दुनिया में जबरदस्त तरीके से हलचल जारी है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से जूझ रही दुनिया के सामने इजराइल और हमास की लड़ाई भी चुनौती बनती दिखाई दे रही है। इस लड़ाई के 80 दिन से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन अब तक शांति की उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। दोनों ओर से हमलों की कोशिश भी जारी है। इसके अलावा ईरान और पाकिस्तान के बीच भी तनातनी की स्थिति दिखाई दे रही है तो वहीं कश्मीर के निचले हिस्से यानी की जम्मू क्षेत्र के कुछ हिस्सों में पिछले दिनों आतंकी घटनाओं में वृद्धि हो गई है जो भारत के लिए चिंता की बात है। इन्हीं तमाम मसलों को लेकर हमने हमेशा की तरह प्रभासाक्षी के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में ब्रिगेडियर डी.एस.त्रिपाठी (आर) जी से बातचीत की। इन तमाम मुद्दों पर उन्होंने विस्तृत जानकारी दी है।
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– इसराइल-हमास युद्ध पर ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि यह लंबा चलेगा। हमास ने रणनीतिक तौर पर अपनी पकड़ को मजबूत कर रखा है। हमास इतनी जल्दी हार नहीं मानने वाला है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हमास की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है। हमास ने 2014 के बाद सरकार तो बनाई लेकिन उसका जो मुख्य फोकस था वह इसराइल पर केंद्रित रहा। भले ही इसराइल ने उसे हल्के में लिया लेकिन हमास लगातार रणनीतिक तौर पर इजरायल के खिलाफ काम करता रहा। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने इस बात पर भी जोर दिया कि इस युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान गाजा को हुआ है। बावजूद इसके हमास का हौसला अब तक कम नहीं हुआ है। उन्होंने इस बात की भी संकेत दिए की शांति वार्ता लगातार पर्दे के पीछे चल रही है जिसमें अरब, इजिप्ट और जॉर्डन अपनी भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि इजराइल लगातार यह दावा करता है कि वह हमास को पूरी तरह खत्म किए बिना नहीं रुकेगा। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि हमास के कितने लोग मारे गए हैं। हमास की संख्या कितनी है और इजराइल को इसमें कितनी सफलता मिली है। इजराइल हर कीमत पर गाजा पर अपना कंट्रोल रखना चाहता है और वह इस दिशा में बढ़ने की कोशिश में है।
– उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान और ईरान के बीच लगातार तनातनी की स्थिति रहती है। ईरान में जो अटैक हुआ है उसको लेकर पाकिस्तान पर उसका गुस्सा होना कहीं ना कहीं इस बात के संकेत भी देता है कि मुस्लिम देशों के बीच भी आपसी रिश्ते ठीक नहीं है। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि एक ओर जहां सुन्नी समुदाय के लोग पाकिस्तान में ज्यादा है तो वहीं शिया समुदाय के लोगों की संख्या ईरान में ज्यादा है। दोनों के बीच के तनाव की मुख्य वजहों में से यह भी एक है। ईरान में जो अटैक हुए उसकी जिम्मेदारी जैश-ए-आदिल ने ली थी। दावा किया जाता है कि जैश-ए-आदिल का जो बेस हैं वह पाकिस्तान में है और यही कारण है कि ईरान पाकिस्तान को लेकर पूरी तरीके से हमलावर है। पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 से ज्यादा किलोमीटर बॉर्डर पड़ता है जो कि पहाड़ों और नदियों से भी घिरा हुआ है। ऐसे में चुनौतियां दोनों देशों के समक्ष ज्यादा है। पाकिस्तान की ओर से ड्रग्स की भी सप्लाई कर दी जाती है और ईरान इसको लेकर तनाव में रहता है। संबंध सुधारने के लिए दोनों देशों के बीच कई बार बातचीत की कोशिश हुई है। बावजूद इसके यह अब तक सफल नहीं हो पाया है। 2012 से दोनों देशों के रिश्तों में तनातनी बरकरार है। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने यह भी संकेत दिया कि जो जैश-ए-आदिल है उसे इजराइल, सऊदी अरब और अमेरिका जैसे देश भी बढ़ावा दे रहे हैं ताकि ईरान पर कंट्रोल किया जा सके।
– रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि जहां भी अमेरिका आएगा, वहां लड़ाई लंबी चलेगी। हमने इराक, सीरिया, अफगानिस्तान में पहले भी यह उदाहरण देखें हैं। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन लड़ाई के 2 साल पूरे होने जा रहे हैं। लेकिन अब तक बीच का रास्ता नहीं निकल सका है। रूस ने लगभग 20% हिस्से पर कब्जा किया है। हालांकि 2% पर कई जगह रूस वापस जरूर आया हैं। बावजूद इसके उन्होंने इस लड़ाई में अपनी बढ़त को मजबूत कर रखी है। वर्तमान की स्थिति में देखें तो रूस अगर आगे नहीं बढ़ रहा है तो वह पीछे भी नहीं हट रहा। त्रिपाठी ने कहा कि अब यूक्रेन को भी उस तरीके से सहायता नहीं मिल रही है जैसे कि युद्ध की शुरुआती समय में मिलती हुई दिखाई दे रही थी। कई यूरोप के देश अब यूक्रेन के समर्थन से पीछे हट रहे हैं। इसका बड़ा कारण यह भी है कि उनकी भी एक लिमिट है और वह इसे क्रॉस करने में सक्षम नहीं हैं। यूक्रेन को जो मदद मिली थी उससे ना तो उसने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप किया और ना ही हथियार को लेकर भी कोई विशेष काम किया गया है। दूसरी ओर रूस को इस लड़ाई में बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। रूस ने इस दौरान अपने मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को मजबूत किया है। हथियार बनाए हैं। रूस जिस उद्देश्य के साथ इस लड़ाई को शुरू किया हुआ है, उसे वह हर हाल में पूरा करके ही रुकेगा। यूक्रेन के राष्ट्रपति के पास बातचीत के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। वहीं रूस शांति के पक्ष में तो है लेकिन अपनी शर्तों के साथ।
– ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि लाल सागर व्यापार के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है। इसमें कई विवाद रहे हैं। लेकिन अब तक इसकी चर्चा ज्यादा नहीं होती थी। लाल सागर से रोज लगभग 30 से 40 जहाज गुजरते हैं। इसकी वजह से वक्त और पैसे की बचत होती है। त्रिपाठी ने यह भी बताया कि इस रास्ते पेट्रोलियम पदार्थों की आवाजाही अधिक मात्रा में होती है। भारत को भी इससे फायदा होता है। विश्व का एक तिहाई ट्रेड इस रास्ते के जरिए किया जाता है। यह एक बोतल नेक की तरह होता है। वहीं यमन पड़ता है और यमन में ही हूती विद्रोही ज्यादा सक्रिय हैं। हूती विद्रोही हमेशा हमास और फिलीस्तीन के समर्थन में खड़े रहते हैं। इसमें उन्हें ईरान और हिस्बुल्लाह का भी समर्थन प्राप्त है। वर्तमान में जो इजरायल द्वारा बंधक बनाए गए हैं उन्हें छुड़ाने के लिए हूती की ओर से इस तरह की कोशिश की जा रही है। लेकिन जो भी इजरायल के पक्ष में होगा, हूती विद्रोही समूह उसके खिलाफ खड़े रहेंगे। हूती पूरी तरीके से इजरायल के खिलाफ रहा है और आज भी है।
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– भारत-रूस संबंध को लेकर ब्रिगेडियर डी.एस.त्रिपाठी ने कहा कि दोनों देशों के संबंध बेहद मजबूत है। हाल में ही विदेश मंत्री एस जयशंकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और वहां के विदेश मंत्री से मुलाकात की है और जिस तरीके से मुलाकात रही है, उससे इस बात का अंदाजा साफ तौर पर लगाया जा सकता है कि दोनों देशों के रिश्ते कितने मजबूत और स्थिर हैं। रूस हमेशा से भारत के लिए खड़ा रहा है। रूस के ऊपर दुनिया में तमाम तरह के जब सैंक्शन लगाए गए हैं तब भी भारत कहीं ना कहीं रूस के लिए बड़ा कारोबारी मित्र देश बनकर उभरा है और यही कारण है कि व्लादिमीर पुतिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तारीफ करना नहीं भूलते। रूस की ओर से भारत के प्रधानमंत्री को निमंत्रण भेजा गया है। इसका मतलब साफ है कि रूस अपने रिश्तों को लगातार मजबूत करके रखना चाहता है।
– हाल में कश्मीर में बढ़े आतंकवादी घटनाओं पर ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि यह चिंता की बात है कि जहां आतंकवाद नहीं हुआ करता था, वहां से घटनाएं सामने आ रही है। कहीं ना कहीं इसमें हमारी भी कमी रही होगी तभी इस तरह की चीजें हो रही हैं। उन्होंने कहा कि इसकी जांच की जानी चाहिए। एक टीम की तरह सभी अधिकारियों को काम करना चाहिए। अगर इसमें इंटेलिजेंस फेलियर है तो इस पर भी अमल किया जाना चाहिए। यह बात सही है कि राजौरी और पुंछ के इलाके आतंकवाद से मुक्त हो चुके थे। लेकिन अगर आतंकवाद इस क्षेत्र में बढ़े हैं तो शायद इनके सरगना को यह लगने लगा होगा कि यहां भारतीय सेना ने अपनी पकड़ को कमजोर किया हुआ है। उन्होंने कहा कि जानबूझकर गलती नहीं होती है। लेकिन अगर कहीं चूक हुई है तो उसे दुरुस्त करने की कोशिश की जानी चाहिए। भारतीय सेना और पैरामिलिट्री के बीच एक कोऑर्डिनेशन होना चाहिए। जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में लगातार विकास के कार्य हुए हैं। ऐसे में आतंकवाद के खिलाफत कार्रवाई लगातार की जानी चाहिए।