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Gyanvapi Survey Report: समाज स्वयं सक्रिय, अदालत ही निकालेगी समाधान, ज्ञानवापी को लेकर बीजेपी-RSS ने बदला स्टैंड या तैयार कर ली गई 2027 के जीत की पटकथा?

ज्ञानवापी में हुए एएसआई के सर्वे के दौरान मंदिर या मस्जिद के सच को सामने लाने में ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रेडार (जीपीआर) तकनीक काफी अहम साबित हुई। मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर होने के पुख्ता सबूत इसी तकनीक के जरिए सामने आए हैं। सर्वे में मिली मूर्तियां, खंडित धार्मिक चिह्न, सजावटी ईंटे, दैवीय युगल, चौखट के अवशेष सहित अन्य 250 सामग्रियां को प्रमाण के रूप में एएसआई ने जिलाधिकारी की सुपुर्दगी में कोषागार में जमा कराया है। यह सामग्रियां हिंदू पक्ष के लिए अहम प्रमाण है। विपक्ष ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट के मामले पर चुप्पी बनाए रखी है। आरएसएस और भाजपा ने संकेत दिया कि उन्हें इसमें शामिल होने की कोई जल्दी नहीं है। इस मामले पर अदालतों की पहल का इंतजार किया जाएगा।

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क्या कहती है 839 पेज की वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले की सुनवाई कर रही वाराणसी जिला अदालत को सौंपी गई एएसआई रिपोर्ट  मामले में याचिकाकर्ताओं को सौंप दी गई। रिपोर्ट के अनुसार,मौजूदा ढांचे के निर्माण से पहले वहां एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। इसके कुछ हिस्सों का पुन: उपयोग किया गया था। एएसआई ने 839 पेज की वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट में कहा है कि ज्ञानवापी परिसर में मौजूद ढांचा (मस्जिद) से पहले वहां हिंदू मंदिर था। आर्किटेक्ट, स्ट्रक्चर, बनावट और वर्तमान ढांचा स्पष्ट तौर पर हिंदू मंदिर का भग्नावशेष है। एक अवशेष ऐसा मिला है, जिस पर तीन अलग-अलग भाषाओं में श्लोकों के साथ जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर के नाम लिखे हैं। एक ऐसा स्थान भी मिला है जहां ‘महामुक्ति मंडप’ लिखा है। सर्वे में 34 अवशेष और भग्नावेष और 32 ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जो पूरी तरह दावा कर रहे हैं कि मस्जिद से पहले हिंदू मंदिर था और वर्तमान ढांचा यानी मस्जिद 17 वीं शताब्दी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जो पहले स्ट्रक्चर (हिंदू मंदिर) था, उसे 17वीं शताब्दी में तोड़े जाने के बाद उसके पिलर और अन्य सामग्री का इस्तेमाल मस्जिद वनाने में किया गया।
समाज स्वयं सक्रिय है तो संघ को कुछ करने की क्या जरूरत?
इस मुद्दे के बारे में पूछे जाने पर, आरएसएस के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि 1980 के दशक में संघ को अयोध्या राम मंदिर को एक सक्रिय मुद्दे के रूप में लेना था ताकि लोगों तक पहुंच सके और हमारी चिंताओं को मुख्यधारा में लाया जा सके। उस समय समाज आज की तरह इन चिंताओं के प्रति जागरूक नहीं था। अब, यह समाज ही है जिसने इन सभी सांस्कृतिक चिंताओं को सामूहिक चिंताओं के रूप में लिया है। जब समाज स्वयं सक्रिय है तो संघ को कुछ करने की क्या जरूरत है? अब लोग खुद मामले दर्ज करा रहे हैं और इन मुद्दों पर नियमित रूप से चर्चा भी कर रहे हैं। आरएसएस के एक अंदरूनी सूत्र ने भी यही तर्क देते हुए कहा कि अदालत ने एएसआई से अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट देने को कहा और उसने ऐसा किया है। इस बारे में हमें कुछ खास करने की जरूरत महसूस नहीं होती। समाज में लोगों के बीच चर्चा होगी। ये मामले केवल हमारे नहीं हैं, यह बड़े पैमाने पर समाज का मामला है, और इसने कुछ दिन पहले अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर बहुत उत्साह दिखाया था। लोगों को मुद्दों पर चर्चा करने दें और अदालतों को उनका काम करने दें। 

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अदालत निकालेगी समाधान
बीजेपी के एक सूत्र ने भी लगभग यही बात कही। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि हम इस पर बहुत कुछ करने जा रहे हैं। एएसआई रिपोर्ट ने वही कहा है जो उसने कहा है। अदालतें इस मामले को देखेंगी और अंततः समाधान निकालेंगी, जैसा कि उन्होंने राम जन्मभूमि के मामले में किया था। उत्तर प्रदेश के एक आरएसएस नेता ने तर्क दिया कि संघ परिवार का उद्देश्य समाज को संघ की तरह सोचने वाला बनाना था। धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर सामाजिक चर्चाएँ पहले से ही हो रही हैं। वाराणसी से प्रतिदिन 5,000 बसें अयोध्या के लिए चल रही हैं और सभी सीटें बिक रही हैं। जब समाज स्वयं सांस्कृतिक पुनरुत्थान के मामलों में बहुत रुचि दिखा रहा है तो हमें कुछ अतिरिक्त करने की क्या आवश्यकता है?
हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं देखें…
यह तर्क 2022 में आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत के उस बयान के अनुरूप प्रतीत होता है जिसमें उन्होंने कहा था कि संघ राम जन्मभूमि जैसे अन्य विवादों में कोई आंदोलन शुरू करने के बारे में नहीं सोच रहा है। साथ ही यह भी कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखे। आरएसएस प्रमुख ने कहा था कि मध्यकाल में धार्मिक स्थलों पर आक्रमण और विनाश हुआ था। लेकिन उन्होंने शांति पर जोर दिया। जबकि विहिप के सूत्रों ने यह भी कहा कि संगठन इस बात का इंतजार करेगा कि अदालतें क्या कहती हैं, लेकिन उसके पास एक शर्त है। समाज को समग्र रूप से देखना चाहिए कि हम जो कह रहे थे वह प्रत्येक एएसआई रिपोर्ट के साथ सच के रूप में सामने आ रहा है।

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