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Prabhasakshi Exclusive: Xi Jinping का Vietnam दौरा भारत के लिए क्या चिंता की बात है? क्या South China Sea के लिए चीन ने बदल दी है रणनीति?

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि चीन और वियतनाम एक दूसरे के करीब आ रहे हैं, क्या यह भारत के लिए खतरा हो सकता है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि भारत और वियतनाम के संबंध बहुत प्रगाढ़ हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंध हैं जिसे चीन तो क्या कोई भी ताकत नहीं हिला सकती। उन्होंने कहा कि साथ ही हमें यह भी समझने की जरूरत है कि वियतनाम को भी अपने हित में किसी देश से संबंध बनाने या सुधारने का पूरा अधिकार है। उन्होंने कहा कि चीन और वियतनाम कम्युनिस्ट देश हैं लेकिन दोनों की आपस में बनती नहीं है। उन्होंने कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी छह साल बाद वियतनाम के दौरे पर पहुँचे हैं और इस दौरान दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण करार किये गये। उन्होंने याद दिलाया कि हाल ही में दिल्ली में संपन्न जी20 शिखर सम्मेलन के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी सीधा वियतनाम पहुँचे थे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक भारत और वियतनाम के संबंधों की बात है तो अभी अक्टूबर महीने में ही विदेश मंत्री एस. जयशंकर वहां होकर आये थे। उन्होंने कहा कि इसके इस यात्रा के माध्यम से जयशंकर दुनिया को यह संदेश देने में सफल रहे कि भारत एक ऐसा देश बनकर उभरा है जो उच्च स्तर के आत्मविश्वास के साथ दुनिया में कहीं अधिक योगदान देने तथा विश्व के विरोधाभासों से सामंजस्य बिठाने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि वियतनाम के साथ भारत के गहरे ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक जुड़ाव रहे हैं जिसको वर्तमान नेतृत्व आगे बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत और वियतनाम और अमेरिका तथा वियतनाम के बीच होने वाली हर वार्ता, मुलाकात और समझौते को चीन गिद्ध दृष्टि से देखता रहता है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत और वियतनाम एशिया में दो सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं हैं। दोनों देशों के बीच 15 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार बहुत तेजी से और बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि भारत और वियतनाम लंबे समय से विश्वसनीय साझेदार रहे हैं। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह समेत शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात कर दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, रक्षा और समुद्री सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की थी जिसके सफल परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे। इसके साथ ही जयशंकर ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के दृष्टिकोण को साझा करते हुए इस क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार को लेकर भी चर्चा की थी। साथ ही जयशंकर और वियतनाम के विदेश मंत्री ने भारत और वियतनाम के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संयुक्त रूप से स्मारक डाक टिकट भी जारी किया था। दोनों नेताओं ने हनोई में 18वीं भारत-वियतनाम संयुक्त आयोग की बैठक की सह-अध्यक्षता भी की थी। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की चर्चाओं में राजनीतिक, रक्षा और समुद्री सुरक्षा, न्यायिक, व्यापार एवं निवेश, ऊर्जा, विकास, शिक्षा एवं प्रशिक्षण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अलावा सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग शामिल था। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष व्यापार और निवेश गतिविधियों के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए निकट समन्वय पर भी सहमत हुए थे जिसके तहत आपसी कारोबार को जल्द ही 20 अरब अमेरिकी डॉलर तक लाने का प्रयास किया जाएगा। 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत, अमेरिका तथा कई अन्य शक्तिशाली देश संसाधन संपन्न क्षेत्र में चीन के बढ़ते कदमों के बीच स्वतंत्र, खुले और समृद्ध हिंद प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने की जरूरत पर लगातार जोर देते रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन विवादित दक्षिण चीन सागर के लगभग पूरे हिस्से पर अपना दावा करता है, हालांकि ताइवान, फिलीपीन, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम सभी इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं। उन्होंने कहा कि बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठानों का निर्माण किया है। चीन का पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ भी क्षेत्रीय विवाद है। उन्होंने कहा कि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) को इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक माना जाता है, तथा भारत और अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देश इसके संवाद भागीदार हैं। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो चीन ने फिशिंग बोट्स के नाम पर दक्षिण चीन सागर में हजारों नावें छोड़ रखी हैं जबकि इनका असल काम जासूसी करना है जिससे इस क्षेत्र के सारे देश परेशान हैं। 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक चीनी राष्ट्रपति की वियतनाम यात्रा की बात है तो इस दौरान चीन और वियतनाम “साझा भविष्य” के लिए सुरक्षा मामलों पर सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए। उन्होंने कहा कि दोनों कम्युनिस्ट पड़ोसियों ने दर्जनों सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए और विवादित जल क्षेत्र में किसी भी आपात स्थिति की संभावना को टालने के लिए और अधिक हॉटलाइन स्थापित करने पर भी सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि 16 पेज के संयुक्त बयान में दोनों देशों ने रक्षा उद्योग संबंधों और खुफिया आदान-प्रदान को मजबूत करने के लिए और अधिक निकटता से काम करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि चीनी राष्ट्रपति की वियतनाम यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इस साल उनकी किसी एशियाई देश की पहली यात्रा थी। उन्होंने कहा कि वियतनाम ने सितंबर में अमेरिका को अपनी राजनयिक रैंकिंग में चीन के बराबर उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया था इसलिए चीन सतर्क हो गया और शी जिनपिंग ने अपने कम्युनिस्ट पड़ोसी से संबंध सुधारने की पहल की। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो चीनी राष्ट्रपति ने इस साल रूस, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के बाद अब वियतनाम की यात्रा की है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन वियतनाम में अपना निवेश बढ़ा रहा है। माना जा रहा है कि चीन के निवेश वाले क्षेत्र टेलीकॉम, इंफ्रास्ट्रक्चर, सैटेलाइट ग्राउंड ट्रैकिंग स्टेशन और डेटा सेंटर आदि हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा चीन की नजर वियतनाम के महत्वपूर्ण खनिजों पर भी है। शी जिनपिंग ने वियतनामी राज्य समाचार पत्र में एक लेख में महत्वपूर्ण खनिजों पर व्यापक सहयोग का आग्रह किया था। हालाँकि, संयुक्त बयान में दोनों देश प्रमुख खनिजों पर सहयोग के तरीके तलाशने पर सहमत हुए हैं। उन्होंने कहा कि अनुमान है कि वियतनाम के पास चीन के बाद दुर्लभ पृथ्वी का दूसरा सबसे बड़ा भंडार है, इसकी सबसे बड़ी खदानें उस क्षेत्र में स्थित हैं जहां चीन के समर्थन से रेल नेटवर्क स्थापित करने की बात कही गयी है। उन्होंने कहा कि वियतनाम में दुर्लभ पृथ्वी अयस्कों के निर्यात पर सख्त नियम हैं क्योंकि वह इन्हें अपने यहां ही संसाधित करना चाहता है लेकिन उसकी मुश्किल यह है कि उसके पास तकनीक नहीं है लेकिन अब चीन उसे तकनीक देने पर राजी दिख रहा है। उन्होंने कहा कि लेकिन कुल मिलाकर देखें तो वियतनामी जनता के मन में चीन के प्रति आशंका और अविश्वास की भावना है। उन्होंने कहा कि यह बात वियतनाम की सरकार भी समझती है इसलिए दोनों देश कागज पर कितने भी समझौते कर लें लेकिन हकीकत में ज्यादा कुछ होना मुश्किल नजर आ रहा है।

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