किसी भी सभ्य समाज के संचालन के लिए कुछ नियम कायदों की जरूरत होती है। लोकतांत्रिक प्रणाली में संविधान के जरिए इसकी व्यवस्था की जाती है। संविधान किसी भी देश की शासन प्रणाली और राज्य को चलाने के लिए बनाया गया एक दस्तावेज होता है। प्रेम बिहारी नारायण रायजादा जैसे सुलेखकों ने इसे अपने कलम से निखारा था। मगर, ये काम मुश्किल होते हुए भी आसान था, उस काम के मुकाबले जो इस संविधान की कल्पना कर इसे लिखित रूप देने वालों ने संविधान सभा में पूरे तीन साल लगाकर किया था। क्योंकि वो कल्पना केवल एक किताब की नहीं थी। वो तो जैसे एक नए मुल्क का तसव्वुर था। एक नए समजा का और एक ऐसी नई संस्कृति का जो इससे पहले इस संसरा में कभी नहीं देखी गई थी।
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शांति का उपदेश देते बुद्ध, टीपू सुल्तान से लेकर अकबर तक
हम सब इस संविधान की खूब कसमें खाते हैं, या लोगों को खाते सुनते हैं। पर क्या आपने संविधान देखा है। मान लीजिए कभी फोटो वगैरह में देखा भी हो। तो एक चीज तो पक्का पता होगी कि संविधान की मूल प्रति में हाथ से बनाए ढेरों चित्र शामिल हैं। इसका भी एक किस्सा है। हुआ ये कि भारतीय संविधान रचा जा रहा था। इसी समय डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जब इसके ड्राफ्ट को पेश किया तो संविधान की मूल प्रति में विषयों के अनुसार उसमें चित्रों के चित्रण पर चर्चा हुई। जवाहर लाल नेहरू एक बार शांति निकेतन गए। वहां उन्हें चित्रकार नंदलाल बोस मिले। नेहरू जी ने उनसे आग्रह किया कि संविधान की किताब तैयार हो रही है। उसे आप अपनी चित्रकारी से सजा दीजिए। चार साल में बोस और उनके छात्रों ने कुल 22 चित्र और किनारियां बनाई। जिनके जरिए संविधान के सारे 22 अध्यायों को सजाया गया। इस तरह से संविधान की मूल किताब में भारत की पूरी संस्कृति उतार दी गई। पहली चित्र भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक की है। अंदर नटराज और श्रीकृष्ण भी नजर आते हैं। शांति का उपदेश देते बुद्ध और यज्ञ कराते ऋषियों की यज्ञशाला भी है। कमल से लेकर स्वर्ग से आती गंगा की तस्वीरें संविधान में आपको मिल जाएंगी। रानी लक्ष्मीबाई, गुरु गोविंद सिंह, टीपू सुल्तान से लेकर अकबर तक की तस्वीरें आपको संविधान में मिल जाएंगी। हड़प्पा की खुदाई से मिली चीजें, शेर और घोड़े ये सब आपको संविधान की किताब में नजर आएंगे।
मौलिक अधिकार वाले भाग 3 में श्री राम, सीता और लक्ष्मण जी का चित्र
भारत का संविधान 1950 में जब अंगीकृत किया गया इसमें सबसे ऊपर कवर पर लिखा है भारत का संविधान और नीचे राम दरबार का चित्र बना हुआ है राम बैठे हुए हैं। और लक्ष्मण जी का चित्र है। संविधान के भाग 3 जिसमें हमारे मौलिक अधिकार पर चर्चा है। वहाँ श्री राम, सीता और लक्ष्मण जी का चित्र है। संविधान के जिस भाग 3 में मौलिक अधिकारों को जगह मिली है, उस भाग के प्रतिनिधि चित्रण में श्रीराम-सीता और लक्ष्मण को दर्शाया गया है और यह प्रसंग तब का है, जब वह लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी करते हैं। सोचिए! बात जब मौलिक अधिकारों की हुई तो घर लौटना, उसका कितना बड़ा पर्याय बना। किसी के घर लौट आना सिर पर छत, परिवार के पोषण के लिए एक स्थान और सुरक्षा तीनों प्रमुख जरूरतों को पूरा करता है। रोटी-कपड़ा-मकान की यही मूलभूत जरूरत न सिर्फ आदमी की चाहत है, बल्कि संविधान की भी कसौटी है। राम का घर आना, यानी इस देश के नागरिकों को घर मिलने-सुरक्षित रहने का वचन है।
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