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RAW Part V | ऐसा RAW एजेंट जो पहचान बदल पाक सेना का मेजर तक बन बैठा, क्या है The Black Tiger की अविश्वसनीय कहानी

एक ऐसा जासूस जो नाम बदलकर पाकिस्तान में रहा। पाकिस्तान की सेना में भी शामिल हुआ और मेजर तक बन बैठा। बाद में पकड़े जाने के बाद सालों यातनाएं झेली और एक दिन पाकिस्तान की जेल में आखिरी सांसे ली। क्या है भारत के उस महान जासूस रविंद्र कौशिक की कहानी जिसे तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने भारत के लिए उनके बहुमूल्य योगदान के लिए ‘द ब्लैक टाइगर’ की उपाधि दी थी। आप सभी ने सलमान खान की फिल्म एक था टाइगर तो देखी ही होगी। जिसमें उन्होंने एक रॉ एजेंट का किरदार निभाया था। कहा जाता है कि टाइगर का किरदार भारत के स्पाई रविंद्र कौशिक के जीवन से भी प्रभावित था। क्या भारत जैसे बड़े देश के लिए कुर्बानी देने वालों को यही मिलता है? पीड़ा के इन शब्दों को स्वर्गीय रवींद्र कौशिक ने पाकिस्तान में सेंट्रल जेल मियांवाली से अपने परिवार को लिखे एक पत्र बयां किया था। यकीनन देश के सबसे प्रमुख अंडरकवर जासूस थे उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 16 साल बिताए थे।

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रवींद्र भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के साथ अपना जुड़ाव तब शुरू किया, जब वह केवल 23 वर्ष के थे़। पाकिस्तानी सेना में मेजर बन गए। सीमाओं से परे उनके द्वारा प्रसारित की गई संवेदनशील जानकारी ने अंततः उन्हें ‘ब्लैक टाइगर’ की उपाधि दिलाई। तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद उनके बहुमूल्य योगदान के सम्मान में उन्हें इस उपाधि से नवाजा था। तो आइए जानते हैं कि अंडरकवर जासूस के उल्लेखनीय जीवन का दुखद अंत आखिर कैसे हुआ?
एक रेजिडेंट एजेंट
11 अप्रैल, 1952 को भारत-पाकिस्तान सीमा के पास एक राजस्थानी शहर श्रीगंगानगर में जन्मे रवींद्र 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों की पृष्ठभूमि में बड़े हुए। एसडी बिहानी कॉलेज के दौरान उन्हें एक करिश्माई छात्र के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने नाटक और मिमिक्री में रुचि ली। 21 साल की उम्र में उन्होंने लखनऊ में एक राष्ट्रीय नाट्य समारोह में प्रदर्शन किया। रवींद्र के छोटे भाई राजेश्वरनाथ कौशिक ने याद करते हुए कहा कि कॉलेज में शायद यह उनका मोनो-एक्ट था, जिसमें उन्होंने एक भारतीय सेना अधिकारी की भूमिका निभाई, जिसने चीन को जानकारी देने से इनकार कर दिया, जिसने खुफिया अधिकारियों का ध्यान खींचा।1973 में बीकॉम की डिग्री पूरी करने के बाद रवींद्र ने अपने पिता से कहा कि वह नई नौकरी शुरू करने के लिए दिल्ली जा रहे हैं। दरअसल, वह रॉ के साथ अपना दो साल का ट्रेनिंग पीरियड शुरू करने वाले थे। रवींद्र पहले से ही पंजाबी में धाराप्रवाह थे, अधिकारियों ने उन्हें उर्दू सिखाई, उन्हें इस्लामिक धर्मग्रंथों से परिचित कराया और उन्हें “रेसिडेंट एजेंट” के रूप में पाकिस्तान को लेकर विस्तृत जानकारी प्रदान की। कहा जाता है कि उन्होंने कथित तौर पर एक खतना भी करवाया। उनके सभी आधिकारिक भारतीय रिकॉर्ड 1975 तक नष्ट हो गए, जब उन्होंने ‘नबी अहमद शाकिर’ के नए नाम के साथ पाकिस्तान का रुख किया। कराची विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री पूरी करने के बाद वह अपने सैन्य लेखा विभाग में एक कमीशन अधिकारी के रूप में पाकिस्तानी सेना में शामिल हो गए। बाद में उन्हें मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया। पाकिस्तान में एक सम्मानित स्थान हासिल करने के बाद, रवींद्र ने 1979 और 1983 के बीच भारतीय रक्षा अधिकारियों को गोपनीय जानकारी दी। जिससे बढ़ते संघर्ष के समय में देश को एक महत्वपूर्ण लाभ मिला। उन्होंने सेना की एक इकाई में एक स्थानीय महिला अमानत से शादी भी की। जिन्हें भी रविंद्र की असलियत का पता नहीं था। कुछ प्रकाशनों का कहना है कि उनका एक बेटा था, अन्य रिपोर्टों का कहना है कि रवींद्र ने एक बेटी को जन्म दिया।

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