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क्यों दिवाली आते भारत के इस गांव में हो जाता है अंधेरा, टीपू सुल्तान है वजह, हिंदुओं के नरसंहार की अनसुनी कहानी

“मेरी विजयी तलवार काफिरों के विनाश के लिए चमक रही है। उसे विजयी बनाएं जो मुहम्मद के विश्वास को बढ़ावा दे। उसका नाश करो, जो मुहम्मद के विश्वास से इनकार करता है।” 
ये शिलालेख फ़ारसी में इस्लामी तानाशाह टीपू सुल्तान की तलवार पर लिखे हैं। वही टीपू सुल्तान जिसे अक्सर हमारी मार्क्सवादी पाठ्यपुस्तकों में शक्तिशाली योद्धा के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। हालाँकि, इसके विपरीत ये टीपू सुल्तान की कायरतापूर्ण कार्रवाई थी जिसने पिछले 200 वर्षों से एक समुदाय को दिवाली जैसे त्योहारों से दूर रखा। 
हर दिवाली मेलकोटे में अंधेरा क्यों हो जाता है?
मैसूर के 18वीं शताब्दी के शासक टीपू सुल्तान देशभक्त हैं या अत्याचारी इस पर बहस हमेशा से होती आई है। इतिहास की किताबों में हम पढ़ते आए हैं कि टीपू सुल्तान मैसूर का शेर था। लेकिन कोडावा समुदाय, भाजपा और कुछ दक्षिणपंथी संगठन के मुताबिक, टीपू धार्मिक आधार पर कट्टर था। जबरन उसने लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर इस्लाम कबूल कराया था। वामपंथी उदारवादी गुट भारत के कुछ प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ टीपू जयंती मनाता है। बेंगलुरु से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मांड्या जिले के मेलकोटे में हर दिवाली अंधेरा रहता है। किसी के लिए भी इस बात पर यकीन करना मुश्किल होगा कि मेलकोटे जैसी पवित्र जगह पर दिवाली नहीं मनाई जाती। चूँकि यह स्थान 12 वर्षों से अधिक समय तक श्री वैष्णव संत रामानुजाचार्य का घर था। इसके अलावा, यहां राजसी चेलुवनारायण स्वामी मंदिर के साथ-साथ कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिर स्थित हैं। 

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मेलुकोटे अयंगर ब्राह्मण नामक एक समुदाय का घर है, जो आज तक दिवाली नहीं मनाते हैं। समुदाय के लिए, दिवाली एक अत्याचारी टीपू सुल्तान के साथ उनकी मुलाकात की एक काली और अप्रिय याद है। जिस कारण मेलकोटे में हर दिवाली अंधेरा रहता है।
अयंगर ब्राह्मण और मैसूर साम्राज्य
ये कहानी मैसूर साम्राज्य और टीपू सुल्तान और उसके अत्याचारी शासन से जुड़ी है। इस क्षेत्र पर 1600 के दशक में वोडेयार का शासन था। हालाँकि, समय के साथ वोडेयर्स ने अपनी अधिकांश शक्ति राज्य के कमांडरों को सौंप दी थी। 1763 में कृष्णराज वोडेयार द्वितीय के निधन के बाद राज्य के सबसे प्रभावशाली कमांडर ने खुद को मैसूर साम्राज्य के निर्विवाद शासक के रूप में स्थापित किया। हैदर अली का उत्तराधिकारी उसका पुत्र टीपू सुल्तान बना।
कैसे अयंगर ब्राह्मणों ने अपनी वफादारी चुकाने की कोशिश की
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यह वोडेयार के शासन के दौरान था कि मांड्यम अयंगर ब्राह्मण प्रमुखता से उभरे थे, उनका प्रभाव और समृद्धि वोडेयार की उदारता के कारण थी। वोडेयार के प्रति अपनी वफादारी में अयंगरों ने हैदर अली को गद्दी से उतारकर वोडेयार को वापस बिठाने का प्रयास किया। इसके लिए मांड्यम अयंगर ने डाउजर रानी लक्ष्मम्मानी का समर्थन किया। हालाँकि, इस साजिश का पर्दाफाश हैदर अली ने किया और अयंगर बंधुओं को उनके विस्तृत परिवारों के साथ कैद कर लिया गया। हैदर अली की मृत्यु के बाद वोडेयार को वापस सिंहासन पर बिठाने के प्रयास तेज़ हो गए, जिसके लिए टीपू सुल्तान ने एक पूरे समुदाय का नरसंहार किया।

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अयंगर ब्राह्मण दिवाली क्यों नहीं मनाते?
टीपू सुल्तान के शासनकाल में मांड्यम अयंगर दीपावली का त्योहार मनाने के लिए श्रीरंगपटना शहर में कावेरी के तट पर नरसिम्हास्वामी मंदिर में एकत्र हुए थे। अत्याचारी इस्लामी शासक ने त्योहार के दिन को अपने प्रतिशोध के लिए उपयुक्त पाया और हिंदुओं के प्रति अपनी नफरत के कारण उसने पूरे समुदाय के नरसंहार का आदेश दिया। टीपू की सेना ने 700-800 से अधिक अयंगर ब्राह्मणों को मार डाला और मेलकोटे को बर्बाद कर दिया। बाकी निवासियों को शहर से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा और इस तरह मेलकोटे रातोंरात एक भूतिया शहर में बदल गया। यही कारण है कि इस दिन मांड्यम अयंगर समुदाय दिवाली नहीं मनाता है और इसे शोक दिवस के रूप में मनाता है। उस क्रूर नरसंहार की यादें अभी भी समुदाय की सामूहिक चेतना में मौजूद हैं। समुदाय अभी भी न केवल हिंसा, बल्कि धार्मिक रूपांतरण, जबरन खतना, मंदिरों की तोड़फोड़ और लूटपाट और बलात्कार और हत्या के माध्यम से इस्लामी तानाशाह द्वारा क्रूर अधीनता को याद करता है।

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