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जब लाल किले में घुसे थे लश्कर के 6 आतंकी, जानें 24 साल पहले के अटैक की पूरी कहानी, अब क्यों ये चर्चा में आया

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने करीब 24 साल पुराने लाल किला हमला मामले में दोषी पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ ​​अशफाक की दया याचिका खारिज कर दी।  सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर, 2022 को आरिफ की समीक्षा याचिका खारिज कर दी थी और मामले में उसे दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा था। अधिकारियों ने राष्ट्रपति सचिवालय के 29 मई के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि 15 मई को प्राप्त आतंकवादी की दया याचिका 27 मई को खारिज कर दी गई थी। यह हमला 22 दिसंबर 2000 को हुआ था, जब घुसपैठियों ने लाल किला परिसर में तैनात 7 राजपूताना राइफल्स यूनिट पर गोलीबारी की थी, जिसमें सेना के तीन जवान मारे गए थे। प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) से जुड़े पाकिस्तानी नागरिक आरिफ को हमले के चार दिन बाद दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

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लाल किला अटैक केस क्या है
आरिफ को हमले को अंजाम देने के लिए अन्य आतंकवादियों के साथ साजिश रचने का दोषी पाया गया, ट्रायल कोर्ट ने अक्टूबर 2005 में उसे मौत की सजा सुनाई। दिल्ली उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने बाद की अपीलों में फैसले को बरकरार रखा। ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि लाल किले पर हमले की साजिश श्रीनगर में दो साजिशकर्ताओं के घर पर रची गई थी, जहां आरिफ ने 1999 में तीन अन्य लश्कर आतंकवादियों के साथ अवैध रूप से प्रवेश किया था। तीन आतंकवादी – अबू शाद, अबू बिलाल और अबू हैदर – जो स्मारक में घुस गए थे, अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए। समीक्षा और उपचारात्मक याचिकाओं सहित कई कानूनी चुनौतियों के बावजूद, आरिफ की दया याचिका खारिज कर दी गई, जो अपराध की गंभीरता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे को उजागर करती है।

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आतंकवादी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे
दिल्ली हाई कोर्ट ने सितंबर 2007 में ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की थी। इसके बाद आरिफ ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत ने अगस्त 2011 में भी उसे दी गई मौत की सजा देने के आदेश का समर्थन किया था। बाद में उनकी समीक्षा याचिका सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ के सामने आई, जिसने अगस्त 2012 में इसे खारिज कर दिया। जनवरी 2014 में एक सुधारात्मक याचिका भी खारिज कर दी गई। उसके बाद, आरिफ ने एक याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि इससे उत्पन्न होने वाले मामलों में समीक्षा याचिकाएं दायर की गईं। मौत की सज़ा की सुनवाई तीन जजों की बेंच और खुली अदालत में हो।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने सितंबर 2014 के अपने फैसले में निष्कर्ष निकाला था कि जिन मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा मौत की सजा दी गई थी, ऐसे मामलों को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। सितंबर 2014 के फैसले से पहले, समीक्षा और मौत की सजा पाने वाले दोषियों की सुधारात्मक याचिकाओं पर खुली अदालतों में सुनवाई नहीं की गई, बल्कि चैंबर की कार्यवाही में सर्कुलेशन के जरिए फैसला किया गया। जनवरी 2016 में एक संविधान पीठ ने निर्देश दिया था कि आरिफ एक महीने के भीतर खुली अदालत में सुनवाई के लिए खारिज की गई समीक्षा याचिकाओं को फिर से खोलने की मांग करने का हकदार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर, 2022 को दिए अपने फैसले में समीक्षा याचिका खारिज कर दी।

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