कतर देश में इन दिनों फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप का आयोजन हो रहा है। दुनिया भर के फुटबॉल प्रेमी फीफा विश्वकप का आनंद लेने के लिए कतर पहुंचे हुए है। फैंस अपनी पसंदीदा टीम का समर्थन कर रहे है। फुटबॉल फीफा विश्व कप के बीच इसका मजा किरकिरा करने वाली खबर सामने आई है।
दरअसल कतर में कैमल फ्लू का खतरा पैदा हो गया है। इसे मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम बीमारी के नाम से भी जाना जाता है। फुटबॉल मुकाबलों को देखने आए फैंस के बीच इस बीमारी के फैलने का खतरा बना हुआ है। गौरतलब है कि फीफा विश्व कप का आयोजन 18 दिसंबर तक होगा मगर इस बीमारी के फैलने से जोखिम बढ़ गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के विशेषज्ञों को डर है कि फीफा विश्व कप 2022 देखने के लिए कतर में मौजूद प्रशंसकों को घातक कैमल फ्लू का खतरा हो सकता है। बता दें कि कैमल फ्लू को कोविड -19 वायरस की बिरादरी का ही माना जाता है, जिसके कारण वर्तमान में दुनिया भर में वैश्विक महामारी फैली हुई है। आंकड़ों के मुताबिक कतर में विश्व कप के आयोजन के कारण 1.2 मिलियन लोगों के जुटने की संभावना है। कोरोना वायरस महामारी और मंकीपॉक्स का प्रकोप झेल रही दुनिया पर कैमल फ्लू का खतरा मंडरा रहा है। जानकाी के मुताबिक कतर में बीते कुछ दशकों में दर्जनों लोगों को कैमल फ्लू के कारण संक्रमण का शिकार होना पड़ा है। इस वायरस की चपेट में आए एक तिहाई लोगों की मौत हो चुकी है।
कतर विश्व कप 2022 के दौरान तेजी से फैलने वाले कैमल फ्लू को आठ संभावित जोखिमों की सूची में शामिल किया गया है। इस सूची में संक्रमणों और वायरसों के नाम शामिल हैं जो फीफा विश्व कप के आयोजन के दौरान बढ़ सकते है।
जानें क्या है कैमल फ्लू
कैमल फ्लू दरअसल एक सांस से संबंधित बीमारी है। इस बीमारी का इलाज अगर शुरुआती स्टेज पर नहीं किया जाए तो ये मरीज के लिए घातक साबित हो सकती है। इस बीमारी में सामान्य लक्षण देखने को मिलते है। बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ और शरीर में हल्का दर्द होना इस बीमारी के मुख्य लक्षणों में शामिल है। इससे पीड़ित मरीज को डायरिया और हल्का पेट दर्द भी हो सकता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को कुछ मामलों में निमोनिया भी हो जाता है।
एक दशक पहले आया था पहला मामला
कैमल फ्लू का पहला मामला सऊदी अरब में वर्ष 2012 में सामने आया था। इसके बाद से ये मध्य पूर्वी देशों में फैलने लगा था। जानकारी के मुताबिक यह एक जूनोटिक बीमारी है और इंसानों और जानवरों के बीच फैल सकती है। वहीं इससे होने वाली मौतों की बात करें तो इससे लगभग 35 प्रतिशत पीड़ितों की मौत हो चुकी है।