कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर जल रहे अलाव के पास आग सेंक रहे लोग हों, या फिर दुकानों पर चाय की चुस्की मार रहे सियासतबाज हों। हर किसी की जुबान पर इन दिनों दिल्ली विधानसभा चुनाव के चर्चे हैं। पिछले कई चुनाव से राजधानी दिल्ली में मतदान कर रहे मतदाताओं के सामने भी यह सवाल है कि आखिर किस राजनीतिक दल पर भरोसा करें। जो मतदाताओं की मूलभूत जरूरतों के साथ देश की राजधानी दिल्ली के विकास को पटरी पर लेकर आएं।
पूर्वांचल के मतदाता के मुद्दे
बता दें कि दिल्ली में पूर्वांचल के वोटरों का एक बड़ा वर्ग है। वैसे तो हर सीट पर इन मतदाताओं की बड़ी हिस्सेदारी है। लेकिन 16 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर 20 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी होने के कारण पूर्वांचल के वोटर निर्णायक माने जाते हैं। पूर्वांचल के वोटरों की मानें, तो राजनीतिक दलों के वाले नहीं बल्कि इस बार उनकी नियत का भी आकलन करके वोट करेंगे। वह पार्टी या प्रत्याशी का पूरा बायोडाटा चेक करेंगे। उसके बाद उन लोगों को चुनेंगे, जो मुद्दों को उठाने की क्षमता रखता होगा। पूर्वांचल के मतदाताओं का मकसद सड़क से लेकर सीवर, नाली और मोहल्ले साफ-सुथरे हों।
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इसके साथ ही बच्चों को पढ़ने के लिए बढ़िया स्कूल मिलेंगे। लोगों को बढ़िया रोजगार के अवसर मिलें और पीने के लिए साफ पानी मिले। पूर्वांचल के मतदाता अपने इन मुद्दों पर एकजुट रहते हैं। बता दें कि साल 1998 में पूर्वांचली वोटरों को साधने के लिए कांग्रेस ने शीला दीक्षित को आगे किया था। जिसका फायदा यह हुआ कि 15 सालों तक कांग्रेस दिल्ली की सत्ता में रही। फिर जब साल 2013 में यही पूर्वांचली वोटर आप पार्टी के साथ जुड़ेंगे, तो आप पार्टी ने सरकार बना ली। ऐसे में पूर्वांचल के वोटरों को साथ लाने के लिए दिल्ली के तीनों राजनीतिक दल रणनीति बनाने में लगे हैं। ऐसे में अब यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि इस बार पूर्वांचल के वोटर किसके साथ है।