प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी से जानना चाहा कि सेनाध्यक्ष ने कहा है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष से ‘हार्ड पावर’ की प्रासंगिकता की पुष्टि हुई है। इसे कैसे देखते हैं आप? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने कहा है कि रूस-यूक्रेन से भविष्य की लड़ाई छोटी और तेज होने की धारणा गलत साबित हुई है और ‘हार्ड पावर’ की प्रासंगिकता की पुष्टि हुई है। उन्होंने इसके साथ ही रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण और प्रौद्योगिकी के विकास पर जोर दिया है।
उन्होंने कहा कि हम आपको बता दें कि ‘हार्ड पावर’ का अभिप्राय राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक शक्ति से है जिसका इस्तेमाल प्रभावित करने के लिए किया जाता है। हमें जनरल पांडे का भाषण पूरा सुनना चाहिए उन्होंने भारत की ‘विवादित सीमा की विरासत’ के प्रति आगाह किया और ‘ग्रे जोन आक्रमकता’ के सिद्धांत को रेखांकित करते हुए कहा कि यह संघर्ष समाधान के लिए सबसे अधिक अपनाई जाने वाली रणनीति बनती जा रही है। ‘ग्रे जोन आक्रमकता’ सहयोग व सैन्य संघर्ष की बीच की स्थिति है जिसमें में राज्य और गैर राज्यीय शक्तियां मिलकर कार्रवाई करती हैं जो पूर्ण सैन्य कार्रवाई से नीचे का क्रम है।
इसे भी पढ़ें: Prabhasakshi Exclusive: क्या सचमुच अमेरिका से मिली गुप्त सूचना के चलते ही Tawang में China को पछाड़ पाया था भारत?
ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि देखा जाये तो मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष कुछ मूल्यवान सीख देता है। हार्ड पावर की प्रासंगिकता अब भी बनी हुई है क्योंकि जमीन युद्ध का निर्णायक स्थान है और विजय का भाव भूमि केंद्रित है। युद्ध की अवधि को लेकर बनी धारणा पर पुन: मूल्यांकन करने की जरूरत है। कुछ समय पहले जो हम छोटी और तेज गति से होने वाले युद्ध की बात कर रहे थे लगता है कि गलत धारणा साबित हुई है और हमें लंबी अवधि के लिए पूर्ण संघर्ष के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है।