प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर की वियतनाम यात्रा को आप कैसे देखते हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यह यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही। उन्होंने कहा कि इस यात्रा के माध्यम से जयशंकर दुनिया को यह संदेश देने में सफल रहे कि भारत एक ऐसा देश बनकर उभरा है जो उच्च स्तर के आत्मविश्वास के साथ दुनिया में कहीं अधिक योगदान देने तथा विश्व के विरोधाभासों से सामंजस्य बिठाने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि वियतनाम के साथ भारत के गहरे ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक जुड़ाव रहे हैं जिसको वर्तमान नेतृत्व आगे बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि दरअसल चीन ने फिशिंग बोट्स के नाम पर दक्षिण चीन सागर में हजारों नावें छोड़ रखी हैं जबकि इनका असल काम जासूसी करना है जिससे इस क्षेत्र के सारे देश परेशान हैं। उन्होंने कहा कि चीन भले एक ओर अपने बीआरआई सम्मेलन को सफल बनाने में जुटा हुआ था लेकिन दूसरी ओर उसकी आंखें वियतनाम में भारतीय विदेश मंत्री की यात्रा पर भी लगी हुई थी। भारत और वियतनाम और अमेरिका तथा वियतनाम के बीच होने वाली हर वार्ता, मुलाकात और समझौते को चीन गिद्ध दृष्टि से देखता रहता है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत और वियतनाम एशिया में दो सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं हैं। दोनों देशों के बीच 15 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार बहुत तेजी से और बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि भारत और वियतनाम लंबे समय से विश्वसनीय साझेदार रहे हैं। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह समेत शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात कर दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, रक्षा और समुद्री सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की जिसके सफल परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे। इसके साथ ही जयशंकर ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के दृष्टिकोण को साझा करते हुए इस क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार को लेकर भी चर्चा की। साथ ही जयशंकर और वियतनाम के विदेश मंत्री ने भारत और वियतनाम के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संयुक्त रूप से स्मारक डाक टिकट भी जारी किया। दोनों नेताओं ने हनोई में 18वीं भारत-वियतनाम संयुक्त आयोग की बैठक की सह-अध्यक्षता भी की। दोनों देशों की चर्चाओं में राजनीतिक, रक्षा और समुद्री सुरक्षा, न्यायिक, व्यापार एवं निवेश, ऊर्जा, विकास, शिक्षा एवं प्रशिक्षण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अलावा सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग शामिल था। दोनों पक्ष व्यापार और निवेश गतिविधियों के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए निकट समन्वय पर भी सहमत हुए, जिसके तहत आपसी कारोबार को जल्द ही 20 अरब अमेरिकी डॉलर तक लाने का प्रयास किया जाएगा।
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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत, अमेरिका तथा कई अन्य शक्तिशाली देश संसाधन संपन्न क्षेत्र में चीन के बढ़ते कदमों के बीच स्वतंत्र, खुले और समृद्ध हिंद प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने की जरूरत पर लगातार जोर देते रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन विवादित दक्षिण चीन सागर के लगभग पूरे हिस्से पर अपना दावा करता है, हालांकि ताइवान, फिलीपीन, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम सभी इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं। बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठानों का निर्माण किया है। चीन का पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ भी क्षेत्रीय विवाद है। उन्होंने कहा कि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) को इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक माना जाता है, तथा भारत और अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देश इसके संवाद भागीदार हैं।