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सिलिकॉन वैली से पहले प्राचीन इराक के शिक्षाविदों ने बनाया था ‘ज्ञान का केंद्र’

समय ने बार-बार साबित किया है कि आपसी समन्वय वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी नवोन्मेष को प्रेरित करने में अहम भूमिका निभाता रहा है। इसी प्रकार की कुछ अहम प्रगति बौद्धिक केंद्रों पर हुई।
आज सिलिकॉन वैली इस विचार का पर्याय है लेकन पूर्व के कालखंडों को देखें को प्राचीन समय में भी ज्ञान विज्ञान के ऐसे केंद्र हुए हैं। इसका एक उदाहरण इराक का बगदाद है, जो चौथी हिजरी सदी (10वीं इस्वी) में इस्लामिक स्वर्ण युग के दौरान प्रमुख केंद्र था।
यह वह समय था जब यूरोप तथाकथित ‘अंधकार युग’ में जी रहा था तो यहां बयात अल हिकमाह (हाउस आफ विजडम) जन्म ले रहा था।

यह वह स्थान था जहां पर फारस, चीन, भारत और यूनान से संग्रहित करके लाई गई महान कृतियों का अरबी में अनुवाद किया जा रहा था जिसमें अरस्तू और यूक्लिड के कार्य शामिल थे।
सांस्कृतिक और भाषाई विविधता युक्त माहौल ने नवोन्मेष को फलने-फूलने में मदद की और यह बीजगणित, भूगोल,खगोल शास्त्र, चिकित्सा और आभियंत्रिकी सहित विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिली।
प्रतिभा के साथ आटोमेटा
करीब साढ़े तीन सदी की अवधि के दौरान ज्ञान के इस केंद्र में कई बहु प्रतिभा के विचारक थे। इनमें से बानू मूसा भाई भी थे जो नौवीं सदी के पर्शियाई विद्वान थे और बगदाद में रहते थे।

दोनों भाइयों ने बहु विषय टीम का गठन किया जिनमें से एक गणितज्ञों की थी, एक खगोलशास्त्रियों और एक अभियंत्रिकी की टीम थी। इन्होंने विभिन्न भाषाओं में हुए कार्यों का अरबी में अनुवाद किया और अन्य अनुवादकों को भी प्रायोजित किया और पांडुलिपियों को खरीदने के लिए धन का निवेश किया।
दोनों भाई राजनीतिक और शहरी अवसंरचना के विकास में भी संलिप्त थे और संगीत की प्रतिभा भी उनमें थी। लेकिन उनका सबसे अहम योगदान स्वचालित मशीन या आटोमेटा के क्षेत्र में था। उनकी एक कृति 850 ईस्वी में प्रकाशित हुई।

यह किताब स्थानीय उपकरणों की थी जिसे करामाती किताब के तौर पर अनुवादित किया गया था और मशीनों का उल्लेख किया गया जिसने आधुनिक रोबोट के पूर्ववर्ती की तरह काम किया।
इन ऑटोमेटा में मशीनी वाद्य यंत्र और स्वचालित भांप से चलने वाले रोबोटिक बांसुरी वादक शामिल है। व्रिजे यूनिवर्सिटी ऑफ एम्स्टर्डम के तेन कोएत्सिएर इन मशीनी संगीतकारों को दुनिया के पहली प्रोगाम युक्त मशीन मानते हैं।
शानदार बहु गणित
उस समय बगदाद एक और विद्वान का आवास रहा जिन्हें मोहम्मद इब्न मूसा ख्वारिजमी के नाम से जानते हैं।

उनका नाम उस शब्द को प्रेरित करता है जिसका इस्तेमाल हम नियमित तौर पर करते हैं और वह है ‘कलन विधि’। ‘एलजेब्रा’ शब्द भी उनकी किताब ‘किताबअल जेब्र’ से लिया गया है जिसका अभिप्राय है पूर्णता का किताब।
यह दुनिया के एलजेब्रा नियमों से संबंधित पहली प्रकाशित किताबों में से एक है। उन्होंने भूगोल और खगोल शास्त्र में भी योगदान दिया।
अल ख्वारिजमीने अल किंदी के साथ भी काम किया। अल किंदी ने भारतीय अंक प्रणाली का परिचय अपने सहयोगियों और अरब जगत से कराया। उन्होंने अल ख्वारिजमी के साथ मिलकर अरबी अंक प्रणाली विकसित की जिनका हम आज इस्तेमाल करते हैं।

वह क्रिप्टाएनेलिसिस पर लिखी सबसे प्राचीन किताब के भी लेखक हैं जिसका इस्तेमाल सांख्यिकी विश्लेषण में किया जाता है।
अल किंदी का अपना निजी पुस्तकालय अति विशाल था जिसकी वजह से बानू मूसा भाई उनसे ईष्या रखते थे और उन्होंने साजिश रची, अल किंदी की पिटाई की गई और उन्हें ज्ञान के केंद्र से निष्कासित कर उनके पुस्तकालय पर कब्जा कर लिया गया।
बिना निशान विनाश
कई सदियों से बौद्धिक विचारों और प्रौद्योगिकी विकास का केंद्र रहे इस ज्ञान केंद्र को 1258 में मुगलों ने आक्रमण कर नष्ट कर दिया जिसके निशान तक नहीं मिलते।

पुरातत्व अवशेष की अनुपस्थिति में कुछ विद्वान इसके अस्तित्व पर ही सवाल उठाते हैं और कहते हैं कि यह स्थान वास्तव में नहीं था, केवल कल्पना में था।
‘यूनानी विचार, अरबी संस्कृति’ नाम की किताब में दिमित्रि गुतास का मानना है कि ज्ञान के इस केंद्र की‘‘ आदर्श राष्ट्रीय अभिलेखागार’ के तौर पर कल्पना हो सकती है। लेकिन उनके इस विचार का इस्लामिक अध्ययन के विशेषज्ञ हुसैन कमाली अपनी समीक्षा में खारिज करते हैं।
हालांकि, गुतास सहमत है कि आठवीं से 10वीं सदी के बीच मध्य एशिया में बड़े पैमाने पर अनुवाद आंदोलन चला और यूनानी गैर साहित्य कृतियों का विस्तृत और व्यवस्थागत तरीके से अरबी में अनुवाद किया गया।

आज के लिए सबक
हम ज्ञान के केंद्र के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते हैं , लेकिन एक चीज स्पष्ट है कि गतिशील बहु विषयक माहौल में विभिन्न विचार आते हैं। लेकिन यह सिलिकॉन वैली जैसा नहीं प्रतीत होता जिसने स्वयं को वाणिज्यिक लाभ पर केंद्रित किया है और अपने बेईमान व्यवहार के लिए जाना जाता है।
करीब से गौर पर करने पर ज्ञान का यह केंद्र समन्यविक माहौल जैसा है जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हासिल किया जा सकता है।
ज्ञान के केंद्र के रूप में बगदाद की सफलता की एक वजह खलीफा द्वारा वित्तीय समर्थन था। इस्लामिक राज्य जिसे खिलाफत के तौर पर जानते हैं , के धार्मिक और राजनीतिक नेता खलीफा होते थे। इस प्रकार शिक्षाविदों का ध्यान केवल काम पर केंद्रित रहता था। उन्हें वित्त की चिंता नहीं करनी पड़ती थी।
उस दौर में ज्ञान को सम्मान की तरह देखा जाता था, पुरस्कृत और प्रोत्साहित किया था जिसकी वजह से सामाजिक स्थिरता और समृद्धि आई।

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