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त्रिपुरा की जंग में ‘राजा’ बनेंगे किंगमेकर, टिपरा मोथा की वजह से बीजेपी की राह होगी मुश्किल या आसान, क्या कह रहे अभी तक के रूझान?

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है। लेकिन शुरुआती रूझानों में पहले तो बीजेपी राज्य में आसानी से बहुमत पाती दिख रही थी। जैसा की एग्जिट पोल में भी दावा किया जा रहा था। लेकिन फिर वक्त के साथ बीजेपी की सीटें कम होती गई। अभी तक के रूझानों की मानें तो 30 सीटों पर यह गठबंधन संघर्ष कर रहा है। स्थानीय पार्टी टीएमपी भी बढ़त बनाए हुए है। वहीं, 15 सीटों पर लेफ्ट आगे चल रही है।  इस चुनाव की बड़ी कहानी पूर्व शाही प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा के नेतृत्व वाले टिपरा मोथा हैं। इन चुनावों में जिस पार्टी को एक्स-फैक्टर के रूप में देखा जा रहा था, वह 13 सीटों पर आगे चल रही है। भाजपा ने 2018 के राज्य चुनावों में 35 साल के शासन के बाद सीपीएम को हराकर 36 सीटों पर जीत हासिल की थी। अपने सहयोगी आईपीएफटी के साथ इन आंकड़ों की गिनती 44 थी। दिलचस्प बात यह है कि वामपंथी पार्टी का वोट शेयर भाजपा की तुलना में केवल 1 प्रतिशत कम था, लेकिन वह केवल 16 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी।

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राजा बनेंगे किंग मेकर
बीजेपी आदिवासी पार्टी, इंडिजिनस प्रोग्रेसिव फ्रंट ऑफ त्रिपुरा या आईपीएफटी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। लेकिन मुख्यमंत्री माणिक साहा ने कहा है कि वे पिछली बार की तरह बिना किसी सहयोगी की मदद के बहुमत हासिल करेंगे।  पार्टी टिपरा मोथा तक भी पहुंची थी, लेकिन आदिवासी बहुल पार्टी की अलग राज्य की मांग को लेकर बातचीत विफल रही। पश्चिम बंगाल और केरल जैसे कई राज्यों में अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के साथ सेना में शामिल होने के सीपीएम के कदम को संख्या हासिल करने के लिए एक बेताब प्रयास के रूप में देखा जाता है। पिछले पांच वर्षों में, दोनों पार्टियों को समर्थन आधार में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा है। सीपीएम राज्य की 60 में से 47 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि कांग्रेस के लिए 13 सीटें बची हैं।

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टिपरा मोथा का उभार
त्रिपुरा की एक अन्य क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा ने 2021 में हुए त्रिपुरा ट्राइबल ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTADC) के चुनावों में ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की अपनी मांग के साथ सफलतापूर्वक जीत हासिल की। ऐसा लगता है कि पार्टी के संस्थापक प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने आईपीएफटी का अधिकांश वोट हासिल कर लिया है, जिसने अलग राज्य की अपनी मांग को छोड़ कर स्वदेशी लोगों का विश्वास खो दिया है। खबरों की मानें तो राजा साहब यानी प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा बीजेपी के साथ भी जा सकते हैं। ऐसे संकेत मिले हैं। 

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