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रसोई के गंदे तौलिया कीटाणुओं के लिए प्रजनन स्थल हैं, आइए जाने इन्हें ठीक से कैसे साफ किया जाए

रसोई में सभी प्रकार के कीटाणु और जीवाणु हो सकते हैं। ये मनुष्यों, पालतू जानवरों, कच्चे भोजन या यहां तक कि पौधों के माध्यम से भी फैल सकते हैं, जिसका अर्थ है कि खाद्य जनित संक्रमण के कई कारक घर के भीतर ही मौजूद होते हैं।
अधिकतर रसोई में सफाई का एक महत्वपूर्ण साधन ‘टी टॉवल’ (कपड़े का तौलिया) है, जिसे बर्तन साफ करने के कपड़े के रूप में भी जाना जाता है।

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आमतौर पर कॉटन या लिनेन से बने इस कपड़े का उपयोग गीले हाथों को पोछने और रसोई के बर्तनों को सुखाने के साथ-साथ सतहों को पोंछने के लिए किया जाता है, इसलिए ये रसोई की स्वच्छता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हालांकि, हाथ और कच्ची सब्जियां और खाद्य पदार्थ अक्सर विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं से भरपूर होते हैं, ऐसे में रसोई के तौलिये के संपर्क में आने से उनमें कीटाणुओं के पनपने का खतरा रहता है।
रसोई के उन तौलिया पर एक अध्ययन किया गया, जिनका उपयोग ऐसे बोर्ड को साफ करने के लिए किया गया था, जिन पर सलमोनेला जीवाणु से ग्रसित मुर्गे को काटा गया था। अध्ययन में पाया गया कि ऐसे बोर्ड को साफ करने के लिए इस्तेमाल किए गए 90 प्रतिशत तौलिया सलमोनेला से संक्रमित पाए गए।
सलमोनेला के संक्रमण के कारण अतिसार, बुखार और पेट में दर्द समेत अन्य दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
कई अध्ययनों में देखा गया है कि रसोई में सफाई के लिए उपयोग होने वाले तौलिये आमतौर पर रसोई में मौजूद कीटाणुओं के प्रसार का कारण बनते हैं।

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एक अध्ययन में इस्तेमाल किए गए 100 रसोई तौलियों का नमूना लिया गया और उनमें ‘स्टैफिलोकोकस ऑरियस’ जीवाणु की उल्लेखनीय उपस्थिति पाई गई, जो अक्सर त्वचा पर पाया जाता है लेकिन यह एक रोगजनक भी है जो फोड़े-फुंसी, जोड़ों में संक्रमण और यहां तक कि निमोनिया जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है।
रसोई के तौलिये में कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं। 46 रसोई घरों पर किए गए एक अन्य अध्ययन में रसोई की सतहों पर रहने वाले हानिकारक जीवाणु प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला पाई गई, जिन्हें अक्सर तौलिये से साफ किया जाता है।
कई रसोई की सतहों पर ‘एंटरोबैक्टर’ (जो श्वसन तंत्र में संक्रमण, त्वचा में संक्रमण, मूत्र संक्रमण और हड्डी तथा आंखों में संक्रमण का कारण बन सकता है), ‘क्लेबसिएला’ (जो फेफड़ों, मूत्राशय, मस्तिष्क और रक्त के गंभीर संक्रमण से जुड़ा हुआ है) और ‘ई. कोलाई’ (जो पेट में दर्द और मूत्र संक्रमण का कारण बन सकता है) पाया गया।
कई रसोइयों में ‘स्यूडोमोनास एरुगिनोसा’ की मौजूदगी भी थी, जो फेफड़ों में संक्रमण का कारण बन सकता है। इसके अलावा कई अन्य तरह के जीवाणु भी रसोई के तौलिये के सपंर्क में आते हैं, जिसका उपयोग करने से कई अन्य तरह के संक्रमण का खतरा बना रहता है।
इन तौलियों पर पाए जाने वाले कीटाणुओं के स्तर और प्रकार, इस बात से प्रभावित होते हैं कि उनका उपयोग कैसे किया जाता है, उन्हें कितनी बार धोया जाता है और उन्हें कितने समय तक सुखाया जाता है। वहीं, 60° डिग्री सेल्सियस गर्म पानी में रसोई के तौलिये को धोने से कीटाणुओं के स्तर में कमी पाई गई है।

कीटाणुओं को कम करें
रसोई के तौलिये के जरिये कीटाणुओं के प्रसार से बचने के लिए यह सलाह दी जाती है कि तौलिये को नियमित रूप से धोया जाए और जब वे गीले हो जाएं, तो उन्हें दोबारा इस्तेमाल करने से पहले पूरी तरह सूखने दिया जाए।
इसके अलावा, अत्यधिक दूषित सतहों को साफ करने के लिए एक बार उपयोग कर फेंके जाने वाले कपड़े या कागज के तौलिये का उपयोग करने से भी कीटाणुओं के प्रसार को रोकने में मदद मिल सकती है।
रसोई के तौलिये की स्वच्छता के संदर्भ में आपको इसे दिन में कम से कम एक बार या प्रत्येक उपयोग के बाद साफ करना और अच्छी तरह से सुखाना चाहिए। ब्रिटिश सरकार की सिफारिश है कि रसोई के तौलिये को 90 डिग्री सेल्सियस के गर्म पानी में डिटर्जेंट पाउडर का उपयोग करते हुए वॉशिंग मशीन में धोकर साफ किया जाना चाहिए।

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