Breaking News

नये कश्मीर ने उमर अब्दुल्ला के ऊपर UAPA के तहत जेल में बंद कैंडिडेट को क्यों चुना? राशीद इंजीनियर कैसे बन गए जाइंट किलर

4 जून एक ऐसा दिन था जिसे जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती याद नहीं रखना चाहेंगे। इसी दिन नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला बारामूला निर्वाचन क्षेत्र से हार हुई जबकि पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ्ती लोकसभा चुनाव में अनंतनाग से हार गईं। उत्तरी कश्मीर में एक बड़ा उलटफेर कहा जा रहा है, वो भी एक निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल रशीद के द्वारा जिसे ‘इंजीनियर रशीद’ के नाम से भी जाना जाता है। उमर अब्दुल्ला को 2 लाख वोटों से हराकर राशीद  ‘जाइंट किलर’ बन गए।

इसे भी पढ़ें: संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में 150 देशों से पीछे है भारत, 18वीं लोकसभा में आंकड़े चौंकाने वाले

अब्दुल्ला के लिए पराजय को और भी बदतर बनाने वाली बात यह है कि राशिद ने दिल्ली की उच्च सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल से चुनाव लड़ा, जहां वह कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत कैद है। राशिद को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद गिरफ्तार किया गया था। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इंजीनियर रशीद की जीत कई मायनों में भारतीय लोकतंत्र की जीत है। उन्होंने जेल में रहते हुए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया, और उनका परिवार इस बात को लेकर अनिश्चित था कि उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाएगी या नहीं। लेकिन चूंकि वह सिर्फ आरोपी हैं और अभी दोषी साबित नहीं हुए हैं, इसलिए चुनाव आयोग ने उनका नामांकन स्वीकार कर लिया। यहीं से उनकी चुनावी चुनावी यात्रा शुरू हुई।

इसे भी पढ़ें: 18 वीं लोकसभा के चुनावों के जनादेश के मायने

बिना पैसे, बिना संगठनात्मक ढांचे और बिना किसी चुनावी रणनीति के राशिद के बेटे अबरार अहमद ने कुछ दोस्तों की मदद से अपना रोड शो शुरू किया। कुछ ही दिनों में इस अनूठे अभियान ने बड़ी भीड़ को आकर्षित करना शुरू कर दिया। सहानुभूति फैक्टर ने उन्हें जनता से जुड़ने में मदद करने लगा। उनके रोड शो में बच्चों से लेकर युवा और यहां तक ​​कि बुजुर्ग भी शामिल हुए। अपने पिता के लिए एक ऐतिहासिक अभियान चलाने वाले अबरार अहमद ने कहा कि  मैंने 20 समर्थकों के साथ शुरुआत की, इरादा लोगों से मिलना और उन्हें हमारे मुद्दे को समझाना था। जब मैंने बड़ी संख्या में लोगों को हमारे साथ जुड़ते देखा, खासकर युवा जो हमारे साथ रहने के लिए नंगे पैर भी आए, तो मुझे एहसास हुआ कि हम जीत सकते हैं। बिना किसी पैसे, बड़ी पार्टी या चुनावी रणनीति के कल्पना किया गया यह स्वप्न अभियान साकार हो सकता है। आज लोगों की जीत का दिन है।

Loading

Back
Messenger