महाराष्ट्र की राजनीति में सनसनी फैला देने वाले मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह पर लगाए गए सभी आरोप राज्य सरकार ने वापस ले लिये हैं और 2021 के अंत में जारी उनके निलंबन के आदेश को भी रद्द कर दिया है। हम आपको बता दें कि परमबीर सिंह के खिलाफ मुंबई और ठाणे में जबरन वसूली से संबंधित चार प्राथमिकियां दर्ज की गई थीं। एक अधिकारी ने कहा कि राज्य के गृह विभाग ने बुधवार को परमबीर सिंह के निलंबन को रद्द करने का आदेश जारी किया। उन्होंने कहा कि आदेश के अनुसार, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी के निलंबन की अवधि को उनके ड्यूटी पर रहने के रूप में माना जाएगा। हम आपको याद दिला दें कि परमबीर सिंह को दिसंबर 2021 में निलंबित कर दिया गया था। महाराष्ट्र में उस समय तीन दलों के गठबंधन महा विकास आघाड़ी (एमवीए) की सरकार थी। इस बारे में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण ने परमबीर सिंह की विभागीय जाँच को गलत करार देते हुए, उसको बंद करने का निर्णय लिया है।
हम आपको याद दिला दें कि परमबीर सिंह के आरोपों के बाद महाराष्ट्र के एनसीपी नेता अनिल देशमुख को उद्धव ठाकरे सरकार के दौरान गृहमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। देशमुख के इस्तीफे की घोषणा ऐसे समय पर हुई थी जब बंबई उच्च न्यायालय ने सीबीआई को निर्देश दिया था कि महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा लगाये गये भ्रष्टाचार एवं कदाचार के आरोपों की प्रारंभिक जांच 15 दिन के भीतर पूरी की जाये। हालांकि परमबीर सिंह ने जब अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे तब उन्होंने इन आरोपों को भाजपा की साजिश बताते हुए इस्तीफा देने से इंकार कर दिया था।
लेकिन जब बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की खंड पीठ ने कहा कि यह “असाधारण’’ और “अभूतपूर्व’’ मामला है जिसकी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए तो उद्धव सरकार को और किरकिरी से बचाने के लिए एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने अनिल देशमुख को इस्तीफा देने का निर्देश दे दिया था।
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गौरतलब है कि परमबीर सिंह ने अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच का अनुरोध करते हुए आपराधिक पीआईएल दाखिल की थी जिसमें उन्होंने दावा किया कि अनिल देशमुख ने निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे समेत अन्य पुलिस अधिकारियों को बार और रेस्तरां से 100 करोड़ रुपये की वसूली करने को कहा था। परमबीर सिंह के वकील विक्रम नानकनी ने तर्क दिया था कि समूचा पुलिस बल हतोत्साहित था और नेताओं के हस्तक्षेप के कारण दबाव में काम कर रहा था। अदालत ने इस पर पूछा था कि परमबीर सिंह को अगर अनिल देशमुख के कथित कदाचार की जानकारी थी तो उन्होंने मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज कराई।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि परमबीर सिंह ने शुरू में उच्चतम न्यायालय का रुख कर आरोप लगाया था कि अनिल देशमुख के “भ्रष्ट आचरण” की शिकायत मु्ख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और अन्य वरिष्ठ नेताओं से करने के बाद उन्हें मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से स्थानांतरित कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने मामले को काफी गंभीर बताया था लेकिन परमबीर सिंह को उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा। परमबीर सिंह ने फिर पीआईएल उच्च न्यायालय में दाखिल की और अनिल देशमुख के खिलाफ अपने आरोपों को दोहराते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता के खिलाफ सीबीआई से “तत्काल एवं निष्पक्ष” जांच कराने का अनुरोध किया था।