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स्विटजरलैंड की अदालत के सजा सुनाने पर हिंदुजा परिवार स्तब्ध, अपील दायर की

लंदन। ब्रिटेन के सबसे धनी परिवार हिंदुजा ने कहा है कि वह अपने कुछ सदस्यों को स्विटजरलैंड की अदालत द्वारा जेल की सजा सुनाये जाने के फैसले से स्तब्ध है और उन्होंने इसके खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील दायर कर इस निर्णय को चुनौती दी है। स्विस अदालत ने हिंदुजा परिवार के चार सदस्यों को जिनेवा स्थित अपने विला में घरेलू सहायकों का शोषण करने का दोषी पाया था। 
शुक्रवार को परिवार की ओर से जारी एक बयान में स्विट्जरलैंड के वकीलों ने अपने मुवक्किलों का बचाव करते हुए कहा कि प्रकाश और कमल हिंदुजा (दोनों की आयु 70 वर्ष) तथा उनके बेटे अजय और उनकी पत्नी नम्रता को मानव तस्करी के सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है। उन्होंने जिनेवा स्थित अदालत के आदेश के बाद परिवार के किसी भी सदस्य को हिरासत में लिए जाने के मीडिया रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया। वकील येल हयात, रॉबर्ट असैल और रोमन जॉर्डन द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया है, “हमारे मुवक्किलों को मानव तस्करी के सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है। 
प्रथम दृष्टया, इस अदालत में लिये गये बाकी निर्णय से हम स्तब्ध व निराश हैं और हमने निश्चित रूप से उपरी अदालत में अपील दायर की है, जिससे फैसले का यह हिस्सा प्रभावी नहीं होगा।” स्विट्जरलैंड की एक आपराधिक अदालत ने शुक्रवार को हिंदुजा परिवार के चार सदस्यों को घरेलू सहायकों का शोषण करने के मामले में चार से साढ़े चार साल तक की जेल की सजा सुनाई। अदालत ने साथ ही, मानव तस्करी के आरोपों को खारिज कर दिया। भारतीय मूल के उद्योगपति प्रकाश हिंदुजा और उनकी पत्नी, बेटे व पुत्रवधू पर अपने नौकरों की तस्करी का आरोप लगाया गया था, जो जिनेवा में उनके आलीशान विला में काम करते थे। 
चारों आरोपी जिनेवा की अदालत में मौजूद नहीं थे, हालांकि परिवार का व्यवसाय प्रबंधक और पांचवां आरोपी नजीब जियाजी अदालत में मौजूद था। उसे 18 महीने की सजा सुनाई गई जो निलंबित रखी गई है। अदालत ने कहा कि चारों व्यक्ति कर्मचारियों का शोषण करने और अनधिकृत रोजगार देने के दोषी हैं। अदालत ने तस्करी के आरोपों को इस आधार पर खारिज कर दिया कि कर्मचारी अपनी इच्छा से काम कर रहे थे। हिंदुजा परिवार के चार सदस्यों पर आरोप लगाया गया था कि वे कर्मचारियों के पासपोर्ट जब्त कर लेते थे, उन्हें स्विस फ्रैंक के बजाय रुपयों में भुगतान करते थे, विला से बाहर जाने से रोकते थे और स्विट्जरलैंड में उन्हें बहुत कम पैसे के लिए लंबे समय तक कष्टदायी ढंग से काम करने के लिए मजबूर करते थे।

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