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देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा द्वारा समान नागरिक संहिता विधेयक पारित किए जाने की पृष्ठभूमि में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शुक्रवार को कहा कि देश में केंद्रीय स्तर पर यूसीसी लाने की योजना को ठंडे बस्ते में डाले जाने के बाद भाजपा इस विधेयक को उत्तराखंड में लाई ताकि आगामी आम चुनावों के दौरान महंगाई, बेरोजगारी जैसे असली मुद्दों से जनता का ध्यान हट जाए। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यूसीसी पूरी तरह से राजनीतिक कारणों से आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए लाया गया है ताकि जनता का ध्यान बेरोजगारी, महंगाई, बिगड़ती कानून-व्यवस्था, महिला उत्पीड़न, भ्रष्टाचार जैसे असली मुद्दों से हटाया जा सके।
उन्होंने कहा, ‘‘यह केवल एक राजनीतिक शिगूफा है।’’ रावत ने यहां कहा कि भाजपा ने पहले राष्ट्रीय स्तर पर यूसीसी लाने का प्रयास किया और मामले को राष्ट्रीय विधि आयोग को सौंप दिया। रावत ने यहां पीटीआई- से एक खास बातचीत में कहा, ‘‘इसके बाद यूसीसी को केंद्रीय स्तर पर लाने की योजना ठप कर दी गयी और इसे लाने के लिए उत्तराखंड को चुना गया।’’ उन्होंने दावा किया कि पूर्वोत्तर सहित कई जगहों पर आदिवासी समुदायों द्वारा अपनी परंपराओं में इसे हस्तक्षेप मानते हुए इसका विरोध किया गया जबकि गुरूद्धारा प्रबंधक कमेटी और दक्षिण भारत से भी इसके विरोध में स्वर उठे। उन्होंने कहा कि आदिवासी समूहों की नाराजगी को समाप्त करने के लिए ही भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया।
उत्तराखंड विधानसभा आजाद भारत के इतिहास में समान नागरिक संहिता का विधेयक पारित करने वाली पहली विधानसभा बन गई है। अब अन्य सभी विधिक प्रक्रिया और औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी जिसके बाद उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा। यूसीसी के लिए उत्तराखंड को चुने जाने के कारणों के बारे में पूछे जाने पर रावत ने कहा कि यहां मुख्यमंत्री (पुष्कर सिंह धामी) यूसीसी लाने के लिए बहुत इच्छुक थे क्योंकि छोटा राज्य होने के कारण यहां अल्पसंख्यकों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम होने के चलते यहां बहुत कम प्रतिक्रिया होने की आशंका थी। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि राज्य में प्रसिद्ध हिंदु देवस्थलों जैसे बदरीनाथ, केदारनाथ के स्थित होने के कारण पूरे देश से लोग यहां आते हैं जिससे उनका धुव्रीकरण करना आसान है।
उन्होंने कहा, ‘‘ उत्तराखंड टोकनिज्म(प्रतीकात्मकता) के लिए एक आदर्श जगह है।’’ वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि उत्तराखंड में यूसीसी आने से देश में एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है क्योंकि अब विभिन्न राज्यों में सत्ता में आने वाला समुदाय, दूसरे समुदायों की परंपराओं में हस्तक्षेप करने का प्रयास कर सकता है। इस संबंध में उन्होंने मणिपुर में कूकी, मैतेई या तमिलनाडु में द्रविड़ों और हिंदुओं का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे देश में विभिन्न समुदाय अपने—अपने रीति—रिवाजों का पालन करते हैं और इस प्रकार के कानून का इस्तेमाल एक विशेष समुदाय में हस्तक्षेप के लिए किया जा सकता है। इससे एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है जो देश के लिए अच्छा नहीं है।’’
रावत ने हालांकि माना कि भाजपा द्वारा यूसीसी लागू करने की घोषणा, 2022 के विधानसभा चुनावों के परिणामों को प्रभावित करने वाले कारणों में से एक रही। चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मुख्यमंत्री धामी ने सत्ता में आने के बाद प्रदेश में यूसीसी लागू करने की घोषणा की थी। चुनाव के बाद आए नतीजों में भाजपा ने 70 में से 47 सीटों पर कब्जा कर लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का इतिहास बनाया था। रावत ने कहा कि प्रदेश की जनता को यूसीसी से कुछ हासिल नहीं होगा बल्कि इससे राज्य से बाहर रहने वाले लोगों को दोहरे कानून का सामना करना पड़ेगा। ससुराल में बहुओं पर अपने मायके से संपत्ति मांगने का अनावश्यक दबाव पड़ेगा और परिवारों में बिखराव बढ़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदुओं के लिए विवाह और उत्तराधिकार संबंधी कानून पहले से ही हैं जबकि जनजातियों को इस विधेयक के दायरे से पहले ही बाहर रखा गया है। उन्होंने सवाल किया कि क्या यह कानून लिव—इन संबंधों के लिए लाया गया है?
उन्होंने कहा, ‘‘यूसीसी का मूल लक्ष्य अल्पसंख्यकों में शादी, विवाह, उत्तराधिकार, गोद लेने का अपना जो वैयक्तिक कानून हैं, उसमें हस्तक्षेप करना है। रावत ने इस विधेयक को जल्दबाजी में पारित कराए जाने का भी आरोप लगाया और कहा कि इतने लंबे विधेयक को पढ़ने का समय ही नहीं दिया गया और कांग्रेस सदस्यों की इसे प्रवर समिति को सौंपे जाने की मांग भी नहीं मानी गयी। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘सरकार ने बहुमत के आधार पर इसे पारित करवा लिया।’’ प्रदेश में जनसांख्यिकीय बदलाव के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि प्रदेश की ज्यादातर जनसंख्या साढ़े तीन जिलों—देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर और आधे नैनीताल में सिमटी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘इन जिलों में पहाड़ से लोग आ रहे हैं और निकटवर्ती उत्तर प्रदेश के जिलों से भी। तो यहां हर तरह का असंतुलन है, विकास का भी और अमीर—गरीब के बीच का भी।’’ रावत ने कहा कि जनसंख्या के पिछले आंकड़ों के हिसाब से मुसलमानों और हिंदुओं में जनसंख्या वृद्धि की दर करीब—करीब बराबर है। उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया था जो बुधवार को ध्वनि मत से पारित हो गया।