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संविधान और शरीयत पर मचे घमासान का क्या है समाधान? मौलानाओं ने मुस्लिम महिलाओं को फंसा दिया

गुजारा भत्ता पर सुप्रीम कोर्टा का ऐतिहासिक फैसला सामने आया। मुस्लिम महिलाओं के हित में एक और नींव स्थापित होता नजर आया। पहले जिन महिलाओं की कोई नहीं सुनता था। अब उनको इंसाफ मिलने की उम्मीद जागी तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को आपत्ति हो गई। तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के फैसले को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने का ऐलान किया है। दिल्ली में हुई बैठक के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बयान जारी करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले को शाहबानो केस जैसा बताया है। इसके साथ ही कहा है कि ये फैसला शरीयत कानून में मतभेद पैदा करने वाला है। मुस्लिम को मजहब के मुताबिक जिंदगी जीने का पूरा अधिकार है। साथ ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उत्तराखंड के यूसीसी को धार्मिक आजादी के खिलाफ बताते हुए उसे भी चुनौती देने का ऐलान किया है। 

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अपने प्रस्ताव में क्या कहा 

फैसला ‘शरिया’ (इस्लामी कानून) के खिलाफ है। पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने प्रस्ताव में कहा कि बोर्ड ने इस बात पर जोर दिया है कि पैगंबर ने कहा था कि जिन चीजों को करने की इजाजत दी गई है। उसमें तलाक सबसे घृणित है। लिहाजा शादी के रिश्ते को बनाए रखने के लिए सभी वैध उपाए किए जाने चाहिए। साथ ही इसके बारे में कुरान में जो दिशानिर्देश दिए गए हैं, उनका पालन करना चाहिए। हालांकि, अगर वैवाहिक जीवन बनाए रखना कठिन हो जाता है तो तलाक को मानवीय समाधान के तौर पर देखा जा सकता है।  

क्या है शरिया

दुनिया के कई देशों में पूरी तरह तो कई देशों में आंशिक रूप से शरिया कानून लागू है। ये कुरान, हदीस और पैगंबर मोहम्मद की सुन्नतों पर आधारित जीवन जीने का तरीका है। भारत में पर्सनल मामलों में शरिया कानून लागू होता है। वहीं ईरान में सभी फैसले शरिया के मुताबिक होते हैं। 

सीआरपीसी की धारा 125 क्या है 

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 में पत्नी, संतान और माता पिता के भरणपोषण के लिए आदेश को परिभाषित किया गया है। सीआरपीसी की धारा 125 के मुताबिक- 

यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति 

अपनी पत्नी का, जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है 

अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे विवादित हो या न हो, जो अपना भरपोषण करने में असमर्थ है। 

अपने पिता या माता का जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ हैं, भरणपोषण करने में उपेक्षा करता है या भरणपोषण करने से इनकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इनकार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता के भरणपोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निदेश दे।  

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सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के हक में दिया फैसला 

सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को देश की मुस्लिम महिलाओं को ये हक दिया कि तलाक के बाद भी वोअपने पति से मासिक गुजारा भत्ता ले सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट में तेलंगाना के रहने वाले मोहम्मद समद ने एक याचिका दायर की थी। समद ने अपनी पत्नी को तीन बार तलाक बोलकर तलाक दिया था। जिसके बाद उनकी पत्नी ने तेलंगाना की फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि उन्हें क्रिमिनल प्रोसीजर कोर्ट की धारा 125 के तहत अपने तलाकशुदा पति से मासिक भत्ता मिले। जिरह और बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। दोनों न्यायाधीशों ने अलग लेकिन समवर्ती आदेश दिए। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि हम इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा-125 सभी महिलाओं के संबंध में लागू होगी। पीठ ने जोर देकर कहा कि भरण-पोषण दान नहीं, बल्कि हर शादीशुदा महिला का अधिकार है और सभी शादीशुदा महिलाएं इसकी हकदार हैं, फिर चाहे वे किसी भी धर्म की हों। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को धर्मनिरपेक्ष कानून पर तरजीह नहीं मिलेगी। 

योगी का अल्टीमेटम 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ किया है कि यूपी में सबी के लिए कानून एक समान है। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं है। लेकिन अब नियम के तहत ही हर किसी को त्यौहार मनाने होंगे। उन्होंने कहा कि पहले मुहर्रम में सड़के खाली हो जाती थी। उपद्रव होते थे। लेकिन अब उस पर लगाम कसी जा चुकी है।  सीएम ने कहा कि ताजिया के नाम पर लोगों के घर तोड़े जाते थे, लेकिन अब किसी गरीब की झोपड़ी नहीं हटेगी।  सरकार नियम बनाएगी और किसी को त्योहार मनाना है तो नियमों के अंतर्गत मनाए वरना अपने घर बैठ जाए।

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