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Sri Lanka में चीन का अभेद्य किला, भारत की बढ़ सकती है टेंशन

कर्ज में डूबा श्रीलंका कराह रहा है लेकिन गिद्ध की तरह चीन तो उस मौके पर नजरें गड़ाए बैठा है। हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट के बाद अब चीन श्रीलंका में एक और बंदरगाह बनाने जा रहा है। दो अरब डॉलर की भारी-भरकम निवेश के साथ चीन के सरकारी कंपनी श्रीलंका में लॉजिस्टिक हब का निर्माण करेगी। मकसद साफ है कर्ज में डूबे श्रीलंका के भौतिक संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल। 

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गौरतलब है कि आर्थिक रूप से दिवालिया होने के बाद श्रीलंका वर्ल्ड बैंक से लेकर आईएमएफ तक सभी से कर्ज मांग चुका है। थोड़ी-बहुत मदद मिली भी है, लेकिन इकोनॉमी को बूस्ट करने के लिए उतनी मदद काफी नहीं है। श्रीलंका को भारी मदद की दरकार है। ऐसे में वो चीन की पेशकश को ठुकराने की हालात में तो नहीं है। चीन भी ऐसे ही मौके की तलाश में था। हंबनटोटा पोर्ट तो उसने लीज पर ले लिया था। जिसका इस्तेमाल वो मिलिट्री बेस के रूप में करता है। अब चीन की सरकारी कंपनी चाइना मार्चेंटाइज ग्रुप ने एक ऐलान किया है।  वो कोलंबो बंदरगाह पर एक बड़े लॉजिस्टिक कॉम्पलेक्स का निर्माण करने जा रही है। जिसकी लागत करीब 392 मिलियन डॉलर आंकी गई है। 

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श्रीलंका में क्या चल रहा है और यह कैसे हुआ?

सीधे शब्दों में कहें तो श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। देश के सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग द्वारा वर्षों के कुप्रबंधन और महिंदा राजपक्षे की अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की ओर रुख न करने की जिद ने श्रीलंका के आर्थिक संकट को और बढ़ा दिया है। श्रीलंका वर्तमान में अत्यधिक मुद्रास्फीति, बजट और खाता घाटे, एक अवमूल्यित मुद्रा और एक गुब्बारे वाले विदेशी ऋण से जूझ रहा है जिसे अब चुकाया नहीं जा सकता है।  2009 के गृहयुद्ध के बाद, देश (या बल्कि इसके सत्तारूढ़ राजनीतिक अभिजात वर्ग) ने युद्ध के खर्चों में मदद करने के लिए बड़े पैमाने पर ऋण लिया और अत्यधिक, अनावश्यक और महंगी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को शुरू करने के लिए जिनका बहुत कम व्यावहारिक प्रभाव या वापसी की उम्मीद थी। कोविड-19 महामारी ने श्रीलंका के पर्यटन को तबाह कर दिया, जो देश की विदेशी मुद्रा का मुख्य स्रोत था। वर्तमान में, देश को चीन और अन्य उधारदाताओं को अपने ऋण के पुनर्गठन में मदद करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ काम करना चाहिए। 

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