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Jan Gan Man: उत्तर भारत के लोग जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग कर रहे हैं, दक्षिणी राज्यों के CM जनसंख्या बढ़ाने का आह्वान कर रहे हैं, ऐसा क्यों?

देश में एक ओर जनसंख्या नियंत्रण कानून लाये जाने की मांग हो रही है तो दूसरी ओर दक्षिण भारत के दो प्रमुख राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी जनता को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह दे रहे हैं। हम आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने राज्य की बुजुर्ग होती आबादी को देखते हुए पिछले हफ्ते कहा था कि लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि उनकी सरकार इसे प्रोत्साहित करने के लिए कानून लाने की योजना भी बना रही है। इसके बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने एक पुराने आशीर्वाद का जिक्र करते हुए लोगों को 16 बच्चे पैदा करने की सलाह और शुभकामना दे डाली। दरअसल दोनों मुख्यमंत्री यह सलाह इसलिए दे रहे हैं क्योंकि जल्द ही देश में संसदीय सीटों का नये सिरे से परिसीमन होना है। इस परिसीमन के मुताबिक दस लाख लोगों की आबादी पर एक सांसद होगा। दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण के मामले में तो बेहतरीन प्रदर्शन कर दिया लेकिन अब इसकी वजह से वहां प्रजनन दर कम हो गयी है जिससे उन्हें डर है कि यदि आबादी के लिहाज से संसदीय सीटों का निर्धारण हुआ तो देश की राष्ट्रीय राजनीति पूरी तरह उत्तर भारत केंद्रित हो जायेगी। 
हम आपको यह भी बता दें कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) द्वारा तैयार इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 के अनुसार, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में बुजुर्गों की आबादी अधिक है। रिपोर्ट कहती है कि 2021 और 2036 के बीच इन राज्यों में बुजुर्गों की दर में बहुत अधिक तेजी से वृद्धि होगी। माना जा रहा है कि केरल की जनसंख्या में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 2021 की 16.5% से बढ़कर 2036 में 22.8% हो जाएगी। तमिलनाडु में 13.7% से बढ़कर 2036 में 20.8% हो जाएगी, आंध्र प्रदेश में 2021 के 12.3% से बढ़कर 2036 में 19% हो जाएगी, कर्नाटक में बुजुर्गों की आबादी 11.5% से बढ़कर 2036 में 17.2% हो जाएगी और तेलंगाना में 2021 के 11% से बढ़कर 2036 में 17.1% हो जाएगी।

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मोटे तौर पर देखें तो 15 साल की इस अवधि में जनसंख्या में बुजुर्गों का अनुपात दक्षिण में 6-7% बढ़ जाएगा जबकि उत्तर में यह लगभग 3-4% होगा। वैसे एक तथ्य गौर करने लायक है कि अधिकांश दक्षिण भारतीय राज्य दुनिया के विकसित देशों की प्रजनन स्तर तक पहुंच गए हैं। इसके अलावा, भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा 2016-19 के लिए एकत्र किए गए उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश में जीवन प्रत्याशा 69.1 वर्ष, केरल में 71.9 वर्ष और तमिलनाडु में 71.4 वर्ष थी। केवल कर्नाटक की जीवन प्रत्याशा दर राष्ट्रीय औसत से थोड़ी कम यानि 67.9 थी। इसके अलावा, एक समस्या यह है कि भारत ने अपनी प्रजनन दर बहुत तेजी से कम की है। हम आपको बता दें कि प्रति महिला छह बच्चों से घटकर दो या एक बच्चे पर आने में फ्रांस को 285 साल लगे, इंग्लैंड को 225 साल लगे लेकिन भारत को इस काम में सिर्फ 45 साल लगे। चीन ने हालांकि इससे भी कम समय में जनसंख्या को नियंत्रित किया लेकिन वहां ऐसा अत्यंत कठोर और दंडात्मक प्रावधानों के चलते संभव हो सका।
इसके अलावा, दक्षिणी राज्यों की चिंता का बड़ा कारण जल्द ही होने वाला लोकसभा सीटों का परिसीमन भी है। यह कार्य जनगणना के तुरंत बाद होगा। हम आपको बता दें कि देश में वर्तमान में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएँ जनसंख्या के अनुसार तय की जाती हैं। यदि जन्म दर स्थिर रहती है तो आंध्र प्रदेश में संसद सीटों की संख्या 25 से घटकर 20, कर्नाटक में 28 से 26, केरल में 20 से 14, तमिलनाडु में 39 से 30 और तेलंगाना में 17 से 15 तक हो जाने की उम्मीद है। वहीं दूसरी ओर, उत्तर के राज्यों की जनसंख्या अधिक होने से उनके निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे उन्हें संसद में बड़ी आवाज मिलेगी। इसके अलावा यदि संसद की सीटें बढ़ाने का फैसला होता है तो भी उत्तरी राज्यों को ही ज्यादा फायदा होगा क्योंकि दक्षिण में जनसंख्या अनुपात के हिसाब से कम सीटें आएंगी।
जहां तक मुख्यमंत्रियों के बयान की बात है तो आपको बता दें कि चंद्रबाबू नायडू ने तो यहां तक कह दिया है कि दो से ज्यादा बच्चे वाला व्यक्ति ही स्थानीय निकाय चुनाव लड़ पायेगा। बताया जा रहा है कि पड़ोसी राज्य तेलंगाना में भी ऐसा कानून लाने की मांग हो रही है ताकि लोग ज्यादा बच्चे पैदा करें। वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बयान की बात करें तो आपको बता दें कि उन्होंने कहा है कि लोकसभा परिसीमन प्रक्रिया से कई दंपतियों के ‘‘16 (तरह की संपत्ति) बच्चों’’ की तमिल कहावत की ओर वापस लौटने की उम्मीदें बढ़ सकती हैं। मुख्यमंत्री ने जनगणना और लोसकभा परिसीमन प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि नवविवाहित जोड़े अब कम बच्चे पैदा करने का विचार त्याग सकते हैं। उन्होंने कहा कि अतीत में बुजुर्ग नवविवाहित जोड़ों को 16 बच्चों का नहीं बल्कि 16 तरह की संपत्ति अर्जित करने और खुशहाल जीवन जीने का आशीर्वाद देते थे, जिसमें प्रसिद्धि, शिक्षा, वंश, धन आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को लगता है कि अब उन्हें सचमुच 16 बच्चे पैदा करने चाहिए, न कि एक छोटा और खुशहाल परिवार रखना चाहिए।

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