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Prabhasakshi Exclusive: बड़े देश G7 सम्मेलन करते रह गये, China ने Central Asia को अपनी तरफ कर लिया

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (R) से जानना चाहा कि जी-7 देशों के नेता जापान में शिखर सम्मेलन की जब तैयारी कर रहे थे, उसी समय चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मध्य एशियाई देशों कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के अपने समकक्षों से मुलाकात की। आखिर पश्चिम का विकल्प बनने की योजना के तहत चीन मध्य एशिया में किस तरह अपना प्रभाव बढ़ा रहा है? इसके अलावा जी-7 और क्वॉड के संयुक्त बयान को जिस तरह चीन ने खारिज किया उसे कैसे देखते हैं आप?
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि दरअसल अमेरिका के नेतृत्व वाली उदारवादी व्यवस्था का एक ऐसा विकल्प बनने की चीन की कोशिशों के लिए मध्य एशिया अहम है, जिसमें निर्विवाद रूप से चीन का प्रभुत्व हो। शी जिनपिंग ने मध्य एशिया देशों के समकक्षों के साथ बैठक के दौरान ‘‘साझा भविष्य के साथ चीन-मध्य एशिया समुदाय के नजरिए’’ को रेखांकित किया, जो आपसी सहायता, साझा विकास, वैश्विक सुरक्षा और स्थायी मित्रता के चार सिद्धांतों पर निर्भर होगा। हालांकि चीन और मध्य एशिया के बीच संबंधों को अकसर सुरक्षा एवं विकास के संदर्भ में देखा जाता है, लेकिन इसका राजनीतिक पहलू भी है, जो शिआन में हुए शिखर सम्मेलन में की गई और क्षेत्रीय सहयोग करने की पहल से नजर आता है। ये पहल चीनी मंत्रालयों एवं सरकारी एजेंसियों और मध्य एशिया में उनके समकक्षों के बीच संबंध बनाने, शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने और मध्य एशिया-चीन व्यापार परिषद जैसे तंत्र पैदा करने का प्रस्ताव रखती हैं। इससे क्षेत्र में चीन की भूमिका और मजबूत होने की संभावना है। इसके बदले में, चीन मध्य एशिया के अधिकतर सत्तावादी नेताओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर ले जाने की कोशिश करने वाले पश्चिमी देशों के आर्थिक एवं राजनीतिक दबाव से दूर रखने का काम करेगा और किसी भी प्रकार के रूसी दुस्साहस से उनकी संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (R) ने कहा कि शिखर सम्मेलन के दौरान 54 समझौते हुए, 19 नए सहयोग तंत्र एवं मंच बनाए गए और शिआन घोषणा पत्र सहित नौ बहुपक्षीय दस्तावेज तैयार किए गए। ऐतिहासिक रूप से, रूस मध्य एशिया का मुख्य साझेदार रहा है, लेकिन वह अब मध्य एशिया में चीनी निवेश और निर्माण अनुबंधों का मुकाबला नहीं कर सकता, जो 2005 के बाद से लगभग 70 अरब डॉलर है। चीन की वैश्विक ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल की तुलना में रूस की क्षेत्रीय एकीकरण परियोजना- ‘यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन’ के घटते महत्व से चीन की ओर झुकाव दिखाई देता है। अवसंरचना निवेश का ‘बेल्ट एंड रोड’ कार्यक्रम 2013 में कजाखस्तान में शी ने शुरू किया था और तब से यह क्षेत्र न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि राजनीतिक रूप से भी चीन के करीब आ गया है। यूक्रेन युद्ध संबंधी प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप रूसी ‘‘उत्तरी गलियारा’’ अब काफी हद तक बंद है, ऐसे में ‘मध्य गलियारा’ कहा जाने वाला मार्ग न केवल चीन के लिए बल्कि जी7 देशों के लिए भी महत्वपूर्ण हो गया है। मध्य गलियारा तुर्की में शुरू होता है और जॉर्जिया एवं मध्य एशिया से गुजरता है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (R) ने कहा कि समान भू-राजनीतिक महत्व वाला एक अन्य विकल्प अफगानिस्तान के जरिए पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर के माध्यम से अरब सागर तक परिवहन है। लंबी अवधि में, अफगानिस्तान से गुजरने वाला मार्ग चीन और मध्य एशिया दोनों के हित में है। यह अफगानिस्तान में स्थिरता और सुरक्षा में योगदान देगा (लेकिन इस पर निर्भर भी करेगा)। पांच मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रपतियों ने जिस उत्साह के साथ इन पहलों का स्वागत किया है, वह यह दर्शाता है कि वे चीन के निकट जाने के कितने इच्छुक हैं। बहरहाल, यह देखना होगा कि यह दृष्टिकोण क्षेत्र में चीन विरोधी भावना के मद्देनजर कितना टिकाऊ या लोकप्रिय होगा।

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