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श्रीराम के अयोध्या में आते ही बरसों पुराने मुद्दे सुलझने लगे हैं, Gyanvapi के दरवाजे भक्तों के लिए खुलने लगे हैं

भगवान राम अयोध्या स्थित अपने दिव्य भव्य और नव्य मंदिर में क्या विराजमान हुए, देश के बरसों पुराने मुद्दे सुलझने लगे हैं। अभी पिछले सप्ताह ही वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर के बारे में एएसआई की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि वहां पहले हिंदू मंदिर था जिसे ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण किया गया। उसके बाद देशवासियों का मन आज तब खुशी से झूम उठा और चारों ओर हर हर महादेव के नारे लगने लगे जब उत्तर प्रदेश के वाराणसी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में स्थित व्यास जी के तहखाने में हिंदुओं को पूजा—पाठ करने का अधिकार देने का आदेश दे दिया। जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने तहखाने में पूजा पाठ करने का अधिकार व्यास जी के नाती शैलेन्द्र पाठक को दे दिया है। बताया जा रहा है कि प्रशासन सात दिन के अंदर पूजा—पाठ कराने की व्यवस्था करेगा और पूजा कराने का कार्य काशी विश्वनाथ ट्रस्ट करेगा।
हम आपको बता दें कि अदालत द्वारा दिये गये आदेश में कहा गया है, ‘जिला मजिस्ट्रेट वाराणसी / रिसीवर को निर्देश दिया जाता है कि वह सेटेलमेंट प्लॉट नं. 9130 थाना—चौक, जिला वाराणसी में स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने, जोकि वादग्रस्त सम्पत्ति है, वादी तथा काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के द्वारा निर्दिष्ट पुजारी से पूजा, राग—भोग, तहखाने में स्थित मूर्तियों का कराये और इस उद्देश्य के लिये सात दिन के भीतर लोहे की बाड़ आदि में उचित प्रबंध करें।’ हम आपको यह भी बता दें कि ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यासजी के तहखाने में पूजा—पाठ किये जाने संबंधी आवेदन पर जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में दोनों पक्ष की तरफ से मंगलवार को बहस पूरी कर ली थी। हिन्दू पक्ष का कहना था कि नवंबर 1993 तक सोमनाथ व्यास जी का परिवार उस तहखाने में पूजा पाठ करता था, जिसे तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के शासनकाल में बंद करा दिया गया था और अब वहां फिर से हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिलना चाहिये। इस पर मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि व्यास जी का तहखाना मस्जिद का हिस्सा है लिहाजा उसमें पूजा—पाठ की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत के फैसले के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया है कि ज्ञानवापी के सामने बैठे नंदी महाराज के सामने से रास्ता खोला जाएगा।

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वहीं हिंदू पक्ष के याचिकाकर्ताओं ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि हमें पूजा पाठ का अधिकार चाहिए था जोकि हमें मिल गया है यह बहुत खुशी की बात है। वहीं धर्मगुरुओं की भी प्रतिक्रियाएं इस मुद्दे पर आने लगी हैं। मुस्लिम पक्ष ने जहां अदालत के फैसले को निराशाजनक बताते हुए इसे चुनौती देने की बात कही है वहीं हिंदू पक्ष ने कहा है कि न्याय की जीत हुई है।

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