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India US Defence: कितना भरोसेमंद है अमेरिका? कारगिल युद्ध के वक्त नहीं दी थी GPS सर्विस, मिले धोखे के कारण भारत ने बनाया NavIC सिस्टम

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 जून को अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जाने वाले हैं। इसके साथ ही दोनों देशों के संबंधों के इतिहास की चर्चा एक बार फिर से तेज हो चली है। भारत और अमेरिका दोनों देशों का इतिहास कई मामलों में एक सा रहा है। दोनों देशों ने औपनिवेशिक सरकारों के खिलाफ संघर्ष कर अमेरिका ने 1776 में और भारत ने 1947 में आजादी पाई है। लेकिन दोनों देशों के संबंध हमेशा से उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। एक वक्त ऐसा भी आया था जब अमेरिका ने कारगिल युद्ध के दौरान  ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस को ब्लॉक कर भारत के पीठ में छुरा भोंका था। क्या हुआ था आइए जानते हैं।

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अमेरिका ने कारगिल युद्ध के वक्त नहीं दी थी जीपीएस सर्विस
ये 1999 के कारगिल युद्ध की बात है। अमेरिका ने भारत को जीपीएस की सर्विस देने से मना कर दिया था। इस वजह से भारत को खुद की नेविगेशन प्रणाली बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। जब कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका ने जीपीएस की पहुंच को भारत के लिए रोक दिया था। जिसके बाद हमें उपग्रह आधारित नेविगेशन प्रणाली के सामरिक महत्ता का अंदाजा लगा। भारत को अगर जीपीएस सर्विस मिल जाती तो गाइडेड मिसाइलों से हमले कर ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ा जा सकता था। जिससे भारत को पाकिस्तान पर आसानी से बड़ी बढ़त हासिल हो जाती। लेकिन जीपीएस की मदद के बिना ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना को नीचे से हमला करना पड़ा, जिसमें व्यापक स्तर पर जानहानि भी हुई। 

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भारत ने नेविगेशन प्रणाली के सामरिक महत्व को समझा
नाविक को आंशिक रूप से विकसित किया गया था क्योंकि शत्रुतापूर्ण स्थितियों में विदेशी सरकार द्वारा नियंत्रित वैश्विक नेविगेशन उपग्रह प्रणालियों तक पहुंच की गारंटी नहीं है, जैसा कि 1999 में भारतीय सेना के साथ हुआ था जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) डेटा कारगिल क्षेत्र के लिए भारतीय अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। अगर अमेरिका ने अपना जीपीएस साझा किया होता तो भारत की महत्वपूर्ण सूचनाओं तक पहुंच हो सकती थी। इसलिए, भारत सरकार ने 2013 में इस परियोजना को मंजूरी दी। 28 मई, 2013 को, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने परियोजना के एक हिस्से के रूप में अपने डीप स्पेस नेटवर्क (डीएसएन) के भीतर एक नई सुविधा खोली। देश भर में 21 रेंजिंग स्टेशनों का एक नेटवर्क उपग्रहों के कक्षीय निर्धारण और नेविगेशन सिग्नल की निगरानी के लिए डेटा प्रदान करेगा। जबकि तीन उपग्रह हिंद महासागर की भूस्थैतिक कक्षा में हैं, कम ऊंचाई की स्थिति में उनका स्थान कम झुकाव वाले उपग्रहों की सुविधा प्रदान करेगा। 
भारत ने बनाया स्वदेशी नाविक
हालांकि, भारत अब अमेरिकी जीपीएस से अपनी निर्भरता हटाने के काफी करीब पहुंच गया है। भारत ने खुद के उपग्रह आधारित नेविगेशन प्रणाली नाविक को हाल ही में लॉन्च किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने नेविगेशन सैटलाइट को लेकर जा रहे जीएसएलवी रॉकेट के लॉन्च के के जरिए दूसरी पीढ़ी के स्वदेशी नेविगेशन सैटलाइट की सीरीज लॉन्च किया। लॉन्च सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड से हुआ। इससे भारत के स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम NAVIC (नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टिलेशन) की निरंतरता बनाए रखने में मदद मिलेगी। बता दें कि नाविक जीपीएस की तरह काम करता है। यह भारत में और इसके 1500 किलोमीटर इर्दगिर्द के दायरे में सटीक रियल टाइम नेविगेशन सुनिश्चित करता है। नाविक के सिग्नल ऐसे हैं कि वे 20 मीटर तक के दायरे में यूजर की सटीक पोजिशन बता सकते हैं। यह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित “होने वाले सात उपग्रहों का एक समूह है।
स्वदेशी तकनीक की ताकत
सैटलाइट में पहली बार स्वदेशी रूबिडियम अटॉमिक घड़ी लगी है जो सही तारीख और लोकेशन बताने का काम करेगी। दुनिया में चंद देशों के पास ही ऐसी घड़ी बनाने की तकनीक है। इसे अहमदाबाद की एक कंपनी ने बनाया है।

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