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Prabhasakshi Exclusive: Jammu में आतंकवादी गतिविधियों के बढ़ने का कारण क्या है? दुश्मन का ‘जम्मू प्लान’ कैसे विफल हो सकता है?

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि जम्मू क्षेत्र में जिस तरह आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं उसके कारण और इस समस्या का समाधान क्या है? हमने यह भी जानना चाहा कि जिस तरह से विदेशी हथियारों का इस्तेमाल आतंकवादी कर रहे हैं वह हमारे लिये कितनी खतरनाक स्थिति है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसा कहा जा रहा है कि यह वाकई चिंताजनक स्थिति है क्योंकि पूर्णतया शांत रहने वाला क्षेत्र इस समय आतंक के साये में है। उन्होंने कहा कि हाल ही में तीर्थयात्रियों की बस पर हमले के बाद से जिस तरह लगातार सेना को निशाना बनाया जा रहा है वह दर्शाता है कि पाकिस्तान की हिमाकत बढ़ रही है और वह जम्मू तक अपनी पहुँच को दर्शा कर भारत को चेतावनी देना चाहता है। उन्होंने कहा कि चिंताजनक बात यह है कि अगर विदेशी आतंकवादी कठुआ तक पहुँच सकते हैं तो कल को वह पंजाब और हिमाचल भी पहुँच सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह साफ दर्शाता है कि सुरक्षा मामलों में हमसे चूक हुई है और गलतियों को शीघ्र सुधारे जाने की जरूरत है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि बताया जा रहा है कि तीन से चार विदेशी आतंकवादियों ने कठुआ हमले को अंजाम दिया। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि वे उसी समूह का हिस्सा हैं जो बसनगढ़ हमले में शामिल थे। उन्होंने कहा कि सवाल यह उठता है कि इतनी निगरानी के बावजूद यह आतंकवादी घुस कैसे गये और घुस गये तो वारदात करके भाग कैसे गये? उन्होंने कहा कि देखा जाये तो जम्मू क्षेत्र, जो अपने शांतिपूर्ण माहौल के लिए जाना जाता है, हाल के महीनों में आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों की एक श्रृंखला से दहल गया है। ये हमले सीमावर्ती जिले पुंछ, राजौरी, डोडा और रियासी में हुए हैं। उन्होंने कहा कि आतंकी गतिविधियों में हालिया वृद्धि उनके पाकिस्तानी आकाओं द्वारा आतंकवाद को फिर से बढ़ावा देने के प्रयासों का परिणाम है। 

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक जम्मू-कश्मीर में विदेशी हथियारों के इस्तेमाल की बात है तो वह वाकई चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ सालों से आतंकवादियों द्वारा अमेरिका निर्मित एम4 कार्बाइन असॉल्ट राइफलों का उपयोग करना हैरानी भरा भी है। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों की यह प्रवृत्ति ‘‘चिंताजनक’’ है, क्योंकि 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद उनके ‘‘बचे हुए’’ हथियार पाकिस्तानी आकाओं के जरिये घाटी में आतंकवादियों तक पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि एम4 कार्बाइन एक हल्का, गैस चालित, एयर-कूल्ड, मैगजीन युक्त और कंधे पर रखकर फायर किया जाने वाला हथियार है जिसका इस्तेमाल 1994 से किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 1980 के दशक से अब तक 500,000 से ज्यादा एम4 असॉल्ट राइफलों का उत्पादन हुआ है और यह कई संस्करणों में उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि इस राइफल से एक मिनट में 700 से 970 गोलियां दागी जा सकती हैं और इससे 500 से 600 मीटर दूर लक्ष्य को भी सटीकता से निशाना बनाया जा सकता है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा इन असॉल्ट राइफलों का बार-बार इस्तेमाल, 2021 में अफगानिस्तान से बाहर निकलते समय अमेरिकी सेना के हथियार और गोला-बारूद पीछे छोड़ जाने का परिणाम है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने अफगानिस्तान से निकलते समय हथियारों और गोला-बारूद का एक बड़ा भंडार पीछे छोड़ दिया था। उन्होंने कहा कि अमेरिकियों का दावा है कि उन्होंने इन हथियारों में से अधिकांश को नष्ट कर दिया लेकिन मुझे लगता है कि ये हथियार आतंकवादियों के हाथों में पड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ‘इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस’ (आईएसआई) ही है जो जम्मू-कश्मीर में अपने ‘नापाक मंसूबों’ को आगे बढ़ाने के लिए आतंकवादियों को एम4 कार्बाइन राइफल जैसे अत्याधुनिक हथियारों की मदद दे रही है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सेना के बचे हुए हथियार अब आईएसआई के हाथ लग गए हैं और वह इनका इस्तेमाल आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने के लिए कर रही है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है, सेना पर सबको विश्वास रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हालात से निबटने के लिए सेना के विशेष बल ‘पैरा’ इकाई के कर्मियों को विशिष्ट क्षेत्रों में ‘सर्जिकल ऑपरेशन’ के लिए तैनात किया गया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा तलाश अभियान दलों के साथ हेलीकॉप्टर और यूएवी निगरानी भी की जा रही है। इसके अलावा, खोजी श्वान दस्तों को तैनात किया गया है और क्षेत्र के विशेष रूप से घने जंगल वाले इलाकों में मेटल डिटेक्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पुलिस और सेना के जवान घडी भगवा वन क्षेत्र में तलाशी अभियान चला रहे हैं, जो डोडा शहर से लगभग 35 किलोमीटर पूर्व में स्थित है और किश्तवाड़ जिले की सीमा पर है। 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि कठुआ में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच एक उच्च स्तरीय अंतरराज्यीय सुरक्षा समीक्षा बैठक भी हुई है। उन्होंने कहा कि दो दशक से पहले जब आतंकवाद बहुत अधिक बढ़ गया था तब भी आतंकवादियों ने इस मार्ग का प्रयोग किया था। हालांकि उस समय इस क्षेत्र को आतंकवादियों से मुक्त कर दिया गया था, लेकिन फिर से आतंकवादी गतिविधियां शुरू होने से सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता होने लगी है।

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