पुरी। ओडिशा के पुरी शहर में शनिवार को 12वीं सदी के मंदिर में हजारों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ की स्नान यात्रा के लिए एकत्रित हुए। चक्रराज सुदर्शन के साथ भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों को मंदिर परिसर में स्थित स्नान मंडप में लाया गया, जहां उन पर 108 घड़ों का पवित्र जल डाला गया। भगवान जगन्नाथ को 35 घड़ों के जल से स्नान कराया गया, जबकि भगवान बलभद्र को 33 घड़ों, देवी सुभद्रा को 22 घड़ों और चक्रराज सुदर्शन को 18 घड़ों के जल से स्नान कराया गया। जल मंदिर स्थित सुना कुआं या स्वर्ण कुएं से लाया गया।
पानी में जड़ी-बूटी और सुगंधित तत्व मिलाए गए और उसके बाद उस जल से स्नान बेदी में देवताओं का स्नान कराया गया। यह अनुष्ठान वार्षिक रथयात्रा उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। जगन्नाथ संस्कृति के शोधकर्ता पंडित सूर्यनारायण रथशर्मा ने बताया कि गजपति महाराजा राजा दिब्यसिंह देब ने स्नान अनुष्ठान के तुरंत बाद स्नान मंडप में चेरा पन्हरा (झाडू लगाने) की रस्म निभायी। चेरा पन्हरा के पूरा होने के बाद, देवताओं को स्नान बेदी में हाथी बेसा (हाथी की पोशाक) पहनाई गई। हाथी की पोशाक और इस अवसर पर विशेष वेशभूषा पारंपरिक रूप से राघबा दास मठ और गोपाल तीर्थ मठ के कारीगरों द्वारा तैयार की जाती है।
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मान्यता के अनुसार, अत्यधिक स्नान के कारण देवता बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें अनासर गृह में ले जाया जाता है। देवताओं को अब अनासर गृह में 14 दिनों के लिए पृथकवास किया जाएगा। इस अवधि के दौरान श्रद्धालुओं को देवताओं के दर्शन करने की अनुमति नहीं होती है। ठीक होने पर, देवता नबजौबन दर्शन के अवसर पर श्रद्धालुओं के सामने आते हैं। पुलिस की लगभग 68 प्लाटून (एक प्लाटून में 30 जवान होते हैं) तैनात की गई थीं और सुचारू दर्शन के लिए व्यापक व्यवस्था की गई है। अधिकांश श्रद्धालुओं ने मंदिर के सामने स्थित सड़क बड़ा डंडा से देवताओं के दर्शन किए।