सत्ता बदले या सरकार मुद्दे बदले या विचार नहीं बदला तो यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर चली आ रही अटकलें जो वक्त बे-वक्त किसी न किसी वजह से चर्चा में परस्पर बनी रहती है। फिर से ये सवाल ट्रेंडिंग टॉपिक बनकर सामने आ गया है कि क्या मोदी सरकार इस मानसून सत्र में समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल लाने की तैयारी कर रही है? आजादी के 75 साल में एक समान नागरिक संहिता और पर्सनल लॉ में सुधारों की मांग होती रही है। लेकिन धार्मिक संगठनों और राजनीतिक नेतृत्व में एकमत नहीं बन पाने की वजह से ऐसा अब तक नहीं हो सका है। यहां तक की अभी भी सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि समान नागरिक संहिता का जिक्र हमारे संविधान में भी है और सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी इस पर समय-समय पर कई टिप्पणियां की जाती रही हैं।
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संविधान की भावना
हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता की व्यवस्था की थी, ताकि आगे चलकर सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों के लिए एक जैसा पर्सनल लॉ बनाया जा सके। इसके मुताबिक, राज्य इस बात का प्रयास करेगा कि सभी नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड हो। अभी देश भर में तमाम धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं जिनके हिसाब से विभिन्न समुदायों में शादी, तलाक, गुजारा भत्ता, विरासत आदि से जुड़े मसले तय होते हैं। कॉमन सिविल कोड के लागू होने पर देश भर के तमाम धर्मों और समुदायों के लोगों के लिए एक ही कानून होगा।
सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर इसको लेकर करता रहा है अपनी टिप्पणी
1980 में बहुचर्चित मिनर्वा मिल्स केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक सिद्धांत के बीच सौहार्द और संतुलन संविधान का महत्वपूर्ण आधारभूत सिद्धांत है।
1985 में शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह दुख का विषय है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 मृत अक्षर बनकर रह गया है।
1995 में सरला मुद्गल केस में सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा कि अनुच्छेद 44 के अंतर्गत व्यक्त की गई संविधान निर्माताओं की इच्छा को पूरा करने में सरकार और कितना समय लेगी? समान नागरिक संहिता को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने का कोई औचित्य नहीं है।
2017 में तीन तलाक से संबंधित शायरा बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम भारत सरकार को निर्देशित करते हैं कि वह उचित विधान बनाने पर विचार करे।
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जोस पाउलो केस में टिप्पणी करते हुए कहा कि देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई कारगर प्रयास अभी तक नहीं किया गया।
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लॉ कमीशन ने अब तक इस पर क्या कदम उठाया है
यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) के मुद्दे पर लॉ कमिशन ने जून के महीने में एक बार फिर कंसल्टेशन पेपर जारी करने का फैसला किया। कमिशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर पब्लिक और धार्मिक संस्थानों से राय मांगी। इसके लिए 30 दिनों का वक्त भी दिया गया। कमिशन ने 2018 में भी एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया था और फैमिली लॉ में सुधार के लिए लोगों से राय मांगी थी। कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रितु राय अवस्थी के अगुवाई वाले लॉ कमिशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए दोबारा से राय मांगने का फैसला इसलिए किया है क्योंकि पिछला कंसल्टेशन पेपर तीन साल से ज्यादा वक्त पहले जारी हुआ था। वह पुराना हो चुका है। लॉ कमिशन ने पब्लिक नोटिस जारी करके कहा है, 21वें लॉ कमिशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर लोगों और तमाम हितधारकों से 7 अक्टूबर, 2016 को राय मांगी थी। फिर 19 मार्च, 2018 और 27 मार्च, 2018 को राय मांगी गई थी। इसके बाद 31 अगस्त, 2018 को लॉ कमिशन ने फैमिली लॉ के सुधार के लिए सिफारिश की थी। चूंकि पिछले कंसल्टेशन पेपर को आए तीन साल से ज्यादा का वक्त बीच चुका है। ऐसे में विषय की गंभीरता और इस मामले में कोर्ट के तमाम आदेशों को देखते हुए 22वें लॉ कमिशन ने इस विषय पर पब्लिक और तमाम हितधारकों की राय लेने का फैसला किया है।
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