आखिर बीआर आंबेडकर संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष भर थे तो संविधान बनाने का पूरा श्रेय उन्हें ही क्यों दिया जाता है। आखिर जब संविधान सभा में 200 से ज्यादा सदस्य थे तो अकेले डॉ. आबंडेकर को ही इतनी तव्ज्यों क्यों दी जाती है? आखिर भीमराव आंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक क्यों कहा जाता है। आखिर क्यों ये लोग मानते हैं कि भारत का जो संविधान है उसे डॉ. भीमराव आंबेडकर ने ही बनाया था।
200 सौ साल की गुलामी के बाद भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में सामने कैसे आया? इसकी कहानी बहुत दिलचस्प है। ब्रिटिश हुकूमत के शासन के अंत के साथ ही ये सवाल सबसे बड़ा था कि इतने बड़े देश के शासन की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए। आखिर वो कौन होगा जिसके हवाले पूरा देश होगा। आखिर कांग्रेस में वो कौन कौन से नेता होंगे जिन्हें अंग्रेज देश चलाने की जिम्मेदारी देंगे। इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए 23 मार्च 1946 को कैबिनेट मिशन का एक दल दिल्ली पहुंचा। इस टीम में पैट्रिक लॉरेंस, सर स्टेपफोर्ड क्रिप्स और एबी एलेंजेंडर शामिल थे। इस दल ने सभी पक्षों से मिलकर बात की और 16 मई 1946 को ये कैबिनेट मिशन इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि भारत की आजादी के बाद अंग्रेज भारत की सत्ता संविधान सभा को सौंप देंगे। इस संविधान सभा में कौन कौन होगा इसके लिए चुनाव होगा। ये भी तय हुआ कि संविधान सभा में कुल 389 सदस्य होंगे। जिनमें 292 सदस्य प्रांतों से और 93 सदस्य प्रिंसली स्टेट (रियाशतों) से होंगे। 25 जून को कैबिनेट मिशन की आम योजना पर सहमति बन गई। इसी कैबिनेट मिशन की सिफारिशों के तहत अंतरिम सरकार का गठन हुआ।
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संविधान का ड्राफ्ट बनाने के लिए बनी थी 7 सदस्यों की कमेटी
हम जानते हैं कि प्रारूप समिति ने मई 1947 में संविधान सभा के सामने मसौदा पेश किया था। इस ड्राफ्ट में 7,500 से ज्यादा संशोधन सुझाए गए, जिनमें से लगभग 2,500 को स्वीकार किया गया। संविधान सभा का मसौदा तैयार करने के लिए 7 सदस्यों की ड्राफ्टिंग कमेटी बनाई गई थी। इस ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ आंबेडकर थे। वहीं कमेटी के सदस्य कन्हैयालाल मुंशी, मोहम्मद सादुल्लाह, अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर, गोपाळ स्वामी अय्यंगार, एन. माधव राव और टीटी कृष्णामचारी थे।
कैबिनेट मिशन की सिफारिशों पर संविधान सभा की 385 सीटों के लिए चुनाव हुए। उस चुनाव में भीमराव आंबेडकर बंबई से शेड्यूल कास्ट फेडरेश के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव हार गए। हालांकि महात्मा गांधी से लेकर कांग्रेस और मुस्लिम लीग भी चाहती थी कि आंबेडकर संविधान सभा में होने चाहिए। बंगाल से मुस्लीम लीग के वोटों के जरिए आंबेडकर चुनाव जीत गए और संविधान सभा के सदस्य बने। 11 दिसंबर को सर्वसम्मति से डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। संविधान सभा की बैठक के पांचवें दिन जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में लक्ष्य संबंधित प्रस्ताव पेश किया। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पुरुषोत्तम दास टंडन ने इसका अनुमोदन किया।
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केवल आंबेडकर पर आ गई सारी जिम्मेदारी
जब संविधान का ड्राफ्ट बनाने की बात आई, तो 7 सदस्यों में से सिर्फ आंबेडकर ही मौजूद थे। इस घटना का जिक्र ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य टी.टी कृष्णामचारी ने संविधान सभा में किया। टीटी कृष्णामाचारी ने नवंबर 1948 में संविधान सभा में कहा कि ‘मृत्यु, बीमारी और अन्य व्यस्तताओं’ की वजह से कमेटी के ज्यादातर सदस्यों ने मसौदा बनाने में पर्याप्त योगदान नहीं दिया। इसके चलते संविधान तैयार करने का बोझ डॉ आंबेडकर पर आ पड़ा।
100 दिनों तक संविधान सभा में खड़े होकर ड्राफ्ट को धैर्यपूर्वक समझाया
संविधान की सर्वसम्मति से स्वीकृति के मौके पर 25 नवंबर 1949 के उनके जिस ऐतिहासिक भाषण को बार- बार उद्धृत किया जाता है। उसमें उन्होंने कहा था कि जो श्रेय मुझे दिया गया है, इसका वास्तव में मैं ही अधिकारी नहीं हूं। उसके अधिकारी बेनेगल नरसिंह राव भी हैं, जो इस संविधान के संवैधानिक सलाहार हैं और जिन्होंने प्रारूप समित के विचारार्थ मोटे तौर पर संविधान का मसौदा बनाया। आंबेडकर ने करीब 100 दिनों तक संविधान सभा में खड़े होकर संविधान के पूरे ड्राफ्ट को धैर्यपूर्वक समझाया और हर एक सुझाव पर विमर्श किया।
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