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Gene therapy कई तरह की दृष्टिहीनता को ठीक करने में मददगार

(कन्वरसेशन) नये वैज्ञानिक खोजों ने ‘जीन थेरेपी’ (जीन आधारित उपचार) के जरिये कुछ तरह की आनुवांशिक दृष्टिहीनता के इलाज को लेकर नये उपायों को रेखांकित किया है। इससे विश्व स्तर पर दृष्टिदोष की समस्या से जूझ रहे 29.5 करोड़ लोगों के जीवन में रोशनी आने की आस जगी है।
दुनियाभर में करीब 4.3 करोड़ लोग दृष्टिहीनता से ग्रसित हैं। जीन बेनेट एक जीन थेरेपी विशेषज्ञ और पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में नेत्र विज्ञान की प्रोफेसर हैं। वह और उनकी प्रयोगशाला ने पहली जीन थेरेपी दवा विकसित की, जिसे अमेरिका में मंजूरी मिलनी है।

‘लक्सटुर्ना’ नामक दवा जीवन के शुरुआती दिनों में एक दुर्लभ आनुवांशिक रोग के कारण दृष्टिदोष और दृष्टिहीनता से पीड़ित मरीजों के इलाज में इस्तेमाल की जाती है। इस रोग से पीड़ित मरीजों में बायलेलिक आरपीई65 उत्परिवर्तन के कारण रेटिना क्षतिग्रस्त हो जाता है।
इस बारे में ‘कन्वरसेशन’ की ओर से पूछे गये सवालों का बेनेट ने विस्तार से जवाब दिया, जिसके प्रमुख अंश हैं-

जीन थेरेपी क्या है और यह कैसे काम करती है?
जीन थेरेपी कई तकनीक का एक समूह है जो बीमारी के इलाज या रोकथाम के लिए डीएनए या आरएनए का उपयोग करती है।

जीन थेरेपी तीन प्राथमिक तरीकों से बीमारी का इलाज करती है-पहला यह कि रोग पैदा करने वाले जीन को उस जीन की एक स्वस्थ और नये या संशोधित जीन की प्रति से प्रतिस्थापित करना, जीन को सक्रिय या निष्क्रीय करना और शरीर में एक नये या संशोधित जीन को प्रवेश कराना।

चिकित्सक आनुवांशिक नेत्र रोगों और दृष्टिहीनता को कैसे ठीक करते हैं?
पहले बहुत से चिकित्सक नेत्र रोग के आनुवांशिक आधार को चिह्नित करने को जरूरी नहीं समझते थे क्योंकि इलाज उपलब्ध नहीं था। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों (जिसमें मैं और मेरे सहयोगी शामिल हैं) ने अपने शोध में इन जीन संबंधी विकृतियों को चिह्नित किया और आश्वस्त किया कि किसी दिन इसका इलाज करना संभव होगा।

कुछ समय के दौरान इम इलाज का तरीका विकसित करने में समर्थ थे खासकर उन लोगों के लिए जो विशेष जीन संबंधी विकृति के कारण जन्मजात दृष्टिहीनता से पीड़ित थे।
आनुवांशिक रोग के लिए जीन थेरेपी के विकास ने दुनियाभर के दूसरे समूहों को भी ‘क्लिनिकल’ परीक्षण करने के लिए प्रेरित किया और इसके तहत दृष्टिहीनता के अन्य आनुवांशिक रूपों को लक्षित किया गया। आनुवांशिक करणों से ‘कोरॉइडेरेमिया’, ‘अक्रोमैटोप्सिया’, ‘रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा’ और यहां तक कि उम्र से संबंधित ‘मैकुलर क्षति’ का रोग होता है जिसके कारण दृष्टि का लोप हो जाता है।

दृष्टिहीनता का रोग देने वाले कई आनुवांशिक प्रकारों को लेकर कम से कम 40 ‘क्लिनिकल परीक्षण’ जारी हैं।

आपने अमेरिका में मंजूरी पाने वाली पहली जीन थेरेपी में से एक को विकसित किया है, लेकिन जीन थेरेपी के नैदानिक इस्तेमाल की ताजा स्थिति क्या है?
अमेरिका में अब कई स्वीकृत जीन थेरेपी हैं, लेकिन अधिकांश को कोशिका उपचार (सेल थेरेपी) के साथ जोड़ दिया जाता है। इसके तहत एक कोशिका को पहले संशोधित किया जाता है और इसे रोगी के शरीर में फिर से प्रवेश कराया जाता है।

एक नयी प्रवेश कराने योग्य जीन थेरेपी के तहत ‘स्काईसोना’ नामक दवा चार से 17 साल के उन बच्चों को दी जाती है जो मस्तिष्क की आनुवांशिक बीमारी (एड्रेनोल्युकोडिस्ट्रॉफी) के शिकार होते हैं।
अमेरिकी संस्था एफडीए की ओर से दो दर्जन से अधिक सेल एवं जीन थेरेपी को मंजूरी दी गई है जिसमें सीएआर टी-सेल थेरेपी शामिल है।
‘सीएआर टी-सेल थेरेपी’ के तहत टी कोशिकाओं (प्रतिरक्षा प्रणाली से संबंधित कोशिकाओं का एक प्रकार) को संशोधित किया जाता है ताकि वे शरीर में कैंसरकारी कोशिकाओं पर बेहतर तरीके से हमला कर सकें।

जीन थेरेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
सबसे बड़ी चुनौतियों में प्रणालीगत रोग (सिस्टमेटिक डिजीज) या ऐसे रोग शामिल हैं जो किसी एक अंग या शरीर के किसी एक हिस्से की बजाय पूरे शरीर को प्रभावित करते हैं। ऐसे रोगों के लिए उच्च खुराक वाली जीन थेरेपी दी जानी चाहिए, लेकिन चुनौती यह है कि जीन थेरेपी के यौगिक की बड़ी मात्रा को तैयार कैसे किया जाए ताकि लक्षित रोग ग्रस्त ऊतकों का इलाज हो जाए और कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़े।

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