उच्चतम न्यायालय पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अगस्त से रोजाना सुनवाई करेगा। इस खबर से जहां एक ओर जम्मू-कश्मीर के वह परिवारवादी राजनीतिक दल बहुत खुश हैं जिन्होंने दशकों तक बारी-बारी से इस खूबसूरत राज्य को लूटा, तो दूसरी ओर करोड़ों देशवासियों का मन इस आशंका से ग्रसित हो गया है कि 370 लौट आया तो कहीं फिर से हमारा कश्मीर पत्थरबाजी, आतंकवाद और भारत विरोधी नारेबाजी का केंद्र ना बन जाये। यही नहीं, खुद कश्मीर के लोगों में घबराहट है कि यदि 370 लौटा तो कहीं फिर से साप्ताहिक बंद का कैलेण्डर ना जारी होने लग जाये। कश्मीर के लोगों को डर है कि यदि 370 लौटा तो कहीं फिर से धर्मस्थलों से धार्मिक तकरीरों की बजाय राजनीतिक और भड़काऊ भाषण ना दिये जाने लगें। कश्मीर के लोगों को डर है कि यदि 370 लौटा तो कहीं फिर से उनके बच्चों को अलगाववादी बहका कर गलत राह पर ना ले जाने लगें? कश्मीर के लोगों को डर है कि यदि 370 लौटा तो कहीं हाल ही में खुले सिनेमाघरों, मल्टीप्लेक्सों, शॉपिंग मॉलों और मनोरंजन केंद्रों पर ताले ना लग जायें। कश्मीर के लोगों को डर है कि यदि 370 लौटा तो कहीं जी-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का सफल आयोजन घाटी में बंद ना हो जाये।
370 हटने के फायदे
जो लोग जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने का विरोध कर रहे हैं वह अपने तर्क उच्चतम न्यायालय की ओर से गठित संविधान पीठ के समक्ष 2 अगस्त से रखेंगे ही लेकिन आज हम उन्हें बता देना चाहते हैं कि 370 हटने से जम्मू-कश्मीर को क्या-क्या फायदे हुए हैं। अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद से इस केंद्र शासित प्रदेश में विकास के कार्यों की बहार-सी आयी हुई है। विकास के कार्य सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि गांवों में और सुदूर सीमाई इलाकों में भी चल रहे हैं। कश्मीर में पहले से प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों के विकास और सौन्दर्यीकरण के अलावा उन क्षेत्रों को भी पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है जो खूबसूरत होने के बावजूद अभी तक पर्यटक केंद्र नहीं बन पाये थे। आप जरा इस समय श्रीनगर शहर जाकर देखिये यहां स्मार्ट सिटी अभियान के तहत सड़कों का चौड़ीकरण हो चुका है, आकर्षक स्ट्रीट लाइटें नजर आयेंगी, जल निकासी बेहतर हो गयी है। डल झील अपने इतिहास में पहली बार सबसे ज्यादा साफ नजर आ रही है, कश्मीर में देशी-विदेशी पर्यटकों का मेला लग गया है, यहां रोजगार और स्वरोजगार के अवसर बढ़े हैं और केंद्र की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ समाज के हर वर्ग को पारदर्शिता के साथ मिल रहा है। इसके अलावा, जिस कश्मीर में कभी तिरंगा लहराना खतरे से खाली नहीं था वहां आज हर सड़क, हर इमारत और हर घर पर तिरंगा शान से लहराता हुआ नजर आता है। यही नहीं, भारतीय ध्वज का विरोध करने वाले हुर्रियत जैसे अलगाववादी संगठन के कार्यालय पर भी तिरंगा लहरा रहा है। साथ ही, आतंकवाद के प्रति लोगों की सोच में ऐसा परिवर्तन आया है कि अब सुरक्षा बलों के ऑपरेशन की राह में बाधा नहीं पैदा की जाती बल्कि उनकी मदद की जाती है और कई उदाहरण तो ऐसे भी देखने में आये जब ग्रामीणों ने ही आतंकवादियों को दबोच कर उन्हें सुरक्षा बलों को सौंप दिया।
जम्मू-कश्मीर का हो गया कायाकल्प
यही नहीं, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद विकास से जुड़ी परियोजनाएं जब सुदूर गाँवों तक पहुँचने लगीं तो ग्रामीणों के जीवन में बड़ा बदलाव आने लगा। हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं लेकिन कश्मीर के गांवों में रहने वालों को असल आजादी तब मिली जब उन्हें कच्चे घरों से मुक्ति मिली। जम्मू-कश्मीर के तमाम गांवों में आजादी के बाद पहली बार प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत ग्रामीणों को पक्का घर मिल रहा है। आजादी के 75 साल बाद पहली बार सड़क, पुल संपर्क और पक्के मकान पाकर ग्रामीण खुश हैं। अब खुद चलकर मूलभूत सुविधाएं दरवाजे पर आ रही हैं तो लोगों को यकीन नहीं हो रहा है।
यही नहीं, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद से खेल सुविधाओं के विकास की दिशा में जो प्रयास हुए, उसी का ही नतीजा है कि आज कश्मीर घाटी में युवा खेलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। हाल के समय में जम्मू-कश्मीर में जिस तरह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल स्पर्धाओं का आयोजन हुआ है उससे भी यहां के खिलाड़ियों के हौसले बुलंद हुए हैं और उनके मन में भी अपने देश का नेतृत्व करने का भाव जागा है।
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अनुच्छेद 370 का इतिहास
जो लोग अनुच्छेद 370 को बनाये रखने की वकालत करते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जब धारा 370 लागू की थी तो कहा था कि यह अस्थायी अनुच्छेद है। यह घिसते-घिसते घिस जाएगा। लेकिन 70 साल बाद भी यह अनुच्छेद घिसा नहीं। मगर 5 अगस्त 2019 को मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति वाली मोदी सरकार ने इस अस्थायी प्रावधान को जड़ से उखाड़ दिया। जहां तक अनुच्छेद 370 के इतिहास की बात है तो आपको बता दें कि 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने विलय संधि पर दस्तखत किए थे। उसी समय अनुच्छेद 370 की नींव पड़ गई थी, जब समझौते के तहत केंद्र को सिर्फ विदेश, रक्षा और संचार मामलो में दखल का अधिकार मिला था। 17 अक्टूबर 1949 को अनुच्छेद 370 को पहली बार भारतीय संविधान में जोड़ा गया। लेकिन अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में कभी भी लोकतंत्र प्रफुल्लित नहीं हुआ। अनुच्छेद 370 के कारण भ्रष्टाचार फला-फूला, पनपा और चरम सीमा पर पहुंचा। अनुच्छेद 370 के कारण ही गरीबी घर कर गई। 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में लोकतंत्र मजबूत नहीं हो पाया। जम्मू-कश्मीर में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं अनुच्छेद 370 की वजह से नहीं मिल पाईं।
विधि सम्मत तरीके से हुई थी कार्रवाई
इसके अलावा, जो लोग कह रहे हैं कि गलत तरीके से अनुच्छेद 370 को हटाया गया उन्हें पता होना चाहिए कि भारत के राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 (3) के तहत पब्लिक नोटीफिकेशन से धारा 370 को समाप्त करने के अधिकार हैं। संविधान के अनुच्छेद 370(3) के अंतर्गत जिस दिन से राष्ट्रपति द्वारा इस सरकारी गजट को स्वीकार किया जाएगा उस दिन से अनुच्छेद 370 (1) के अलावा अनुच्छेद को कोई भी खंड लागू नहीं होगा। इस तरह राष्ट्रपति को प्राप्त संवैधानिक अधिकार का उपयोग करते हुए इस अनुच्छेद को विधि सम्मत तरीके से हटाया गया।
370 के क्या-क्या दुष्प्रभाव थे?
370 के समर्थकों को यह भी देखना चाहिए कि यह कितनी हैरानी की बात थी कि जम्मू-कश्मीर में दोहरी नागरिकता का प्रावधान था। यहाँ का अलग संविधान और ध्वज था। इसके कारण प्रदेश से बाहर के लोगों के यहाँ जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी पाने और संस्थानों में दाखिला लेने का अधिकार नहीं था। यही नहीं, जम्मू-कश्मीर की विधान सभा का कार्यकाल भी छह साल का होता था। भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में सीमित दायरे में ही कानून बना सकती थी। पहले रक्षा-विदेश मामले और संचार के अलावा किसी कानून के लागू करवाने के लिए केन्द्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती थी। जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी करती थी तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। यही नहीं, 370 के रहते जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी नागरिकों को भी विशेषाधिकार मिले हुए थे। 370 के रहते जम्मू-कश्मीर में सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार जैसे तमाम अधिकारों के साथ ही भारतीय दंड संहिता के कई प्रावधान भी लागू नहीं होते थे लेकिन अब वह दौर बीती बात हो चुकी है। यही नहीं, पहले बाहरी राज्यों का व्यक्ति न तो जम्मू-कश्मीर में मतदाता बनकर मतदान कर सकता था और न ही चुनावों में उम्मीदवार बन सकता था। इसके अलावा भारत के सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी यहां कई मायनों में मान्य नहीं होता था।
बदला हुआ जम्मू-कश्मीर कैसा है?
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद इस केंद्र शासित प्रदेश के वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो यह सर्वविदित है कि भ्रष्टाचार और आतंकवाद की कमर पूरी तरह टूट चुकी है। कश्मीर में आतंकी संगठनों के कमांडर बनकर सोशल मीडिया पर फोटो डालना और भारत सरकार को ललकारना बीते दौर की बात हो चुकी है। जिन छोटे-बड़े नेताओं और अधिकारियों ने सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण किया था उनके अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाया जा चुका है। कश्मीरी पंडित अपने हर त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मना पा रहे हैं। आतंकवाद के दौर में तबाह कर दिये गये धर्मस्थलों का पुनर्निर्माण हो रहा है। साथ ही 370 हटने के बाद से अन्याय, शोषण और भेदभाव को खत्म कर दिया गया है। आज यहां विदेशी निवेश आ रहा है जो आर्थिक उन्नति का संकेत है। आज यहां जमीनी लोकतंत्र मजबूत हुआ है, नए उद्योग आ रहे हैं, तेजी से हो रहा विकास गांवों और किसानों को समृद्ध बना रहा है। बुनियादी ढांचे का तेजी से हो रहा विकास लोगों के जीवन में बड़े परिवर्तन ला रहा है। कश्मीर में पिछले साल रिकॉर्ड 1.8 करोड़ से अधिक पर्यटक यहां आये थे। इस बार के पर्यटन सीजन में पिछले साल का रिकॉर्ड टूटने के आसार हैं। पिछले साल यहां 300 से अधिक फिल्मों की शूटिंग हुई और करीब चार दशक के लंबे विराम के बाद जम्मू-कश्मीर ने बॉलीवुड के साथ अपने संबंध फिर से स्थापित कर लिए और इस साल भी यहां तमाम फिल्मों, धारावाहिकों और वेब सीरीज की शूटिंग चल रही है। 370 हटने के बाद का परिदृश्य यह है कि पूरे जम्मू-कश्मीर में रेल और सड़क परिवहन का ऐसा नेटवर्क बिछाया जा रहा है जिससे हर मौसम में कहीं भी आवाजाही सुनिश्चित हो सकेगी।
बहरहाल, कश्मीर का आज का परिदृश्य देखेंगे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से कही गयी वह बात एकदम सही प्रतीत होती है कि अनुच्छेद 370 और 35ए का देश के खिलाफ कुछ लोगों की भावनाएं भड़काने के लिये, पाकिस्तान द्वारा एक शस्त्र की तरह इस्तेमाल किया जाता था। अब भारत ने पाकिस्तान से उसका अहम शस्त्र ही छीन लिया है तो पाकिस्तान और पाकिस्तान से वार्ता करने की सदैव रट लगाने वाले अब्दुल्लाओं और मुफ्तियों जैसे नेताओं को लग रहा है कि वह निहत्थे हो गये हैं। देखना होगा कि कश्मीर को पुराने दौर में ले जाने पर आमादा नेता क्या अपने तर्कों से अदालत को संतुष्ट कर पाते हैं या फिर अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के तरीके पर सर्वोच्च अदालत की मुहर लग कर यह विवाद हमेशा हमेशा के लिए समाप्त होता है।