जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को यह अधिकार है कि वह संसद में कानून बनाये। लेकिन इस अधिकार को अब चुनौती दी जा रही है क्योंकि संसद में सभी नियमों और संसदीय परम्पराओं का पालन करते हुए वक्फ संशोधन विधेयक पर जेपीसी की जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है उसको लेकर कुछ मौलाना बौखलाए हुए हैं। कोई कह रहा है कि वक्फ विधेयक को पारित किया गया तो देशव्यापी आंदोलन होगा तो कोई कह रहा है कि संसद ने अगर इस विधेयक को पारित किया तो हम इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। देखा जाये तो संसद से पारित विधेयक को स्वीकार नहीं करने की चेतावनी दे रहे लोग शायद इस भ्रम में हैं कि भारत संविधान से नहीं बल्कि शरिया से चल रहा है। सवाल उठता है कि वक्फ कानून की खामियों को ठीक करने के प्रयासों पर एक वर्ग बौखला क्यों रहा है?
इसी प्रकार आप पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम को ले लीजिये। इस सप्ताह देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में कई याचिकाएं दायर होने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की थी। हम आपको बता दें कि मुस्लिम संस्थाएं मस्जिदों की वर्तमान स्थिति को बनाए रखने के लिए 1991 के कानून का सख्ती से क्रियान्वयन करने की मांग कर रही हैं तो वहीं हिंदुओं ने इस आधार पर इन मस्जिदों को पुनः प्राप्त करने का अनुरोध किया है कि वे आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए जाने से पहले मंदिर थे। इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता और उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को अलग रखने का अनुरोध किया है। उनकी दलील है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार के अधिकार को छीन लेते हैं। देखा जाये तो प्राथमिक मुद्दा 1991 के कानून की धारा 3 और 4 के संबंध में है। धारा 3 पूजा स्थलों के रूपांतरण पर रोक से संबंधित है, जबकि धारा 4 कुछ पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र और न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र पर रोक आदि की घोषणाओं से संबंधित है। देखना होगा कि तीन न्यायाधीशों की पीठ इस मामले में अप्रैल में सुनवाई के दौरान क्या फैसला करती है।
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इसी प्रकार प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 को भी खत्म किया जाना बेहद जरूरी हो गया है क्योंकि गुलामी का नामोनिशान मिटाना ही जाना चाहिए। हम आपको बता दें कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 का उद्देश्य पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण करना है। यह पुरातात्विक उत्खनन के विनियमन और मूर्तियों, नक्काशी और ऐसी अन्य वस्तुओं के संरक्षण का भी प्रावधान करता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्य करता है। हाल ही में उपजे कई विवाद दर्शा रहे हैं कि इस अधिनियम को खत्म किया जाना चाहिए या इसमें बदलाव करना चाहिए।