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‘वही होता है जो मंजूर-ए-मोदी और शाह होता है’, स्पीकर के फैसले पर उद्धव गुट ने कहा- कानूनी लड़ाई लड़ेंगे

एकनाथ शिंदे के लिए एक बड़ी जीत में, महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने बुधवार को फैसला सुनाया कि उनके नेतृत्व वाला शिवसेना गुट वैध था क्योंकि उन्हें पार्टी के बहुमत विधायकों का समर्थन प्राप्त था। उन्होंने यह भी फैसला सुनाया कि शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि तत्कालीन शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु के पास विधानमंडल की बैठक बुलाने का कोई अधिकार नहीं था। यह उद्धव ठाकरे गुट के लिए बड़ा झटका है। 
 

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इसी को लेकर शिवसेना (यूबीटी) ओर से प्रतिक्रिया दी गई है। सांसद प्रियंका चतुवेर्दी ने कहा कि मैं बिल्कुल भी आश्चर्यचकित नहीं हूं। हमने सुना था ‘वही होता है जो मंजूर-ए-खुदा’ होता है’…2014 के बाद एक नई परंपरा शुरू हुई है, ‘वही होता है जो मंजूर-ए-नरेंद्र मोदी और अमित शाह होता है’। उन्होंने कहा कि यही हम महाराष्ट्र में होते हुए देख रहे हैं…यह नैतिकता के साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण समझौता है। जिस चीज़ को सुप्रीम कोर्ट ने ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ कहा था, उसे ‘कानूनी’ में बदला जा रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। 
संजय राउत ने साफ तौर पर कहा कि यह मैच फिक्स था। उन्होंने कहा कि जनता के बीच से शिवसेना को नहीं खत्म किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हम इस मामले को लेकर लड़ते रहेंगे। साथ ही साथ उन्होंने कहा कि भाजपा की गोद में बैठकर कुछ लोग बाला साहब ठाकरे की भावनाओं से खेल रहे हैं। उन्हें चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह भाजपा की साजिश है और यह उनका सपना था कि एक दिन हम बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को खत्म कर देंगे। लेकिन शिवसेना इस एक फैसले से खत्म नहीं होगी…हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
 

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महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने बुधवार को कहा कि 21 जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी समूहों का उदय हुआ तो शिवसेना का एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला धड़ा ही ‘असली राजनीतिक दल’ (असली शिवसेना) था। शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले प्रतिद्वंद्वी धड़े द्वारा एक-दूसरे के विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर अपना फैसला पढ़ते हुए नार्वेकर ने यह भी कहा कि शिवसेना (यूबीटी) के सुनील प्रभु 21 जून, 2022 से सचेतक नहीं रहे। विधानसभा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि शिवसेना के ‘प्रमुख’ के पास किसी भी नेता को पार्टी से हटाने की शक्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग को सौंपा गया 1999 का पार्टी संविधान मुद्दों पर फैसला करने के लिए वैध संविधान था। उन्होंने कहा कि इस संविधान के अनुसार ‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी’सर्वोच्च निकाय है।

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