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Karnataka Assembly Election के लिए बुधवार को डाले जाएंगे वोट, भाजपा और कांग्रेस के बीच है जबरदस्त टक्कर

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के लिए राज्य में 10 मई को वोट डाले जाएंगे। लगभग 1 महीने तक कर्नाटक में जबरदस्त चुनाव प्रचार चला। कर्नाटक में 224 विधानसभा की सीटें हैं। इन 224 विधानसभा सीटों के लिए 58545 मतदान केंद्रों पर वोट डाले जाएंगे। कर्नाटक चुनाव में 2,615 उम्मीदवार चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। राज्य के कुल 5,31,33,054 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकेंगे। उम्मीदवारों में 2,430 पुरुष, 184 महिलाएं और एक उम्मीदवार अन्य लिंग से हैं। राज्य में 11,71,558 युवा मतदाता हैं, जबकि 5,71,281 दिव्यांग और 12,15,920 मतदाता 80 वर्ष से अधिक आयु के हैं। 13 मई को राज्य में चुनावी नतीजे आएंगे। 
 

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कर्नाटक में प्रचार के दौरान जबरदस्त तरीके से गर्मा गर्मी देखी गई। सत्तारूढ़ भाजपा ने जहां अपनी पूरी ताकत राज्य में झोंक दी तो वही कांग्रेस ने भी सत्ता में आने के लिए खूब मेहनत किया है। हालांकि जनता दल (सेक्युलर) को भी कमजोर नहीं आंका जा सकता है। राज्य में पार्टी किंग मेकर की भूमिका में रह सकती है। भाजपा के लिए काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है, वहीं कांग्रेस के लिए भी बहुत कुछ दांव पर है। इस दक्षिणी राज्य में जीत से कांग्रेस को जहां आगामी विधानसभा चुनावों के लिए ‘संजीवनी’ मिलेगी और केंद्रीय स्तर पर उसकी स्थिति मजबूत होगी वहीं भाजपा के लिए यहां की जीत दक्षिण में पैर पसारने की उसकी उम्मीदों को पंख देगा तथा 2024 से पहले फिर से उसे मजबूत स्थिति में ला खड़ा करेगा। 
 

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भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘करिश्मे’ और ‘डबल इंजन’ सरकार के फायदे गिनाते हुए जनता को साधने की भरपूर कोशिश की। वहीं, कांग्रेस ने पहले बीएस येदियुरप्पा और फिर बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के तहत कथित भ्रष्टाचार को लेकर ‘40 फीसदी कमीशन सरकार’ के मुद्दे को जोरशोर से उठाया। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने ‘पांच गारंटी’ के साथ ही कई कल्याणकारी उपायों और रियायतों की घोषणा की तथा कुल आरक्षण को मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का वादा किया है। हालांकि, इसके घोषणापत्र में बजरंग दल और पहले से ही प्रतिबंधित कट्टरपंथी इस्लामी निकाय पीएफआई जैसे संगठनों पर प्रतिबंध सहित कड़ी कार्रवाई, और मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत कोटा बहाल करने जैसे वादों ने भाजपा को इन्हें अपने पक्ष में भुनाने का मौका दे दिया। इसी उम्मीद में भाजपा ने हिंदुत्व के अपने मुद्दे को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

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