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UP News: पूर्वांचल के ‘गौरजीत’ का गौरव बढ़ा देगी GI टैगिंग, योगी सरकार ने किया है आवेदन

Lucknow News: राजधानी लखनऊ के मलिहाबाद का दशहरी, पश्चिम उत्तर प्रदेश का चौसा, वाराणसी का लंगड़ा और मुंबई का अलफांसो खुद में भले ही नामचीन आम हो, पर गोरखपुर और बस्ती मंडल के किसी भी व्यक्ति से पूछेंगे कि आमों का राजा कौन है? तो वह यही कहेगा “गौरजीत”. बात चाहे खुशबू की हो या स्वाद और रंग की, नाम के अनुरूप गौरजीत लोगों का दिल जीत लेता है.

पूर्वांचल के गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती और संतकबीरनगर जिलों के लाखों लोगों को आम के सीजन में इसका इंतजार रहता है. ऐसे में अगर गौरजीत को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) मिल जाता है तो इसका गौरव और बढ़ जायेगा. दरअसल योगी सरकार ने जिन 15 कृषि उत्पादों के जीआई टैगिंग के लिए आवेदन किया है, उसमें गौरजीत भी है. जीआई टैगिंग मिलने से गौरजीत का गौरव और बढ़ जाएगा.

गौरजीत तेजी से पकता है. सामान्य स्थितियों में इसे बहुत दिन तक रखा नहीं जा सकता. अगर भंडारण की उचित व्यवस्था हो तो इसके निर्यात की संभवनाएं बढ़ जाती हैं. गोरखपुर पहले ही देश के प्रमुख महानगरों से हवाई सेवा से जुड़ा है. कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनकर तैयार है. अयोध्या में निर्माणाधीन है. पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय होने की वजह से गोरखपुर पहले ही रेल के जरिए पूरे देश से जुड़ा है. पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के नाते रोड कनेक्टिविटी भी अच्छी हो जाएगी. इसको जोड़ने वाला गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे इस कनेक्टिविटी को और बेहतर बनाएगा. ऐसे में अगर गौरजीत को जीआई टैंगिंग मिल जाती है तो देश-दुनिया में इसके निर्यात की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.

इसकी अन्य खूबियों की बात करें तो यह आम की अर्ली प्रजाति है. इसकी आवक दसहरी के पहले शुरु होती है. जब तक डाल की दसहरी आती है तब तक यह खत्म हो जाता है. मौसम ठीक ठाक रहे तो डाल के गौरजीत की आवक जून के दूसरे हफ्ते में शुरू हो जाती है.

अमूमन यह डाल पर ही पकता है और पत्तियों के साथ बिकता है. मांग इतनी है कि इसका सौदा पेड़ में बौर आने के साथ ही हो जाता है. फुटकर खरीदार बाग से ही इसे खरीद लेते हैं. मंडी में यह कम ही आता है. फुटकर दुकानों से ही ग्राहक इसे हाथों-हाथ ले लेते हैं. सीजन में सबसे अच्छे भाव गौरजीत के ही मिलते हैं. पिछले सीजन में फुटकर में प्रति किलोग्राम बेहतर गुणवत्ता वाले गौरजीत के भाव 200 रुपये थे.

अपनी इन्हीं खूबियों के नाते जून 2016 में लखनऊ के लोहिया पार्क में आयोजित प्रदेश स्तरीय आम महोत्सव में इसे प्रथम पुरस्कार मिला था. इजरायल की मदद से योगी सरकार इसे लोकप्रिय (ब्रांड) बनाने का प्रयास कर रही है. हाल के वर्षों में इसकी लोकप्रियता बढ़ी भी है. अब सीजन में अगर कोई बस्ती के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस से आम के 500 पौधे खरीदता है तो उसमें 50 गौरजीत के होते हैं. खरीदने वालों में लखनऊ और अंबेडकर नगर आदि जिलों के भी लोग हैं.

पूर्वांचल के प्रतिष्ठित लोग सीजन में अपने चाहने वालों को बतौर गिफ्ट यह आम भी देते हैं. एक तरह से यहां के लोगों के लिए यह स्टेट्स सिंबल है. चूंकि पूर्वांचल के लोग हर जगह हैं लिहाजा इस रूप में यह मुंबई, कोलकाता और अन्य महानगरों में भी पहुंचता है.

इस बाबत निदेशक हॉर्टिकल्चर आर के तोमर और ज्वाइंट डायरेक्टर हॉर्टिकल्चर (बस्ती) अतुल सिंह का कहना है कि खुशबू और स्वाद में गवरजीत का कोई जवाब नहीं है. आप कह सकते हैं कि चूस कर खाने वाली यह सबसे अच्छी प्रजाति है. मई के लास्ट या जून के पहले हफ्ते में यह बाजार में आ जाती है. 90 फीसद खपत पूर्वांचल में ही हो जाती है.

योगी सरकार की यह पहल सफल रही तो इसका लाभ पूर्वांचल के गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती जिले के लाखों किसानों-बागवानों को इसका मिलेगा. क्योंकि ये सभी जिले एक एग्रोक्लाईमेट जोन (कृषि जलवायु क्षेत्र) में आते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि इन जिलों में जो भी उत्पाद होगा उसकी खूबियां भी एक जैसी होंगी.

उल्लेखनीय है कि योगी सरकार ने गौरजीत समेत 15 उत्पादों के जीआई टैंगिंग के लिए आवेदन किया है. ये उत्पाद हैं- बनारस का लंगड़ा आम, पान पत्ता, बुंदेलखंड का कठिया गेहूं, प्रतापगढ़ के आंवला, बनारस लाल पेड़ा, लाल भरवा मिर्च, पान (पत्ता), तिरंगी बरफी, ठंडई, पश्चिम यूपी का चौसा आम, पूर्वांचल का आदम चीनी चावल, जौनपुर की इमरती, मुजफ्फरनगर का गुड़ और रामनगर का भांटा गोल बैगन. इन सबके जीआई पंजीकरण की प्रक्रिया अंतिम चरण में हैं.

जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है. जीआई टैग द्वारा कृषि उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है. यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है. इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है तथा विशिष्ट कृषि उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार प्रसार करने में आसानी होती है.

गोरखपुर-बस्ती मंडल के करीब 6000 हेक्टेयर में गौरजीत के बागान है. बिहार के कुछ जिलों में भी गौरजीत आम के बाग हैं, पर इनको वहां जर्दालु और मिठुआ नाम से भी जाना जाता है.

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