमट कर रह गई। सवाल ये था कि बीजेपी किसके साथ मिलकर सरकार बनाई। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के शपथ ग्रहण के लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने फोन कर समारोह में शामिल होने का निमंत्रण दिया। उद्धव आए लेकिन न उनके पीछे शिवसेना की हनक थी और न बाल ठाकरे के दौर की ठसक थी। उद्धव खचाखच भरे स्टेडियम में मायूस आंखों से तलाशते रहे वो स्टारडम जो उनके पिता के दौर में हुआ करता था। वानखड़े स्टेडियम में जो नजारा उद्धव ठाकरे ने अपनी आंखों से देखा उसने यह एहसास तो करा दिया कि अब शिवसेना को या तो गुजराती अमित शाह के इशारे पर चलना है या तो कमांडर नरेंद्र मोदी के दिखाए गए राह पर चलना है। या तो पवार की हथेली पर नाचना है या फिर इन सब से इतर शिवसेना को फिर से खड़ा करना है जो कभी सपना पांच दशक पहले बाला साहेब ने देखा था। 

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2019 में महाराष्ट्र की राजनीति में हुआ नया प्रयोग 
वक्त बदला और साल 2019 में शिवसेना और बीजेपी ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में साथ मिलकर परचम लहराया। लेकिन विधानसभा चुनाव में सीटों के मतभेद के बाद भी साथ लड़कर अलग हो गए। उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी से 25 साल पुराना नाता तोड़ लिया। महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए प्रयोग ने आकार लिया। शिवसेना ने सत्ता के लिए कांग्रेस और एनसीपी जैसे दलों के साथ हाथ मिलाया। ढाई साल तक सरकार भी चलाया। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी विधायकों की बग़ावत के बाद उद्धव को इस्तीफा देना पड़ा। 
कई मोर्चों पर नाकाम रहे उद्धव 
उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री कार्यकाल के अधिकतर समय कोविड हावी रहा। इस दौरान कोई उल्लेखनीय काम महाराष्ट्र सरकार का नज़र नहीं आता जिस पर उद्धव ठाकरे की छाप हो। उनके शासनकाल में शासन काल में महाराष्ट्र में स्टेट ट्रांसपोर्ट की बसों की सबसे लंबी हड़ताल हुई। ये हड़ताल लंबी होती गई और सरकार स्थिति को संभाल नहीं पाई। शिवसेना के विधायक केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर रहे। 
पार्टी और सीएम दोनों गंवाई 
जून 2022 में शिवसेना में ही फूट पड़ गई। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐसा किरदार ठाणे की गलियों में रिक्शा चलाने से लेकर ठाकरे परिवार के बाद शिवसेना में सबसे शक्तिशाली नेता बनते हुई न केवल उद्धव को कुर्सी से हटाया बल्कि बाला साहेब की विरासत को आगे बढ़ाने वाला बताते हुए पार्टी पर भी कब्जा जमाया और खुद महाराष्ट्र के सीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए। 

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