सनातन संस्कृति में सप्तपुरी के नाम से प्रतिष्ठित अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण होना भारतवासियों के पांच सदियों का सपना साकार होना है। 22 जनवरी की तारीख वह शुभ दिवस है, जिसदिन देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भगवान श्री राम की प्राणप्रतिष्ठा कराएंगे। पांच सदियों का सपना, संघर्ष, समर्पण और सहयोग का परिणाम सामने आ रहा है। आज अयोध्या नगरी तो पूरी तरह से राममय है ही पूरा देश राम की भक्ति में लीन है तो दुनिया में भी भगवान श्री राम गुंजायमान हो रहे हैं।
श्री राम एक ऐसे आदर्श के रूप में स्थापित हैं, जो जन-जन के भगवान हैं और कणकण में विद्यमान हैं। भगवान राम निषादराज केवट के राम, माता शबरी के राम, महानभक्त हनुमान के राम, पक्षीराज जटायु के राम, भाई भरत के राम, वनवासियों के राम और प्रजावत्सल राजा राम के रूप में हर भारतीयों के हृदय में बसे हैं।
सन 1528 से शुरू हुए विवाद से लेकर समाधान तक का सफर आसान नहीं रहा। राम मंदिर का आंदोलन भारत के इसिहास का सबसे बड़ा आंदोलन रहा, ये लड़ाई आज़ादी के बहुत पहले से चली आ रही थी। इस आंदोलन को भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन का सुखद परिणाम अगस्त 2020 में उस समय मिला जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने भूमि पूजन किया। यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन था जो सही मायने में जन आंदोलन के रूप में भी याद किया जाएगा। यह 1528 में शुरू हुए 491 साल पुराने संघर्ष की परिणति को दर्शाता है। राम जन्मभूमि आंदोलन महज राजनीति से कहीं ऊपर रहा है। यह लोगों के विश्वास और अतीत में लड़ने में विफलता का निवारण करने की उनकी इच्छा में गहराई से निहित है।
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भगवान राम शौर्य और सदाचार के प्रतीक हैं, जो आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श भाई, आदर्श मित्र और आदर्श राजा के रूप में हर भारतियों के हृदय में वास करते हैं। वह भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्री राम की कल्पना गुणों के एक आदर्श के रूप में की जाती है, जिसके कारण उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के नाम से जाना जाता है। हमारा समाज मजबूत मूल्य प्रणाली पर आधारित है, जो भगवान राम के इर्द-गिर्द घूमती है।
आज भी रामायण के आधार पर परिवार के सदस्यों से निस्वार्थ, ईमानदार, साहसी होने और सत्यनिष्ठा के उच्च मानक बनाए रखने का आग्रह किया जाता है। रामायण का पाठ करने का उद्देश्य परिवार के सदस्यों, विशेषकर बच्चों को जीवन में सद्गुणों को अपनाने के महत्व के बारे में जागरूक करना था। हिन्दू धर्म में लोगों का अभिवादन राम-राम कहकर करना आम बात है। ऐसा माना जाता है कि यह आह्वान आत्मज्ञान प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है। ऐसा माना जाता है कि राम राम शब्द का जाप करने से हम पाप करने से बच सकते हैं । यह ब्रह्मांड में मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं से हमारी रक्षा करता है। हिंदुओं के जीवन में राम का प्रभाव ऐसा है। राम जन्मभूमि आंदोलन राष्ट्र की सामूहिक चेतना का परिणाम था। इस तथ्य के पर्याप्त ऐतिहासिक साक्ष्य हैं कि अयोध्या राम का जन्मस्थान है और अब ध्वस्त बाबरी मस्जिद के स्थान पर एक मंदिर था।
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हजारों हिंदू, जो राम मंदिर चाहते थे, अपने देवता के प्रति प्रेम से द्रवित हो गए। राम कथा मंडल, विभिन्न कीर्तन मंडल और कृष्ण भजन मंडल आदि जैसे धार्मिक-सांस्कृतिक सार्वजनिक स्थान जहां लोग इकट्ठा होते थे और विभिन्न राष्ट्रीय और राजनीतिक विषयों पर चर्चा करते थे, राम जन्मभूमि आंदोलन को सुविधाजनक बनाते थे। वह आंदोलन राम की सांस्कृतिक चेतना और स्मृतियों को पुनर्जीवित करके आम जनता से जुड़ा, जिसे देश के सार्वजनिक क्षेत्रों में प्रसारित और पुष्ट किया गया।
रामजन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं के लिए आस्था का विषय है। राम मंदिर राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक समागम का प्रतीक होगा। प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के शब्दों में राम मंदिर भारतीय संस्कृति के आधुनिक प्रतीक के रूप में काम करेगा। राम मंदिर हमारी शाश्वत आस्था, राष्ट्रीय भावना और करोड़ों हिंदुओं की सामूहिक इच्छाशक्ति का प्रतीक है । राम हमारी संस्कृति का आधार हैं। अपने अस्तित्व को मिटाने की तमाम कोशिशों के बावजूद राम आज भी हमारे दिलों में हैं। राम राज्य की स्थापना महात्मा गांधी के सपने में शामिल था। यह राष्ट्र को एकजुट करने और उसके वर्तमान को उसके अतीत से जोड़ने का एक साधन होगा। अयोध्या में राम मंदिर एक अनुस्मारक के रूप में खड़ा रहेगा कि हमारे पूर्वजों ने इसके लिए कई पीढ़ियों का बलिदान दिया है और हमें इस पर खरा उतरने की जिम्मेदारी सौंपी है।
विश्व हिंदू परिषद ने राम जन्म भूमि आंदोलन की शुरुआत की तो धीरे-धीरे यह जन आंदोलन बनता चला गया । मंदिर निर्माण के लिए संघ और उसके दूसरे संगठन जमीनी स्तर पर काम कर रहे थे। उधर, राजनीतिक रूप से भाजपा राजनीतिक रणक्षेत्र में इस मुद्दे को धार दी। उस दौर के लगातार बदलते राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच लालकृष्ण आडवाणी सबसे अहम राजनीतिक शख्सीयत बन चुके थे। भाजपा और संघ परिवार राम मंदिर निर्माण के लिए जनमत बनाने के प्रयासों में जुटे रहे। राम मंदिर निर्माण को लेकर समर्थन जुटाने के लिए आडवाणी ने 25 सितंबर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ से रथयात्रा शुरू की, जिसे विभिन्न राज्यों से होते हुए 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुंचना था। आडवाणी वहां कारसेवा में शामिल होने वाले थे। यह रथयात्रा अयोध्या तक नहीं पहुंच पाई। बिहार में पहुंचने के बाद आडवाणी को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर 23 अक्तूबर को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। इस बीच अयोध्या में 21 अक्तूबर से कारसेवक इकट्ठा होने लगे।
मुझे आज व्यक्तिगत रूप से भी प्रसन्नता है कि मेरे पूज्य पिता महान समाजसेवी और शिक्षाविद एवं प्रथम पीढ़ी के स्वयंसेवक प्रचारक पं. गणेश प्रसाद मिश्र जी भी उन कारसेवकों में शामिल थे, जिन्होंने राम मंदिर के लिए संघर्ष किया था। उस समय हर जिले से सीमित व प्रशिक्षित कारसेवकों को ही बुलाया गया था, जिसमें पं. गणेश प्रसाद मिश्र भी शामिल थे। 30 अक्तूबर को आचार्य वामदेव, महंत नृत्य गोपालदास और अशोक सिंहल की अगुवाई में कारसेवक विवादित स्थल की ओर कूच करने लगे। उन्हें बाबरी मस्जिद के पास पहुंचने से रोकने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने गोली चलाने का आदेश दिया था । इसमें कई कारसेवक मारे गये। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कोठारी बंधुओं ने बाबरी मस्जिद पर भगवा झंडा फहरा दिया था। 2 नवंबर 1990 को कारसेवकों ने फिर विवादित स्थल की ओर पहुंचने की कोशिश की। इस बार फिर सरकार ने गोली चलवाई और कई कारसेवक मारे गए।
श्रद्धेय आडवाणी जी और जोशी जी जैसे अग्रिम पंक्ति के लोग तो जीवनकाल में मंदिर बनता देख रहे हैं, लेकिन अशोक सिंघल जी, महंत रामचंद्र परमहंस जी, बाला साहेब ठाकरे, महंत अवैधनाथ जी, अटल बिहारी वाजपेयी जी, कल्याण सिंह जी आदि साक्षी नहीं बन सके, जिसकी कसक हम सभी को है।