जापानी विद्वान ने चीन की विस्तारवादी नीति और अरुणाचल प्रदेश में भारतीय क्षेत्र पर दावा करने की कोशिश के तहत 11 स्थानों का नाम बदलने की हालिया घोषणा के लिए उस पर निशाना साधा है। उन्होंने यह भी कहा है कि भारत को चीन के क्षेत्रीय दावों का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए। हडसन इंस्टीट्यूट में फेलो (अनिवासी) सटोरू नागाओ ने एएनआई को एक विशेष साक्षात्कार में बताया कि उपमहाद्वीप में अपने पड़ोसियों के साथ बीजिंग का लगातार सीमा विवाद उसकी एक खतरनाक प्रवृत्ति है।
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चीन सोचता है कि ये उसका क्षेत्र है इसलिए उसके पास इसका नाम बदलने का अधिकार है और यही संदेश वो देना चाहता है। हम इस संदेश को समझते हैं कि चीन इन क्षेत्रों में अपने क्षेत्र का विस्तार करना चाहता है। नागाओ ने कहा इसलिए यह खतरनाक है। जापानी विद्वान ने कहा कि चीन ने जापान के इलाके पर इसी तरह का दावा किया है और यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि हमारे क्षेत्र में सेनकाकू द्वीप, जैसा कि हम इसे कहते हैं, चीनी इसे अपने नाम (दियाओयू द्वीप) से बुलाते हैं क्योंकि चीन यह संदेश देना चाहता है कि यह उनका क्षेत्र है और उन्हें इसका नाम बदलने का अधिकार है। इसलिए , नाम बदलना दावा करने जैसा है। यह बहुत खतरनाक है और अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है।
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इसलिए, एक बार जब चीन इसका नाम बदल देता है, तो हमें सैन्य संघर्ष और चीन की गतिविधियों को रोकने के लिए तैयारी करने की आवश्यकता हो सकती है। उनके पास वर्तमान नियम-आधारित व्यवस्था है और वे इसे चुनौती देने का प्रयास करते हैं। चीन किसी भी क्षेत्र को अपना होने का दावा करता है क्योंकि यह उसकी प्रवृत्ति और इच्छा है।