Breaking News

चीनी साहित्य विशेषज्ञ जानकी बल्लभ का बीजिंग में निधन

अपनी पत्नी के साथ चीन में लंबे समय तक रहने वाले पहले चीनी साहित्य विशेषज्ञ जानकी बल्लभ का उम्र संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण शुक्रवार को यहां निधन हो गया। उनके परिवार ने शनिवार को यहां यह जानकारी दी। वह 94 साल के थे।
उनके परिवार में दो बेटे-अखिल डालाकोटी और अतुल डालाकोटी हैं। अखिल सिंगापुर में शिपिंग एक्जीक्यूटिव तथा अतुल चीन में भारतीय वाणिज्य और उद्योग महासंघ (फिक्की) के कार्यकारी निदेशक हैं।
बल्लभ की शादी श्यामा बल्लभ से हुई थी, जो दशकों पहले रेडियो बीजिंग में पहली हिंदी उद्घोषक थीं।

उन्होंने बच्चों से संबंधित कई चीनी किताबों का हिंदी में अनुवाद भी किया। श्यामा का 2014 में बीजिंग में निधन हुआ था।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा के डालाकोट गांव में जन्मे बल्लभ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से निकटता से जुड़े थे।
उनके बेटे अतुल ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद बल्लभ 1956 में एक हिंदी विशेषज्ञ के रूप में चीन पहुंचे और फिर इस देश से उनका लंबा जुड़ाव हो गया।

चीन में अपने विभिन्न कार्यकालों के दौरान, बल्लभ ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के संस्थापक माओ जेडोंग के ‘सलेक्टेड वर्क्स’; चीनी उपन्यास जर्नी टू द वेस्ट ; प्रमुख चीनी लेखक, निबंधकार, कवि और साहित्यिक आलोचक लू शुन की रचनाओं और कई अन्य महत्वपूर्ण चीनी साहित्यिक कार्य का हिंदी में अनुवाद किया।
हाल के दिनों में बल्लभ ने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की किताब द गवर्नेंस ऑफ चाइना के पहले खंड का अनुवाद किया और 90 साल की उम्र में इसके दूसरे खंड का अनुवाद पूरा किया।
वर्ष 1961 में उन्हें तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाई द्वारा शांति और मित्रता पुरस्कार दिया गया था।

बल्लभ पहले भारतीय भी थे जिन्हें अपनी पत्नी के साथ चीन में दीर्घकालिक आवास मिला।
वर्ष 1956 में 28 साल की उम्र में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में चीन पहुंचने के बाद, बल्लभ ने बीजिंग में पांच साल तक ‘फॉरेन लैंग्वेजेज प्रेस’ के लिए काम किया और 1961 तक देश में रहे।
वह 1962 में भारत-चीन युद्ध से पहले भारत लौट आए और वीर अर्जुन , सैनिक समाचार , न्यू एज (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का आधिकारिक प्रकाशन) सहित विभिन्न भारतीय प्रकाशनों तथा बाद में 1963-77 के दौरान चीनी दूतावास के सांस्कृतिक कार्यालय में काम किया।
वह 1982 में चीन लौट आए और फॉरेन लैंग्वेजेज प्रेस (बीजिंग) और रेडियो चाइना के लिए काम किया।
दिल का दौरा पड़ने के बाद बल्लभ भारत वापस चले गए और बाद में ठीक होने के बाद अपने बेटे अतुल के साथ रहने के लिए बीजिंग लौट आए थे।

Loading

Back
Messenger