भारत और नेपाल समेत कई दक्षिण एशियाई देशों में खराब होती वायु गुणवत्ता और वायुमंडल में मौजूद विभिन्न कण (पीएम) का खतरनाक स्तर मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है और इससे तत्काल निपटा जाना चाहिए। काठमांडू में स्थित एक अंतर सरकारी ज्ञान केंद्र ने बुधवार को चेतावनी दी।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र और इसके आठ क्षेत्रीय सदस्य देशों – अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान तथा इसके लोगों की ओर से काम करने वाला एक ज्ञान एवं शिक्षा केंद्र है।
संगठन ने बुधवार को जारी एक बयान में हाल के आंकड़ों की ओर इशारा किया और बढ़ते पीएम स्तर के बारे में चिंता व्यक्त की।
‘काठमांडू पोस्ट’ अखबार ने बताया कि बयान में कहा गया है कि पीएम स्तर में वृद्धि से मानव स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है।
बयान में कहा गया है कि डॉक्टरों के अनुसार मुख्य रूप से खराब वायु गुणवत्ता के कारण सांस की बीमारी से पीड़ित रोगियों की संख्या बढ़ती है।
बयान में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि वायु प्रदूषण और कोरोना वायरसमिलकर सांस की विभिन्न बीमारियों का कारण बनते हैं, जिनमें मुख्य रूप से फेफड़े प्रभावित होते हैं। इससे अस्पताल में भर्ती होने और मौत होने तक की आशंका रहती है।
आईसीआईएमओडी के वरिष्ठ वायु गुणवत्ता विशेषज्ञ डॉ. भूपेश अधिकारी ने कहा कि दुनिया भर में आज की तारीख में मौतों के लिए कोविड-19 से ज्यादा वायु प्रदूषण जिम्मेदार है।
रिपोर्ट में डॉ. अधिकारी के हवाले से कहा गया है, इस विनाशकारी मृतक संख्या के बावजूद, हम इस अदृश्य हत्यारे से पर्याप्त ऊर्जा के साथ नहीं निपट रहे हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करने का समय आ गया है।
डॉ अधिकारी ने कहा, अच्छी खबर यह है कि हम जानते हैं कि हमारे क्षेत्र में वायु प्रदूषण कितना है और प्रदूषकों के जोखिम को कम करने में तेजी से प्रगति कैसे करें।
बयान में कहा गया है, “नेपाल की राजधानी काठमांडू में पीएम2.5 का स्तर 11 अप्रैल, 2023 को 205 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक हो गया, जबकि पीएम10 का स्तर 13 अप्रैल, 2023 को 430 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक पहुंच गया। यह महत्वपूर्ण मुद्दा है।”
बयान में कहा गया है कि बहुत अस्वास्थ्यकर वायु गुणवत्ता आपातकालीन स्थितियों की स्वास्थ्य चेतावनियों की ओर इशारा करती है, जबकि इससे पूरी आबादी के प्रभावित होने की अधिक आशंका रहती है।