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भारत के आगे झुका चीन, सारी शर्तें मानकर करेगा काम

अमेरिका और चीन के बीछ छिड़े टैरिफ विवाद को लेकर मामला अब इतना आगे बढ़ चला है कि चीन अब नए विकल्पों की ओर देखने लगा है। इन विकल्पों में चीन के सामने एक पसंदीदा नाम हमेशा की तरह से भारत सामने आया है। इसके पीछे के कई कारण हैं। हाल के दिनों में भारत और चीन के रिश्तों में गलवान घाटी झड़प के बाद से सुधार देखने को मिल रहा है। चीन पहले के मुकाबले भारत के साथ ज्यादा अकड़ की जगह भारत के साथ प्रेम भाईचारा और दोस्ती के हवाले देकर बात आगे बढ़ाना चाहता है। वहीं दूसरी तरफ भारत के साथ उसका बढ़ता ट्रेड डिफेसिट घाटा भी उसे परेशान कर रहा है कि कहीं भारत कहीं चीन के इस षड़यंत्र से आगे न निकल जाए। इन सब के बीच चीन भारत में निवेश करने के लिए अपनी आतुरता दिखा रहा है। 

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इसके पीछे का एक और बड़ा खेल है। चीन के निवेश को भारत संयमित रखना चाहता है। वहीं चीन चाहता है कि भारत एक बड़ा बाजार है और वो अपने व्यापार का विस्तार भारत में कर सकता है। यही वजह है कि अब चीन की कई कंपनियां भारत में पहले के मुकाबले ज्यादा लचीला रवैया अपनाने को तैयार नजर आ रही हैं। शंघाई हाईली चीन की बहुत बड़ी कंप्रेसर बनाने वाली कंपनी है। इस कंपनी ने टाटा के मालिकाना हक वाली वोल्टास के साथ फिर से ज्वाइंट वेंचर की बातचीत शुरू कर दी है। दो साल पहले इन दोनों कंपनियों का एक ज्वाइंट वेंचर बनने वाला था, जिसमें चीनी कंपनी की हिस्सेदारी 60 % थी। लेकिन सरकार ने मंजूरी नहीं दी। लेकिन अब शंघाई हाइले अब माइनॉरिटी हिस्सेदारी रखने को तैयार है। जो पहले बिल्कुल मानने के लिए तैयार नहीं थी। 

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चीन पर भी दबाव है इस बात को समझते हुए चीन भारत के लिए लचिला रुख अख्तियार कर रहा है। केवल यही कंपनी नहीं इसके अलावा हायर भी उनमें से एक है। हायर चीन की बड़ी कंपनी है और वो पहले भारत में अपना 26 फीसदी हिस्सा किसी भारतीय कंपनी को बेचने की योजना बना रही थी। अब खबर है कि हायर अपने बिजनेस का 51 से 55 प्रतिशथ हिस्सा बेचने को तैयार है ताकी वो भारत में बना रह सके और निवेश बढ़ा सके। यानी चीनी कंपनियां भारत की शर्तों को मानने को राजी दिखाई पड़ रही हैं। चाहे वो माइनॉरिटी स्टेक हो या टेक्नोलॉजी शेयर करना हो। भारतीय बाजार के एक्सपर्ट्स मानते हैं कि दरअसल, चीन पर बढ़ता दबाव और भारत की सजकता चीन को परेशान कर रही है। जिस तरह से भारत और के बीच में ट्रेड डिफेसिट बढ़ रहा है उसे लेकर वाकई में भारत इस मंथन पर जुटा है कि कैसे वो अपनी चीन पर निर्भरता कम कर सके। 

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