चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने जून में बीजिंग में फलस्तीन के राष्ट्रपति से मुलाकात की थी और इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू को चीन की आधिकारिक यात्रा के लिए आमंत्रित किया था। नेतान्याहू ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया था और चीन पश्चिम एशिया में एक बड़ी भूमिका निभाने की राह पर था। हालांकि सात अक्टूबर को हमास ने इजराइल पर हमला कर दिया, जिससे चीन की कोशिशों को झटका लगा है।
इजराइल पर हमास के हमले के बाद नेतान्याहू की इस महीने के अंत में होने वाली चीन यात्रा को लेकर अनिश्चितता पैदा हो गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इजराइल-हमास युद्ध को लेकर चीन की तटस्थता से इजराइल निराश है, लेकिन अरब देशों के साथ करीबी संबंध बनाकर चीन को लंबे समय में फायदा हो सकता है।
चीन में स्थित ‘रेनमिन यूनिवर्सिटी ऑफ चाइना’ में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर शी यिनहोंग ने कहा, “युद्ध के चलते कुछ समय के लिये ही सही, चीन की पश्चिम एशिया योजना खटाई में पड़ गई है। इजराइल का पक्का समर्थक अमेरिका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है। चीन की सुनने वाला कौन है?”
पश्चिम एशिया में चीन के दूत झाई जून ने पिछले सप्ताह फलस्तीन और मिस्र के अधिकारियों से फोन पर बात कर तत्काल संघर्ष विराम तथा फलस्तीनी लोगों के लिए मानवीय समर्थन का आह्वान किया था।
झाई ने इजराइली अधिकारियों को यह भी कहा कि चीन का फलस्तीनी मुद्दे पर कोई स्वार्थ नहीं है, लेकिन वह हमेशा शांति, निष्पक्षता और न्याय के पक्ष में खड़ा रहा है।
उन्होंने कहा, चीन शांति को बढ़ावा देने और बातचीत को प्रोत्साहित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ काम करने को इच्छुक है।
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अधिक दृढ़ता से फलस्तीन का समर्थन करते हुए कहा कि मामले की जड़ यह है कि फलस्तीनी लोगों के साथ न्याय नहीं किया गया है।
वांग ने ब्राजील के राष्ट्रपति के एक सलाहकार के साथ बातचीत के दौरान कहा, इस संघर्ष ने एक बार फिर साबित कर दिया कि फलस्तीन मुद्दे को हल करने का रास्ता जल्द से जल्द वास्तविक शांति वार्ता फिर से शुरू करने और फलस्तीनी राष्ट्र के वैध अधिकारों को साकार करने में निहित है।
चीन लंबे समय से दो-राष्ट्र समाधान की वकालत करता रहा है, जिसके तहत एक स्वतंत्र फलस्तीन देश बनाने की बात कही गई है।