भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता विरोधी लहर की बड़ी बाधा को पार कर मध्य प्रदेश में शानदार वापसी की है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आराम से बुधनी सीट सीट जीत ली। वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता नरोत्तम मिश्रा अपने निर्वाचन दतिया से चुनाव हार गए हैं। अक्सर चर्चा में रहने वाले नरोत्तम मिश्रा की हार ने सभी को हैरान किया है। हार के बाद भी नरोत्तम मिश्र लगातार बड़े संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही साथ उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं का भी आत्मविश्वास बढ़ाया है। उनके बयान सोशल मीडिया पर जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहे हैं।
इसे भी पढ़ें: Madhya Pradesh में स्थित है 500 साल पुराना मंदिर जहां मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने की है इजाज़त
नरोत्तम मिश्रा का एक बयान ‘मैं लौट कर वापस आऊंगा, यह मेरा आपसे वादा है’ चर्चाओं में बना हुआ है। इसको लेकर कहा जा रहा है कि आखिर नरोत्तम मिश्रा क्या संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं? ऐसे में सवाल है कि क्या वह मुरैना जिले की दिमनी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं? दरअसल, दिमनी सीट से नरेंद्र सिंह तोमर को जीत मिली है जो केंद्रीय मंत्री हैं। ऐसे में अगर नरेंद्र सिंह तोमर दिमनी सीट छोड़ते हैं तो वहां से नरोत्तम मिश्रा को उपचुनाव लड़ने का मौका दिया जा सकता है क्योंकि यह सीट दतिया के बगल में ही है। हालांकि भाजपा के लिए यह फैसला करना इतना आसान नहीं रहने वाला है।
लेकिन कहीं ना कहीं नरोत्तम मिश्रा इस हार के बाद भी आराम से बैठने वाले नेताओं में नहीं है। वे लगातार संघर्ष करते रहेंगे। इसके अलावा नरोत्तम मिश्रा का एक और बयान सुर्खियों में है। वह है ‘तेरी जीत से ज्यादा चर्चा मेरी हार के हैं’ इससे भी कई मतलब निकल जा रहे हैं। हालांकि नरोत्तम मिश्रा क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं। यह बात वही बता सकते हैं। राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा को कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र भारती से 7,742 वोटों से हार का सामना करना पड़ा है।
इसे भी पढ़ें: मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ मंगलवार को खरगे से मिलकर सौंप सकते हैं इस्तीफा: सूत्र
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की शानदार जीत के पीछे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मालवा-निमाड़ और ग्वालियर-चंबल क्षेत्रों में उसका प्रभावशाली प्रदर्शन प्रमुख कारकों में से एक है। दतिया भी इसी क्षेत्र में आता है। भाजपा ने रविवार को मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 में से 163 सीट जीतकर दो-तिहाई बहुमत हासिल कर लिया, जबकि कांग्रेस सिर्फ 66 सीट पर सिमट गई। उसने 15 जिलों में फैले मालवा-निमाड़ क्षेत्र के कुल 66 विधानसभा क्षेत्रों में से 48 में जीत हासिल की। 2018 की तुलना में उसे 20 सीट का फायदा हुआ, जबकि कांग्रेस की संख्या 17 रह गई।