इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने वर्ष 2022 और 2023 में उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में विभिन्न कर्मचारियों की रिक्तियों को भरने के लिए आयोजित परीक्षाओं की निष्पक्षता पर गंभीर नाराजगी व्यक्त की है और मामले की जांच सीबीआई से कराने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति ओ.पी. शुक्ला की पीठ ने पिछले 18 सितंबर को अपने आदेश में सीबीआई को प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या भर्तियों में कोई गड़बड़ी हुई थी।
पीठ ने सीबीआई से नवंबर के पहले सप्ताह तक प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
पीठ ने दो याचिकाओं की सुनवाई के दौरान स्वत: संज्ञान जनहित याचिका दर्ज करते हुए यह आदेश पारित किया।
पीठ ने इस भर्ती से संबंधित कुछ मूल रिकॉर्ड भी रोक लिए और अपने वरिष्ठ रजिस्ट्रार से कहा कि वह प्रारंभिक जांच में सुविधा के लिए सीबीआई को रिकॉर्ड की फोटोकॉपी मुहैया कराएं।
पीठ एक विशेष अपील और एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में वर्ष 2022 और 2023 में कर्मचारियों की भर्ती को चुनौती देने से संबंधित थी।
सुनवाई के दौरान पीठ ने पाया कि इस बात पर संदेह है कि भर्ती एजेंसी का चयन निष्पक्ष तरीके से किया गया था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, “भर्ती के लिए चुनी गई एजेंसी के संबंध में कंपनी मास्टर डेटा की जांच करने पर हमें कुछ अस्पष्ट विवरण मिले।वे प्रथमदृष्टया एक निष्पक्ष एजेंसी द्वारा प्रारंभिक जांच करने की जरूरत पर जोर देते हैं।
पीठ इस बात से चिंतित थी कि वर्ष 2022-23 में चयन करने से पहले 2019 में भर्ती एजेंसी क्यों बदली गई, जबकि उप्र लोक सेवा आयोग और उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग पहले से ही उपलब्ध थे।