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35 साल पहले आज ही के दिन अमेरिका ने ईरानी प्लेन में सवार 290 मुसाफिरों की जान ले ली, जानिए क्या थी वजह?

3 जुलाई 1988 की वो तारीख, घड़ी में सुबह के 10:17 मिनट हो रहे थे। ईरान का एक समुद्री इलाका। ये वो दिन था जब खाड़ी युद्ध अपने खात्मे की तरफ बढ़ रहा था। हालांकि इराक इन समुद्री इलाकों में अब भी जंगी जहाजों की आवाजाही जारी थी। 3 जुलाई को इसी बीच इस्लामिक रिपब्लिकन ऑफ ईरान का एक हवाई जहाज आईआर-655 ने ईरान के बंदरअब्बास एयरपोर्ट से उड़ान भरी। एयर ट्रैफिक कंट्रोल से मिल रहे निर्देषों के मुताबिक पायलट इस विमान को अपनी मंजिल की ओर ले जा रहा था। हवाई जहाज को टेक-ऑफ किए करीब 28 मिनट हो चुका था। 

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290 यात्रियों को ले जा रहे विमान के साथ हुआ हादसा 

विमान में मौजूद तमाम मुसाफिर आराम से इस सफर का आनंद उठा रहे थे। लेकिन तभी एक जोरदार धमाके के साथ 16 क्रू मेंबर्स समेत 290 मुसाफिरों को ले जा रहा ये विशाल हवाई जहाज आग के भयानक गोले में तब्दील हो गया। जहाज का मलबा और लाशें खाड़ी में चारो बिखर गए। पूरी दुनिया में ये अपनी तरह का 7वां सबसे खौफनाक हवाई हादसा था। लेकिन ये हादसा जहाज को उड़ाने वाले पालयट का स्टाफ कि गलती से नहीं हुआ था।  

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अमेरिका ने क्यों दागी थी मिसाइल

ईरान की फ्लाइट संख्या 655 को अमेरिकी नौसेना ने जमीन पर गाइडेड मिसाइल क्रूजर यूएसएस विंसेंन्स से मिसाइल दागकर गिराया था। अमेरिकी नौसेना की इस मामले में चली जांच में बताया गया कि ईरान एयर की फ्लाइट ने ज्वाइंट मिलिट्री सिविलियन एयरपोर्ट बंदर अब्बास से उड़ान भरी है। यहां ईरान ने अपने कुछ एफ-14 लड़ाकू विमान भेजे थे। एक ही दिन पहले एफ-14 में एक विमान को क्रूजर यूएसएस हाल्से ने चेतावनी भी दी थी। उस वक्त वो अमेरिकी जहाज के बहुत करीब आ गया था। ऐसे में अमेरिकी सेना का मानना ता कि ये ईरानी विमान एफ-14 मेवरिक मिसाइलों से लैस है, जो 16 किलोमीटर के दायरे में अमेरिकी जहाजों पर हमला कर सकते हैं।  अमेरिकी सेना ने बाद में इसे एक दुखद और अफसोसजनक दुर्घटना बताया। 

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