प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) आतंकवादी समूह को बेअसर करने में काबुल की विफलता के बाद पाकिस्तान ने एक प्रमुख नीतिगत बदलाव में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफगान तालिबान के मामले का समर्थन नहीं करने या कोई अन्य सहायता नहीं देने का फैसला किया है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामाबाद अब अंतरिम अफगान तालिबान सरकार को कोई विशेष विशेषाधिकार नहीं देगा, जो दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में गिरावट का संकेत देता है। टीटीपी के अफगान तालिबान के साथ वैचारिक संबंध है और जिसे पाकिस्तान तालिबान के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना 2007 में कई आतंकवादी संगठनों के एक छत्र समूह के रूप में की गई थी।
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इसका मुख्य उद्देश्य पूरे पाकिस्तान में इस्लाम का अपना सख्त ब्रांड थोपना है। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि सत्ता में आने के बाद अफगान तालिबान टीटीपी कार्यकर्ताओं को बाहर निकालकर पाकिस्तान के खिलाफ अपनी धरती का इस्तेमाल बंद कर देगा, लेकिन उन्होंने इस्लामाबाद के साथ तनावपूर्ण संबंधों की कीमत पर ऐसा करने से इनकार कर दिया है। एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार ने बताया कि पाकिस्तान की अपनी नीति में स्पष्ट बदलाव का तात्कालिक निहितार्थ यह है कि अफगान तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने की संभावना पहले से कहीं अधिक कम हो गई है।
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आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को अखबार को बताया कि अगस्त 2021 में सत्ता में वापसी के बाद अफगान तालिबान सरकार को दी गई पाकिस्तान की सद्भावना और सहायता को हल्के में लिया गया। तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद पाकिस्तान उसके मुख्य समर्थक और वकील के रूप में उभरा, जिसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और हितधारकों विशेषकर पश्चिमी देशों से काबुल में नए शासकों के साथ जुड़े रहने का आग्रह किया।