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Prajatantra: बिहार में नीतीश कुमार ने क्यों मारी पलटी, कांग्रेस और राजद से किस बात का था डर

हाल के दिनों में देखें तो बिहार में एक बार फिर से नीतीश कुमार ने पलटी मारते हुए अपने पुराने गठबंधन एनडीए में वापसी की। हालांकि, उनकी खूब आलोचना हो रही है। लेकिन अगर देखा जाए तो नीतीश कुमार ने वही किया जो एक चतुर राजनेता कर सकता है। भले ही नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन कहीं ना कहीं वह सहयोगी दलों की ओर से लगातार हाशिए पर किए जा रहे थे और इसे नीतीश कुमार भली-भांति समझने में कामयाब हुए। इंडिया गठबंधन से नीतीश की नाराजगी की खबरें नवंबर से ही आनी शुरू हो गई थी। हालांकि, उनकी नाराजगी को दूर करने की कोशिश में इंडिया गठबंधन की ओर से जनवरी महीने में उन्हें संयोजक बनने का प्रस्ताव दिया गया। लेकिन नीतीश ने भविष्य को देखते हुए इसे अस्वीकार कर दिया। इसी बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को इंडिया गठबंधन का अध्यक्ष घोषित किया गया था। 
 

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संयोजक प्रस्ताव के पद को ठुकराने के बाद नीतीश को लेकर कई तरह की बातें कही गई। लेकिन कहीं ना कहीं नीतीश कुमार ने भविष्य की राजनीति को देखते हुए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। पहला कारण तो यह था कि कांग्रेस उनके वोट बैंक में सेंध लगा सकती थी। दूसरा बिहार में मुख्यमंत्री पद छोड़ने का सहयोगी दलों की ओर से उन पर दबाव बनाया जाने लगता। ऐसे में कहीं ना कहीं उनकी पार्टी पर भी खतरा आ सकता था। यही कारण रहा की 2024 के चुनाव और उसके बाद तक सत्ता में बने रहने का एकमात्र तरीका नीतीश के लिए विपक्षी गठबंधन को छोड़ना था और उन्होंने यह फैसला कर लिया। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह साफ तौर पर माना जा रहा है कि अभी भाजपा को हराना मुश्किल है। ऐसे में नीतीश का फैसला चालाकी भरा रहा। वैसे भी कहा जाता है यदि आप उन्हें हार नहीं सकते तो उनके साथ जुड़ जाइए। 

वर्तमान में देखें तो 2024 चुनाव को लेकर भाजपा के पक्ष में जबरदस्त माहौल दिख रहा है। इसमें अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना और अनुच्छेद 370 के खत्म होने की जबरदस्त चर्चा है। साथ ही साथ अर्थव्यवस्था के हिसाब से भी भारत इस वक्त आगे बढ़ रहा है। वहीं, जी20 देश की मेजबानी कर भारत ने विश्व में अपनी ताकत दिखाई है और यही कारण है कि नरेंद्र मोदी सरकार की देश में एक अच्छी साख स्थापित हुई है। इसके अलावा देखा जाए तो कई और राजनीतिक दल भाजपा के पक्ष में खड़ी होती दिखाई दे रहे हैं। यही कारण है कि नीतीश ने भी अपने पुराने गठबंधन में लौटना बेहतर समझा। नीतीश को यह लगने लगा था कि उनके सहयोगी ही उनकी सरकार का बिहार में तख्तापलट करना चाहते हैं। यही कारण है कि उन्होंने भाजपा का साथ पकड़ा। नीतीश को पता है कि भाजपा वर्तमान में जिस स्थिति में है, उसमें उनकी भी पार्टी के विधायको का भी टूटना मुश्किल रहेगा। 

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वर्तमान में देखें तो कांग्रेस की स्थिति देश में अच्छी नहीं है। यही कारण है कि उसे अपनी ताकत दिखाने के लिए सहयोगी दलों का सहारा लेना पड़ रहा है। हालांकि कांग्रेस अभी भी गांधी परिवार के सदस्यों को ही आगे बढ़ाने में जुटा हुआ है। अगर देखा जाए तो नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर वंशवाद की राजनीति पर प्रहार करते हुए राजत के साथ-साथ राहुल गांधी पर भी तंज कसा था। नीतीश राहुल गांधी से भी नाराज रहे। ऐसे में कांग्रेस चाहे तो किसी अन्य नेता को आगे बढ़ाकर नीतीश कुमार को अच्छा जवाब दिया जा सकता है। हालांकि कांग्रेस के लिए यह पहली बार नहीं है जब उसकी हालत खराब हुई है। 1978 और 2004 में कांग्रेस से सत्ता में लौटी थी जब उसके पहले के चुनाव में उसकी हालत खराब हो गई थी। लेकिन वर्तमान में कांग्रेस के पास ना वैसी रणनीति है और ना ही वैसे नेता है जो पार्टी को मजबूती दिला सकते हैं।

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