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भारत, यूएई ने विकसित देशों से 100 अरब अमेरिकी डॉलर की जलवायु वित्त प्रतिबद्धता पूरी करने को कहा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाह्यान ने शनिवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने और अनुकूलन के लिए विकसित देशों को 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रदान करने की प्रतिबद्धता को पूरा करने की तत्काल आवश्यकता है।
दोनों नेताओं के बीच बातचीत के बाद जलवायु परिवर्तन पर जारी एक संयुक्त बयान में भारत और यूएई ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सामूहिक कार्रवाई के महत्व को रेखांकित किया।
मोदी ने 2023 में सीओपी-28 का मेजबान देश चुने जाने पर यूएई को बधाई दी और जलवायु सम्मेलन की आगामी अध्यक्षता के लिए अपना पूरा समर्थन दिया। प्रधानमंत्री ने सीओपी-28 में शामिल होने के निमंत्रण के लिए शेख मोहम्मद को धन्यवाद दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मैं आपके निमंत्रण के लिए आभारी हूं और मैं हमेशा यहां आना चाहता हूं। मैंने यूएई में सीओपी-28 शिखर सम्मेलन में भाग लेने का फैसला किया है।’’
संयुक्त बयान में, दोनों नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों में भागीदारी और एकजुटता तथा समर्थन के जरिए पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयासों में तेजी लाने का आह्वान किया।
दोनों नेताओं ने वैश्विक जलवायु कार्रवाई के सभी महत्वपूर्ण स्तंभों- न्यूनीकरण, अनुकूलन, क्षति तथा जलवायु वित्त सहित कार्यान्वयन के साधन पर सीओपी-28 में महत्वाकांक्षी, संतुलित और कार्यान्वयन-उन्मुख परिणाम प्राप्त करने की अनिवार्यता को रेखांकित किया।
संयुक्त बयान में कहा गया है, ‘‘इस संदर्भ में, दोनों नेताओं ने ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ के महत्व और सीओपी-28 में इसके सफल निष्कर्ष पर पहुंचने के संबंध में प्रकाश डाला।’’

‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ का आशय सम्मेलनों के उद्देश्यों और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के संबंध में वैश्विक सामूहिक कार्रवाई का जायजा लेने की कवायद से है।
उन्होंने सीओपी-28 में ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण को लागू करने के महत्व पर जोर दिया और राष्ट्रों से अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने के लिए ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ के परिणामों का उपयोग करने का आह्वान किया। इसमें विकासशील देशों के लिए अधिक वित्त और सहयोग जुटाना भी शामिल है।
उन्होंने संधि और पेरिस समझौते के प्रावधानों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए विकासशील देशों का समर्थन करने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

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