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Prajatantra: खैरा की गिरफ्तारी से खटपट, बंगला मामले में केजरीवाल को मिलेगा कांग्रेस का साथ?

इंडिया गठबंधन की चर्चा इसके गठन के दौरान जितनी तेज थी, शायद अब उतनी नहीं रही। हां, यह जरूर है कि इस गठबंधन में शामिल नेता गठबंधन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दिखाई रहते हैं। लेकिन उनकी ओर से उठाए जाने वाले कदम कहीं ना कहीं एक दूसरे को सख्त संदेश देने की कोशिश भी रहती है। वर्तमान में देखें तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच ऐसा ही कुछ साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। पंजाब और दिल्ली में दोनों दलों की दूरियां इंडिया गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं। 
 

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पंजाब में पूरा का पूरा मामला वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुखपाल सिंह खैरा की गिरफ्तारी से शुरू हुआ। पंजाब पुलिस ने उन्हें ड्रग्स स्मगलिंग और मनी लांड्रिंग के आरोपों में गिरफ्तार किया। कांग्रेस राज्य की आम आदमी पार्टी की सरकार पर हमलावर हो गई। कांग्रेस की ओर से इसे साफ तौर पर राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हम इस तरह की चीजों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। वहीं, पंजाब कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि यह विपक्ष को डराने धमकाने का एक प्रयास है। वही अपनी गिरफ्तारी पर सुखपाल खैरा ने कहा कि भगवंत मान खून के प्यासे हो गए हैं। वह कांग्रेस से पूरी तरीके से घबराए हुए हैं। अब इसी को लेकर केजरीवाल को पत्रकारों को सफाई देनी पड़ी है। केजरीवाल ने कहा कि हम इंडिया गठबंधन के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि पंजाब की भगवंत मान सरकार राज्य को नशा मुक्ति मनाने की कोशिश में है। इसमें किसी को नहीं बक्शा जायेगा।

यह पूरी तरीके से इंडिया गठबंधन के लिए बुरी खबर है। राष्ट्रीय राजनीति में दोनों पार्टियों एक मंच पर साथ तो दिखाई देते हैं लेकिन दिल्ली और पंजाब में दोनों ही दलों के बीच जुबानी जंग तेज रहती है। दिलचस्प बात यह भी है कि पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और कांग्रेस लगातार इसका विरोध करती रहती हैं। ऐसे में अगर आप और कांग्रेस के बीच खींचतान जारी रहा तो इंडिया के लिए यह अच्छी खबर नहीं है। सुखपाल सिंह खैरा की गिरफ्तारी ने क्षेत्रीय प्रतिद्वंदिता को उजागर कर दिया है। 2024 में भाजपा के खिलाफ दोनों दलों के एक साथ मंच पर आने की संभावनाएं को भी मुश्किल में डाल सकता है। इसके अलावा पंजाब और दिल्ली में सीट बंटवारे को लेकर भी दोनों दलों के बीच टकराव देखने को मिल सकता है।

इसका नुकसान कहीं ना कहीं अरविंद केजरीवाल को भी होगा। अरविंद केजरीवाल के बंगले को लेकर सीबीआई जांच शुरू हो चुकी है। इसमें भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे हैं। अगर पंजाब में कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई जारी रहती है तो कहीं ना कहीं दिल्ली में इस मामले को लेकर कांग्रेस का साथ केजरीवाल को नहीं मिलेगा। हालांकि, यह बात भी सच हैं कि दिल्ली कांग्रेस के नेताओं की ओर से यह मामला लगातार उठाया जाता है और केजरीवाल सरकार पर निशाना साधा जाता रहा है। लेकिन केंद्रीय नेताओं का समर्थन आम आदमी पार्टी को समय-समय पर मिल जाता है। इसे गठबंधन की मजबूरी भी समझा जा सकता है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि दिल्ली में बंगला विवाद मामले में केजरीवाल को कांग्रेस से बहुत ज्यादा समर्थन हासिल होगा। हां, अगर पर्दे के पीछे कोई डील हो जाती है तो फिर क्या कहना। राजनीति में सब चलता है। 

बंगला मामले पर भाजपा ने कहा कि उसे उम्मीद है कि सीबीआई जांच से उनके ‘‘राजमहल का सच’’ सामने आ जायेगा। भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने जांच से यह भी पता चलेगा कि किसके निर्देश पर लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने भवन निर्माण के लिए छोटी निविदाएं जारी कीं ताकि मामला विभाग के सचिव तक न पहुंचे। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने आरोप लगाया कि केजरीवाल खुद को ‘‘दिल्ली का सुल्तान’’ मानते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि जब दिल्ली के लोग महामारी के दौरान ऑक्सीजन आपूर्ति, वेंटिलेटर और दवाओं के लिए संघर्ष कर रहे थे, केजरीवाल ‘‘अपना महल बनाने की तैयारी’’ कर रहे थे। 

केजरीवाल ने उनके बंगले की मरम्मत में कथित अनियमितता मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज पीई (प्रारंभिक जांच) का बृहस्पतिवार को ‘स्वागत’ किया। उन्होंने साथ ही जोर देकर कहा कि इस जांच में कुछ भी नहीं निकलेगा, क्योंकि ‘‘कुछ भी गलत नहीं हुआ है।’’ केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए दावा किया कि यह कदम उनकी ‘घबराहट’ को दिखाता है। उन्होंने सवाल किया कि क्या जांच में कुछ भी सामने नहीं आने पर प्रधानमंत्री अपने पद से इस्तीफा देंगे। आम आदमी पार्टी(आप) के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री के तौर पर बतौर आठ साल के अपने कार्यकाल में संभवत: वह सबसे अधिक संख्या में जांच का सामना करने वाले व्यक्ति हैं। 
 

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राजनीति बेहद दिलचस्प होती है। यहां पर्दे के सामने जो कुछ होता है, पर्दे के पीछे जरूरी नहीं है कि वैसा ही कुछ हो। मुंह में राम-राम, बगल में छुरी वाली कहावत भी कई बार राजनीति में फिट बैठने लगती है। इंडिया गठबंधन की कोशिशें के बीच अरविंद केजरीवाल के अपने दांव हैं। उसको मजबूत करने के लिए उनकी पार्टी की ओर से लगातार कवायतें की जाती रही हैं। हालांकि, जिस तरीके से कांग्रेस और आप के बीच खींचतान जारी है उससे दोनों को ही नुकसान हो सकता है। बाकी का फैसला जनता के हाथों में है। यही तो प्रजातंत्र है। 

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