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क्या है Lateral Entry? क्यों हो रहा है इसको लेकर विवाद? Modi सरकार को झुकने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा?

देश ने 10 साल तक स्पष्ट बहुमत वाली सरकार के बड़े फैसले कर पाने की ताकत देखी, मगर अब गठबंधन सरकार की मजबूरियां देखनी पड़ रही हैं। मोदी सरकार को हाल ही में वक्फ विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजना पड़ा। प्रसारण सेवा विधेयक भी सरकार को वापस लेना पड़ा और अब लेटरल एंट्री संबंधी फैसला भी मोदी सरकार ने वापस ले लिया है। लेटरल एंट्री मुद्दे पर जिस तरह विपक्ष के अलावा एनडीए के सहयोगी दल भाजपा को घेर रहे थे उसके चलते मोदी सरकार को झुकना पड़ा गया। हम आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने विवाद के बीच संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को नौकरशाही में ‘लेटरल एंट्री’ से संबंधित नवीनतम विज्ञापन वापस लेने का निर्देश दिया है। यूपीएससी ने 17 अगस्त को ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी। इस निर्णय की विपक्षी दलों ने कड़ी आलोचना की थी। उनका दावा है कि इससे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण अधिकारों का हनन हुआ है।
केंद्रीय मंत्री ने क्या कहा?
विवाद के गहराने पर केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग की अध्यक्ष प्रीति सूदन को पत्र लिखकर विज्ञापन रद्द करने को कहा “ताकि कमजोर वर्गों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।” केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने अपने पत्र में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण “हमारे सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है।” जितेंद्र सिंह ने कहा, “चूंकि इन पदों को विशिष्ट मानते हुए एकल-कैडर पद के रूप में नामित किया गया है, इसलिए इन नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के माननीय प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, इस कदम की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है।”

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उन्होंने कहा, “मैं यूपीएससी से 17 अगस्त 2024 को जारी लेटरल एंट्री भर्ती विज्ञापन को रद्द करने का आग्रह करता हूं।” जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह कदम सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति होगा। उन्होंने कहा, “यह सर्वविदित है कि सैद्धांतिक रूप में लेटरल एंट्री को द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग का समर्थन हासिल था, जिसका गठन 2005 में श्री वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में किया गया था। 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में थीं।” उन्होंने कहा कि इससे पहले और बाद में भी ‘लेटरल एंट्री’ के कई बड़े मामले सामने आए हैं। जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछली सरकारों के तहत विभिन्न मंत्रालयों में सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद, यूआईडीएआई का नेतृत्व आदि, बिना किसी आरक्षण प्रक्रिया का पालन किए, ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से भरे गए।
उन्होंने कहा, “इसके अलावा, यह सर्वविदित है कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के ‘कुख्यात’ सदस्य एक सुपर-नौकरशाही की अगुवाई करते थे जो प्रधानमंत्री कार्यालय को नियंत्रित करती थी।” मंत्री ने कहा कि 2014 से पहले अधिकांश प्रमुख ‘लेटरल एंट्री’ तदर्थ तरीके से की गई थीं, जिनमें कथित पक्षपात के मामले भी सामने आए थे। मंत्री ने कहा, “हमारी सरकार का प्रयास इस प्रक्रिया को संस्थागत रूप से संचालित, पारदर्शी व मुक्त बनाना रहा है।” उन्होंने कहा कि इसके अलावा, प्रधानमंत्री का दृढ़ विश्वास है कि ‘लेटरल एंट्री’ की प्रक्रिया को संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
क्या है लेटरल एंट्री?
हम आपको बता दें कि यूपीएससी ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए सीधे उन पदों पर उम्मीदवारों की नियुक्ति करता है, जिन पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों की तैनाती होती है। इस व्यवस्था के तहत निजी क्षेत्रों के अलग-अलग पेशे के विशेषज्ञों को विभिन्न मंत्रालयों व विभागों में सीधे संयुक्त सचिव और निदेशक व उप सचिव के पद पर नियुक्त किया जाता है। इस तरह सरकारी विभागों में (निजी क्षेत्रों के विशेषज्ञों सहित) विभिन्न विशेषज्ञों की नियुक्ति को ‘लेटरल एंट्री’ कहा जाता है। 
कौन-कौन आये लेटरल एंट्री से?
दूसरी ओर, लेटरल एंट्री मुद्दे को उठाते हुए देश के संविधान और आरक्षण को खतरे में बता कर जो लोग बयानबाजी कर रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को 1976 में ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए ही वित्त सचिव बनाया गया था। यही नहीं, तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ‘लेटरल एंट्री’ के ज़रिए सेवा में आए थे। मनमोहन सिंह ने 1971 में तत्कालीन विदेश व्यापार मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में ‘लेटरल एंट्री’ से प्रवेश किया था और वित्त मंत्री बने और बाद में प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। इस रास्ते से सरकार में शामिल हुए अन्य लोगों में सैम पित्रोदा और वी कृष्णमूर्ति, अर्थशास्त्री बिमल जालान, कौशिक बसु, अरविंद विरमानी और रघुराम राजन हैं। बिमल जालान सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार और बाद में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे। अरविंद विरमानी और कौशिक बसु को मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके अलावा, रघुराम राजन ने मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में भी काम किया और बाद में 2013 से 2016 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्य किया। वहीं मोंटेक सिंह अहलूवालिया को शैक्षणिक और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से सरकारी भूमिकाओं में लाया गया था। उन्होंने 2004 से 2014 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। यही नहीं, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि को 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण का प्रमुख नियुक्त किया गया था।
जो लोग लेटरल एंट्री मुद्दे पर अपनी राजनीति चमकाने के लिए विवाद खड़ा कर रहे हैं उनसे सीधा सवाल यह है कि यदि कोई पर्यावरण विशेषज्ञ व्यक्ति उप-सचिव बन जाता है, तो इसमें क्या समस्या है? किसी क्षेत्र का विशेषज्ञ उस क्षेत्र में आकर काम करेगा तो इससे देश को लाभ ही होगा? लेटरल एंट्री सभी के लिए खुली है इसमें ऐसा तो है नहीं कि किसी खास वर्ग के लोगों की ही भर्ती हो रही है। यदि लेटरल एंट्री में कोई एससी, एसटी या ओबीसी वर्ग का व्यक्ति आवेदन करेगा तो उस पर भी विचार किया ही जायेगा।
विवाद खड़ा करने वालों को यह भी बताना चाहिए कि लेटरल एंट्री से कैसे अखिल भारतीय सेवाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की भर्ती प्रभावित होगी? विवाद खड़ा करने वालों को पता होना चाहिए कि नौकरशाही में ‘लेटरल एंट्री’ 1970 के दशक से कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान होती रही है। विवाद खड़ा करने वालों को पता होना चाहिए कि प्रशासनिक सेवाओं में ‘लेटरल एंट्री’ के लिए प्रस्तावित 45 पद भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की कैडर संख्या का 0.5 प्रतिशत हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा में 4,500 से अधिक अधिकारी शामिल हैं और लेटरल एंट्री से किसी भी सेवा की सूची में कटौती नहीं होगी। इसके अलावा, ‘लेटरल एंट्री’ वाले नौकरशाहों का कार्यकाल तीन साल है जिसमें दो साल का संभावित विस्तार शामिल है।

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