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पहले अमेरिका और अब इजरायल हुआ बाहर, क्या संयुक्त राष्ट्र में बदलाव का वक्त आ गया है? भारत भी लेगा बड़ा फैसला!

क्या यूनाइटेड नेशन का अंत नजदीक आ गया है। दरअसल, अमेरिका ने यूएनएचआरसी से बाहर निकलने का फैसला कर लिया है। पहले डब्लूएचओ और अब संयुक्त राष्ट्र मावाधिकार परिषद की बारी है। भारत की तरफ से भी पिछले कई सालों से यूएनएचआरसी में बदलाव की बात की जा रही है। तो ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि क्या बदलाव नहीं हुआ तो भारत भी यूएन से बाहर होगा? यूएनएचआरसी यानी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद पर हमेशा से ये आरोप लगता रहा है कि वो एकतरफा फैसला लेता है। अमेरिका का दावा है कि यूएनएचआरसी में इजरायल के खिलाफ पक्षपात किया जाता है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि ये संस्था भ्रष्ट हो चुकी है और इसमें सुधार की जरूरत है। साल 2019 में  अमेरिका और इजरायल ने यूनेस्को से खुद को अलग कर लिया था और इजरायल ने एजेंसी की आलोचना करते हुए कहा था कि यह उसके देश की सीमाओं के भीतर यहूदी इतिहास को खत्म कर रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की घोषणा के एक दिन बाद इज़राइल ने भी उसी का पालन करने का फैसला किया।  इज़राइल के विदेश मंत्री गिदोन सार ने घोषणा की कि यहूदी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र निकाय में अपनी भागीदारी रोक देगा।

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इजराइल ने यूएनएचआरसी पर लगाया भेदभाव करने का आरोप

इजरायली मंत्री सार ने दावा किया कि यूएनएचआरसी का हमारे खिलाफ भेदभाव का रवैया रहा है। इसके लिए समर्पित है। इजरायली मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि यूएनएचआरसी ने इजरायल के खिलाफ 100 से अधिक निंदात्मक प्रस्ताव पारित किए हैं, जो अब तक पारित सभी प्रस्तावों का 20 प्रतिशत से अधिक है। दिलचस्प बात यह है कि यह ईरान, क्यूबा, ​​उत्तर कोरिया और वेनेजुएला जैसे देशों के खिलाफ कुल संयुक्त प्रस्तावों से भी अधिक है। इजराइल अब इस भेदभाव को स्वीकार नहीं करेगा। 

ट्रंप ने अमेरिका को किया अलग

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) से अमेरिका के अलग होने संबंधी एक शासकीय आदेश पर हस्ताक्षर किए और फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए एजेंसी को भविष्य में सहायता राशि जारी करने पर भी रोक लगा दी है। ट्रंप ने मंगलवार को अपने प्रशासन को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) में उसकी भागीदारी की समीक्षा करने का भी निर्देश दिया। शासकीय आदेश में कहा गया कि अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भविष्य के वैश्विक संघर्षों को रोकने और अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र की स्थापना में मदद की थी। लेकिन संयुक्त राष्ट्र की कुछ एजेंसियां ​​और इकाई इस मिशन से भटक गए हैं और इसके बजाय अमेरिका के हितों के विपरीत कार्य कर हमारे सहयोगियों को निशाना बना रहे हैं और यहूदी-विरोधी प्रचार कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र और भारत

भारत के साथ संयुक्त राष्ट्र का व्यवहार हमेशा सामान्य ही रहा है। हालांकि कुछेक मौकों पर भारत को इस संस्था से निराशा हाथ लगी। वर्ष 1948 में जम्मू-कश्मीर समस्या, वर्ष 1971 का पूर्वी पाकिस्तान का संकट और आजकल आतंकवाद के मुद्दे पर जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र ने भारत के साथ व्यवहार किया उससे आम जनता का इस पर से थोड़ा भरोसा कम हुआ है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत स्थायी सदस्यता की दावेदारी कर रहा है पर उसे अभी तक यह दर्जा हासिल नहीं हुआ है। भारत के प्रधानमंत्री ने यूएजीए के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए इस संस्था को नसीहत भी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्‍त राष्‍ट्र में सुधारों की पुरजोर पैरवी की। उन्‍होंने नसीहत दी कि अगर वह सुधारों की दिशा में नहीं बढ़ा तो अपनी प्रासंगिकता गंवा देगा। पीएम बोले कि आज यूएन पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। 

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